जानेमाने फिल्मकार विशाल भारद्वाज का कहना है कि कोई भी फिल्मकार रुपहले पर्दे पर अपने अनुभव को बयां कर सकता है वो समाज को बदल नहीं सकता. फिल्में समाज का दर्पण हैं लकिन फिल्मकार सामाजिक कार्यकर्ता नहीं हैं.
विशाल ने फिल्म बाजार में ‘सिनेमा समाज में बदलाव लाने का माध्यम’ सत्र के दौरान कहा कि,’ हम एक कथावाचक के रूपमें है. एक फिल्मकार जीवन में जो घटित होता है उसके बारे में बता सकता है. हम अपने अंदर जो महसूस करते हैं उसी को बयां कर सकते हैं. फिल्मों में किसी भी विषय पर विचार-विमर्श किया जा सकता है लेकिन समाज में उस विषय के बारे में बदलाव नहीं लाया जा सकता.’
वहीं विशाल ने आगे यह भी बताया कि,’ समाज को अलग-अलग लोगों ने बनाया है. सबकी सोच में फर्क है. हमें देश में अहिंसा को जन्म नहीं देना चाहिये. शिक्षित न होना इसकी एक और वजह है. फिल्मों को फिल्मों की तरह ही देखा जाये उसे बहस का मुद्दा न बनायें.’