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लकी हूं कि लोग मुझे भूलें नहीं : मधु
फिल्म फूल और कांटे व रोजा से प्रसिद्धि पा चुकी 90 के दशक की लोकप्रिय अभिनेत्री मधु छोटे परदे पर आरंभ से अपनी नयी पारी शुरू करने जा रही हैं. इस कॉस्ट्यूम ड्रामा में वह महारानी संभाविजा के किरदार में होंगी. वह आरंभ को छोटे परदे पर आनेवाली फिल्म बताती हैं. इस शो और कैरियर […]
फिल्म फूल और कांटे व रोजा से प्रसिद्धि पा चुकी 90 के दशक की लोकप्रिय अभिनेत्री मधु छोटे परदे पर आरंभ से अपनी नयी पारी शुरू करने जा रही हैं. इस कॉस्ट्यूम ड्रामा में वह महारानी संभाविजा के किरदार में होंगी. वह आरंभ को छोटे परदे पर आनेवाली फिल्म बताती हैं. इस शो और कैरियर पर उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश.
आप सीरियल आरंभ से कैसे जुड़ीं?
गोल्डी बहल जी का मुझे कॉल आया था. उन्होंने कहा कि हमारा वीकेंड शो है. हफ्ते में दो दिन आता है, इसलिए हमें आपसे महीने में पांच से सात दिन चाहिए होगा. उन्हें वर्षों से जानती हूं. पहले भी कई डेली सोप के ऑफर्स आते रहे हैं, लेकिन उनकी मांग 20 से 25 दिन होती थी. मगर परिवार को देखते हुए शो को अधिक दिन नहीं दे सकती. यह किरदार बहुत खास लगा. मैं महारानी के रोल में हूं, जिसमें बहुत सारे शेड्स हैं. मुझे लगा कि कमबैक के लिए इससे अच्छा क्या हो सकता है. फिर एक वजह यह भी रही कि ‘बाहुबली’ के लेखक के विजयेंद्र इस शो के लेखक हैं.
महारानी के किरदार को परदे पर उतारने के लिए कितना मेकअप करना होता है.
महारानी के लिए रेडी होने में दो घंटे लगते हैं. लुक पर क्रिएटिव टीम बारीकी से काम करती है. पूरी बॉडी को ऑयल पेंट से एक कलर में करते हैं. शो में द्रविड़ियन हूं, तो स्किन टोन उसी अनुसार रखना पड़ता है, फिर ये भारी गहनें. असली परेशानी है इस भारी लिबास को 10-12 घंटे तक पहने रहना.
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को कितना मिस किया?
हम हमेशा कहते हैं कि दर्शकों की याद्दाश्त बहुत कमजोर होती है. हिट और फ्लॉप के बीच में ही एक आर्टिस्ट की लाइफ होती है. आज भी लोग मेरी फिल्मों- फूल और कांटे, रोजा की तारीफ करते हैं, तो अच्छा लगता है कि इतने वर्षों बाद भी लोग मुझे भूले नहीं. इसके लिए शुक्रगुजार हूं. जहां तक मिस करने की बात है तो शुरू-शुरू में बिल्कुल मिस नहीं किया. पांच भाषाओं की फिल्में कर रही थी. बॉलीवुड में अक्षय कुमार और अजय के साथ रोमांटिक फिल्में मिलती थीं, जिसमें करने को कुछ नहीं होता था. साउथ इंडस्ट्री में राऊंड द क्लॉक काम करती थी. जब मैं प्यार में पड़ी तो सोचा कि बहुत हो गयी एक्टिंग, अब अपने प्यार के साथ रहूंगी. मैंने शादी कर ली और जल्द ही बच्चे भी हो गये. कुछ सालों तक कुछ मिस नहीं किया. हां, जब बच्चे छह साल के हो गये, तो मिस करने लगी. अब बच्चे बड़े हो गये, तो साउथ में काम शुरू किया है. यह तो सच है कि नेम-फेम का मोह छूटता नहीं. फिर भी फैमिली लाइफ में बहुत खुश हूं, लेकिन यह शो मिल गया, तो खुद को ज्यादा लकी समझने लगी हूं.
आपके बच्चे आपकी फिल्मों को पसंद करते हैं?
बिल्कुल नहीं. एक फिल्म में मैं मर जाती हूं, तो छोटी बेटी ज्यादा परेशान हो गयी थी. दूसरे हीरोज के साथ देखकर कहती है- यक मम्मा. मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है. फिल्म यशंवत में नाना पाटेकर मुझे थप्पड़ मारते हैं, मैं रोने लगती हूं, तो मेरी बेटियां भी रोने लगती हैं. वह देखना पसंद नहीं करती.
क्या आपकी बेटियां फिल्म में आना चाहती हैं?
हां, बड़ी बेटी फिल्म में कैरियर बनाना चाहती है, लेकिन जिस तरह से मेरे पापा ने मेरे सामने शर्त्त रखी थी, मैंने उसके सामने मैंने रखी कि पढा़ई पूरी होने के बाद ही एक्टिंग. अभी उसके ग्रेजुएशन में चार साल का वक्त है.
हेमा मालिनी आपकी आंटी हैं. उनसे क्या सीखा?
उनका कहना है कि किसी चीज को ‘ना’ नहीं कहना, बल्कि हां बोलकर नये अनुभवों से जुड़ो. एक बार उनसे किसी ने कहा कि आप निर्देशन करेंगी? उस वक्त उन्हें निर्देशन पता नहीं था, लेकिन उन्होंने ‘हां’ कहा. ऐसे ही राजनीति से भी वह जुड़ीं. उनका कहना है कि जब आप ‘हां’ बोलते हो, तो यूनिवर्स आपके लिए दरवाजे खोल देती है और आपकी ना सारे दरवाजे बंद कर देती है.
आगे की क्या योजना है?
मैं हिंदी फिल्मों में खुद को देखना चाहती हूं. यह वक्त बहुत अच्छा है. हर किसी के लिए काम है.
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