adarsh gourav: सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव आगामी 28 फरवरी को सिनेमाघरों में दस्तक देने जा रही है. इस फिल्म का अहम चेहरा जमशेदपुर के आदर्श गौरव हैं.अब तक कई इंटरनेशनल फिल्मों और वेब सीरीज में अपनी दमदार अदाकारी से वाहवाही बटोर चुके आदर्श गौरव इस फिल्म में नासिर की भूमिका में होंगे. जिन पर यह फिल्म आधारित है.आदर्श गौरव की उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश
कॉलेज में देखी थी सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव डॉक्यूमेंट्री
जब मैं कॉलेज में था तब मैंने सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव की डॉक्यूमेंट्री फिल्म पहली बार देखी थी. इंटरनेट पर मौजूद यह मेरी पसंदीदा डॉक्यूमेंट्री फिल्मों में से एक है. यह मुझे बहुत ही इंस्पायरिंग लगी थी और कहीं ना कहीं जेहन में ये बात भी उस वक्त आई थी कि क्या कभी नासिर का किरदार मुझे करने को मिलेगा.
नासिर से पहली मुलाकात एक्सेल के ऑफिस में हुई
नासिर जी से मेरी पहली मुलाकात एक्सेल के पुराने ऑफिस में हुई थी.उनके साथ उनके बेटे भी थे .मैंने चार पाँच बेसिक सवाल पूछे थे. बस उतनी ही बात हुई थी . हां उसके बाद की मुलाकातों में वह खुलने लगे और कई बातों पर अपनी राय बताने और मेरी सुनने लगे थे.
मेरा हर फिल्म में प्रोसेस अलग होता है
मैं उस तरह का एक्टर हूं ,जिसका हर फिल्म के साथ प्रोसेस बदल जाता है. इस फ़िल्म में नासिर का किरदार निभाते हुए मैंने इस बात को ध्यान में रखा कि मैं नासिर सर की मिमिक्री ना करूं बल्कि उनकी सोल को मैं पर्दे पर ले आऊं.उनकी दुनिया को पर्दे पर ला पाऊं. उसके लिए मैं मालेगांव गांव गया . दो हफ़्ते वहीं रहा .उनके परिवार और दोस्तों से मिला . नासिर ने 12 साल बाद कोई फिल्म बनायी ,जिसे मैंने प्रोड्यूस किया. मैंने असिस्ट भी किया था.फिल्म का नाम नाना की क्रांति था.
मेरे और नासिर में समानता
हम दोनों के बीच की समानता की बात करूं तो हम दोनों का सिनेमा से दूर दूर तक कोई बैकग्राउंड नहीं है ,लेकिन हम दोनों अपने काम को लेकर बहुत पैशनेट और महत्वाकांक्षी हैं. नासिर निश्चित तौर पर मुझसे बड़े लीडर हैं .कम रिसोर्स में काम करना उन्हें बखूबी आता है .
टिपिकल बॉलीवुड हीरो नहीं बनना
मेरी अब तक की फिल्मोग्राफी में मैंने टिपिकल हीरो वाली भूमिका नहीं की है और मैं उसको मिस भी नहीं करता हू क्योंकि मैं रीयलिस्टिक फिल्मों को देखकर बड़ा हुआ हूं. उसमें लोगों के इंटेंस परफॉरमेंस को देखकर लगता था कि मैं ऐसे किसी शक्स को जानता हूं, तो मैं भी ऐसे सिनेमा का हिस्सा बनकर रीयलिस्टिक मैजिक को पर्दे पर आगे भी बिखेरना चाहूंगा. मुझे अपने किए हुए रीयलिस्टिक काम पर गर्व है.
ओरिजिनल म्यूजिक पर काम करता हूं
संगीत मेरा पहला प्यार था और रहेगा . मेरी आर्ट की तरफ़ जर्नी वहीं से शुरू हुई थी.मैं ओरिजिनल म्यूजिक पर काम करते रहना चाहूँगा.इस साल आपको मेरी तरफ़ से ओरिजिनल म्यूजिक सुनने को मिलेगा .अगर मौक़ा मिला तो मैं फ़िल्मों में भी प्लेबैक सिंगिंग करना चाहूंगा.दूसरे एक्टर के लिए भी .
ओटीटी या थिएटर रिलीज मायने नहीं रखती
सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव मेरे कैरियर की उन चुनिंदा फ़िल्मों में से है ,जो थिएटर में रिलीज हो रही है.आठ साल के अंतराल के बाद मेरी कोई फिल्म रिलीज हुई है लेकिन सच कहूं तो मेरे लिए यह बात मायने ही नहीं रखती है कि मेरी फिल्म ओटीटी पर रिलीज हो रही है या थिएटर. थिएटर में रिलीज हो रही है तो इसका मतलब ये नहीं है कि ज़्यादा मेहनत करूंगा कि फ़िल्म २०० करोड़ कमा ले.मैं अपनी हर फिल्म पर उतनी ही मेहनत करता हूं. मेरे लिए कहानी और मेरे निर्देशक और को एक्टर मायने रखते हैं क्योंकि किसी फ़िल्म को हम कई महीनों देते हैं और यही चीजें मायने रखती है.वैसे थिएटर की फ़िल्मों को मैं ज़्यादा इसलिए भी मायने नहीं देता हूं कि जब तक मैं था उस वक़्त जमशेदपुर में पायल ही एकमात्र थिएटर था. हम साल में एक फिल्म मुश्किल से वहाँ जाते थे . शायद अपने पूरे ग्रोइंग ईयर में मैंने छह फिल्में ही थिएटर में देखी होगी .हम ज्यादातर वीसीआरपर ही फिल्में देखते थे .
जमशेदपुर ने मुझे गढ़ा है
एक इंसान के तौर पर मेरी जो सोच है .उसे जमशेदपुर ने गढ़ा है . मुझे नेचर से लगाव है क्योंकि मैंने बचपन और ग्रोइंग ईयर में वही देखा था . मेरे में स्मॉल टाउन वाले वैल्यू है . परिवार ही दुनिया नहीं है बल्कि दोस्त और पड़ोसी भी मायने रखते हैं.शहरों में लोगों को पड़ोसी से मतलब नहीं होते हैं,लेकिन मेरी दोस्ती है. मैं रनिंग करना पसंद करता हूँ. वो भी जमशेदपुर की वजह से ही आया है.