नयी दिल्ली : फिल्मकार अपर्णा सेन का कहना है कि ‘घरे बाइरे आज’ अभी तक की उनकी सर्वाधिक राजनीतिक और मुखर फिल्म है जो ‘उदार आवाजों’ को कुचलने के विषय पर है.
यह फिल्म रविन्द्रनाथ टैगोर के उपन्यास ‘घरे बाइरे’ पर आधारित है. ’36 चौरंगी लेन’, ‘मिस्टर एंड मिसेज अय्यर’, ‘द जैपनीज वाइफ’ और ‘इति मृणालिनी’ जैसी फिल्मों के लिए समालोचकों से प्रशंसा बटोर चुकीं सेन ने कहा कि वह फिल्मों के जरिये एक सार्थक चर्चा शुरू करना चाहती हैं.
इसी कहानी पर सत्यजीत रे 1984 में एक फिल्म बना चुके हैं. मौजूदा फिल्म की कहानी तीन मुख्य पात्रों के इर्दगिर्द घूमती है. इनमें से एक किरदार पत्रकार गौरी लंकेश से प्रभावित है, जिनकी हाल ही में हत्या कर दी गई. सेन ने कहा कि इनमें से कोई भी किरदार किसी भी वास्तविक पात्र पर आधारित नहीं है, सिवाय निखिलेश के जो गौरी लंकेश से थोड़ा प्रभावित है.
एक फिल्म उत्सव के दौरान पैनल चर्चा में सेन ने समीक्षक राजीव मसंद से कहा, यह जरूरी नहीं कि हिंदुत्व की आवाज ही, यह इस्लामिक चरमपंथी भी हैं, जो उदारवादी आवाज को कुचलते हैं. किसी भी तरह का कट्टरवाद विचार और उदारता की आवाजों को कुचलता है. यह चिंता का विषय है और स्वस्थ लोकतंत्र का सम्मान करने वाले हर किसी को इसकी चिंता होनी चाहिए.
अपनी फिल्म पर बात करते हुए सेन ने कहा, यह अभी तक की मेरी सबसे बड़ी राजनीतिक फिल्म है. यह बेहद सच्ची और मुखर रूप से विचार प्रकट करने वाली फिल्म है. मेरे लिए मजबूत विपक्ष होना बेहद जरूरी है. अगर वास्तविक राजनीतिक विपक्ष एक साथ नहीं हो सकता, तो मुझे लगता है कि एक नागरिक विपक्ष होना चाहिए क्योंकि तभी स्वस्थ लोकतंत्र काम कर सकता है.