वाशिंगटन : अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) ने वर्ष 2017 के लिए भारत की वृद्धि दर के अनुमान को 0.4 प्रतिशत घटाकर 7.2 प्रतिशत कर दिया है. आईएमएफ का कहना है कि उसने नोटबंदी के प्रभाव की वजह से वृद्धि दर के अनुमान को कम किया है. हालांकि, उसने 2017 में वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर का अनुमान उम्मीद से कुछ उंचा यानी 3.5 प्रतिशत रखा है.
आईएमएफ का कहना है कि वृद्धि के इन संकेतों के बावजूद इस साल कई ऐसे देश रहेंगे जो ‘संघर्ष’ करेंगे. अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष ने अपने ताजा विश्व आर्थिक परिदृश्य (डब्ल्यूईओ) में कहा है कि 2017 के लिए भारत की वृद्धि दर के अनुमान को 0.4 प्रतिशत कम कर 7.2 प्रतिशत किया गया है.
आईएमएफ ने कहा कि नकदी संकट तथा भुगतान में अडचन से उपभोग के मोर्चे पर जो अस्थायी अडचन आई है उससे वृद्धि दर पर असर पडेगा. आईएमएफ की रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्यम अवधि का वृद्धि परिदृश्य अनुकूल है. महत्वपूर्ण सुधारों के क्रियान्वयन, आपूर्ति पक्ष की अड़चनें दूर होने तथा उचित राजकोषीय और मौद्रिक नीतियों से मध्यम अवधि में वृद्धि अनुमान आठ प्रतिशत से उपर जा सकता है.
भारत सरकार ने नोटबंदी के बावजूद फरवरी में जारी अपने अनुमान में वित्त वर्ष 2016-17 की वृद्धि दर 7.1 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है. हालांकि, विश्लेषकों ने इस अग्रिम अनुमान पर चिंता जताते हुए कहा है कि इसमें नोटबंदी के पूर्ण प्रभाव को शामिल नहीं किया गया है. आईएमएफ की रिपोर्ट के अनुसार हाल के वर्षों में ढांचागत सुधारों, निवेश की अनुकूल शर्तों और वाह्य स्थितियों के प्रति संवेदनशीलता का स्तर कम होने से भारतीय अर्थव्यवस्था तेज रफ्तार से बढ़ी है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की वृद्धि दर 2017 में 6.6 प्रतिशत रहेगी. यह 2018 में सुस्त पड़कर 6.2 प्रतिशत पर आ जायेगी. इसमें कहा गया है कि विश्व अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 2017 में 3.5 प्रतिशत पर पहुंच जाएगी, जो 2016 में 3.1 प्रतिशत रही थी. आईएमएफ का अनुमान है कि 2018 में वैश्विक वृद्धि दर मामूली बढकर 3.6 प्रतिशत रहेगी.
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के अनुसंधान विभाग के आर्थिक काउंसलर और निदेशक मौरिस ऑब्सफेल्ड ने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति में सुधार मुख्य रूप से यूरोप और एशिया और एशिया के भीतर से अच्छी आर्थिक खबरों से आएगा.
हालांकि, उन्होंने इसके साथ ही यह जोड़ा कि इन संकेतों के बावजूद इस साल कई अन्य देशों को संघर्ष करना होगा, जिनकी वृद्धि दर पूर्व की तुलना में कम रहेगी. 2016 की शुरुआत से जिंसों के दाम मजबूत हुए है, लेकिन यह वृद्धि निचले स्तर पर है. पश्चिम एशिया, अफ्रीका तथा लातिनी अमेरिका के कई जिंस निर्यातक देशों को चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. ऑब्सफेल्ड ने इसके साथ ही कहा कि इन सबके बावजूद वैश्विक अर्थव्यवस्था अब रफ्तार पकडने लगी है.
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