नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने सहारा समूह के मुखिया सुब्रत राय को देश से बाहर जाने से रोकने संबंधी न्यायिक आदेश में संशोधन के लिये पुनर्विचार याचिका दायर किये जाने से पहले उन्हें विदेश जाने की अनुमति देने के लिये कोई अंतरिम आदेश देने से इनकार कर दिया.
न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति ए के सीकरी की खंडपीठ के समक्ष आज सहारा के वकील ने इस मामले का उल्लेख किया। न्यायाधीशों ने कहा कि इस संबंध में अर्जी दाखिल होने तक कोई आदेश नहीं दिया जा सकता है. न्यायालय ने कहा कि यदि समूह चाहता है कि पहले के आदेश में बदलाव किया जाये तो उसे पुनर्विचार याचिका दायर करनी होगी.
सहारा समूह की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी ए सुन्दरम का कहना था कि वह न्यायालय के आदेश पर पुनर्विचार नहीं चाहते हैं लेकिन सिर्फ इस ओर ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं कि खुले न्यायालय में पारित आदेश और शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड किये गये निर्णय में अंतर है.
सुन्दरम की दलीलों से न्यायालय संतुष्ट नहीं हुआ और कहा, ‘‘आपको पुनर्विचार याचिका दायर करनी होगी’’ और तभी इस पर विचार किया जा सकता है. सहारा ने कल शीर्ष अदालत में एक अर्जी दायर कर कहा था कि 20 हजार करोड़ रुपए की संपत्तियों के मालिकाना हक के दस्तावेज दाखिल किये जाने तक राय को देश से बाहर जाने से रोकने संबंधी 28 अक्तूबर के आदेश में त्रुटि है.
सहारा समूह के वकील का कहना था कि न्यायालय ने आदेश पारित करते समय कहा था कि यदि तीन सप्ताह के भीतर संपत्तियों के मालिकाना हक संबंधी दस्तावेज सेबी को नहीं सौंपे गये तो राय को देश से बाहर जाने से रोक दिया जायेगा. न्यायालय ने कहा था कि वह ‘लुका छिपी’ खेल रहे हैं और उन पर और अधिक भरोसा नहीं किया जा सकता है. न्यायालय ने सहारा समूह को संपत्तियों के मालिकाना हक के विलेख सेबी को सौंपने का निर्देश दिया था.
न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि निवेशकों का धन बाजार नियामक के पास जमानत कराने से उसके बचने का कोई रास्ता नहीं है. न्यायालय ने सहारा से कहा था कि सेबी को संपत्तियों के मूल्यांकन की रिपोर्ट भी दी जाये जो उसकी परिसंपत्तियों की कीमत का सत्यापन करेगी. न्यायालय सुब्रत राय, उनकी दो कंपनियां सहारा इंडिया रियल इस्टेट कार्प लि और सहारा इंडिया हाउसिंग इंवेस्टमेन्ट कार्प लि और उनके निदेशकों के खिलाफ सेबी द्वारा दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रहा था.
न्यायालय ने पिछले साल 31 अगस्त को सहारा समूह को निर्देश दिया था कि नवंबर के अंत तक निवेशकों को 24 हजार करोड़ रुपए लौटाये जायें. यह समय सीमा बाद में आगे बढ़ा दी गयी थी और इन कंपनियों को तत्काल 5120 करोड़ रुपए जमा करने और जनवरी के प्रथम सप्ताह में दस हजार करोड रुपए तथा शेष रकम फरवरी के प्रथम सप्ताह में जमा कराने का निर्देश दिया गया था. सहारा समूह ने 5,120 करोड़ रुपए का ड्राफ्ट पांच दिसंबर, 2012 को जमा कर दिया था लेकिन शेष राशि का भुगतान करने में वह विफल रहा था.
न्यायालय ने सहारा समूह की इन दोनों कपंनियों को निर्देश दिया था कि सभी निवेशकों को तीन महीने के भीतर 15 फीसदी सालाना ब्याज के साथ यह रकम लौटायी जाये. न्यायालय ने सेबी से कहा था कि यदि ये कंपनियां निवेशकों को धन लौटाने में असफल रहें तो उनकी संपत्ति कुर्क कर ली जाये और बैंक के खाते सील कर दिये जायें.
इन दोनों कंपनियों के साथ ही उनके प्रमोटर राय और निदेशक वंदना भार्गव, रवि शंकर दुबे और अशोक राय चौधरी को निवेशकों से एकत्र की गयी राशि सेबी को सौंपने का निर्देश दिया गया था.
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