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खेती-बाड़ी की पुरानी पद्धति पर लौट रहे किसान

सुंदरबन : जलवायु परिवर्तन सुंदरबन में किसानों को अपना इतिहास खंगालने के लिए प्रेरित कर रहा है और यहां के किसान यह पता लगा रहे हैं कि उनके पुरखे कैसे हरी खाद का इस्तेमाल कर चावल की देसी किस्में पैदा करते थे.आधुनिक उच्च उत्पादकता वाली किस्मों को त्यागते हुए किसान हरित क्रांति से पहले के […]

सुंदरबन : जलवायु परिवर्तन सुंदरबन में किसानों को अपना इतिहास खंगालने के लिए प्रेरित कर रहा है और यहां के किसान यह पता लगा रहे हैं कि उनके पुरखे कैसे हरी खाद का इस्तेमाल कर चावल की देसी किस्में पैदा करते थे.आधुनिक उच्च उत्पादकता वाली किस्मों को त्यागते हुए किसान हरित क्रांति से पहले के दिनों में लौट रहे हैं और उन पारंपरिक बीजों को अपना रहे हैं जिनमें खारापन और बाढ़ ङोलने की क्षमता जैसी अनूठी खूबियां मौजूद हैं.

सुंदरबन के द्वीपों में से एक द्वीप पर रहने वाले किसान उत्तम मैती ने कहा, ‘‘ पुरानी पद्धति पर लौटना मुश्किल है, लेकिन धीरे धीरे हमने महसूस किया कि दुधेश्वरीजैसी हमारी पारंपरिक किस्मों की उत्पादन लागत कम है और यह खारापन बड़ी आसानी से ङोल सकती है.’’

जलवायु परिवर्तन की वजह से समुद्री तल के बढ़ते से बाढ़ और पानी में खारापन जैसी समस्याएं रही हैं. जादवपुर विश्वविद्यालय एवं डब्ल्यूडब्ल्यूएफ द्वारा तैयार एक रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि सुंदरबन डेल्टा में रह रहे 50 लाख लोगों में से 10 लाख लोग 2050 तक जलवायु परिवर्तन के भुक्तभोगी बन जाएंगे.उल्लेखनीय है कि हरित क्रांति के दौरान अधिक उपज वाली धान की किस्मों की ओर लोगों के आकर्षित होने से धान की पारंपरिक किस्में लुप्तप्राय हो गईं. गैर सरकारी संगठनों की मदद से विभिन्न हिस्सों के किसान समुदाय बीज बैंक तैयार कर रहे हैं जिनमें इस तरह के बीज की किस्में संभालकर रखी जा रही हैं.

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