नयी दिल्ली : कई नियामकीय संस्थाओं और सरकार के अधिकारियों के खिलाफ सीबीआइ तथा दूसरी एजेंसियों की जांच के घरे में फंसने से उत्पन्न परिस्थितियों के बीच वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि एक बडी समस्या, मुख्यत: इस समय लागू ‘भ्रष्टाचार निरोधक कानून’ के कारण है जो मूलरूप से त्रुटिपूर्ण है. उनका कहना […]
नयी दिल्ली : कई नियामकीय संस्थाओं और सरकार के अधिकारियों के खिलाफ सीबीआइ तथा दूसरी एजेंसियों की जांच के घरे में फंसने से उत्पन्न परिस्थितियों के बीच वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि एक बडी समस्या, मुख्यत: इस समय लागू ‘भ्रष्टाचार निरोधक कानून’ के कारण है जो मूलरूप से त्रुटिपूर्ण है.
उनका कहना है कि इस कानून में त्रुटिपूर्ण और भ्रष्ट निर्णय में भेद नहीं किया गया है. मंत्री ने कहा कि इस कानून में संशोधन की प्रक्रिया शुरु की जा चुकी है. इसका उद्देश्य है कि इसमें इस प्रकार का भेद किया जा सके और भ्रष्टाचार रोधी कानून के तहत किसी कोई दंड केवल त्रुटिपूर्ण निर्णय के आधार पर न हो बल्कि भ्रष्ट निर्णय के लिए दिया जाए.
जेटली ने एक इंटरव्यू में कहा, 1988 का भ्रष्टाचार रोधी कानून उदारीकरण के युग से पहले का कानून है. यह मूल रुप से एक त्रुटिपूर्ण कानून है क्योंकि इसने त्रुटिपूर्ण व भ्रष्ट निर्णय के बीच भेद नहीं किया गया है.
जेटली विभिन्न नौकरशाहों एवं सेबी के पूर्व चेयरमैन सीबी भावे सहित नियामकीय निकाय के शीर्ष अधिकारियों के खिलाफ सीबीआइ जैसी एजेंसियों द्वारा शुरु की गई कार्रवाई पर एक सवाल का जवाब दे रहे थे. यह पूछे जाने पर कि इन लोगों के खिलाफ कार्रवाई से क्या निर्णय करने की प्रक्रिया प्रभावित हुई है, मंत्री ने कहा कि यह कानून गलती को भ्रष्ट निर्णय के समान ही मानता है और यही वजह है कि 1991 के बाद से सरकार में निर्णय करना अत्यधिक कठिन हो गया है.
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