नयी दिल्ली: देश में तेजी से बढती महंगाई से परेशान मध्यम वर्ग के लोगों की जेब वस्तुओं के मुकाबले शिक्षा, इलाज, परिवहन जैसी सेवाओं की महंगाई के कारण ज्यादा ढीली हो रही है. उद्योग मंडल एसोचैम के एक अध्ययन के मुताबिक बुनियादी सेवाओं के मूल्यों में सालाना आधार पर कम-से-कम 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. जिससे लागत वृद्धि के मामले में वस्तुओं को सेवाओं से पीछे छोड दिया है.
अध्ययन के अनुसार, ‘कोचिंग समेत बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, व्यक्तिगत वाहनों की सेवाओं, निजी देखभाल से जुडी सेवाओं की लागत थोक मूल्य सूचकांक तथा उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की तुलना में अधिक तेजी से बढ रही है. इससे मध्यम वर्ग प्रभावित हो रहा है और उसे सालाना आधार पर औसतन कम-से-कम 25 प्रतिशत अधिक भुगतान करना पड रहा है. ‘उद्योग मंडल के इस सर्वे में परिवहन, शिक्षा तथा स्वास्थ्य जैसी जरुरी सेवाओं को शामिल किया गया है.
सूचना प्रौद्योगिकी और बैंकिंग सेवाएं भी महंगी हुई हैं. इसमें पाया गया कि मध्यम वर्ग द्वारा उपयोग की जाने वाली जरुरी सेवाओं के मूल्य में वृद्धि के साथ सेवा कर में वृद्धि से भी लोगों की मुश्किलें बढी हैं. जबकि दूसरी तरफ सरकार के राजस्व के नजरिये से सेवा कर ज्यादा महत्वपूर्ण होता जा रहा है.
एसोचैम ने कहा कि सेवाओं के उपयोग की उंची लागत का मतलब है कि ज्यादा कर का भुगतान क्योंकि शुल्क मूल्य वर्धित हैं.
एसोचैम के महासचिव डी एस रावत ने कहा, ‘सेवाओं की लागत बढने से मध्यम वर्ग का बजट प्रभावित हो रहा है. स्वास्थ्य सेवाओं की लागत का विश्लेषण करते हुए इसमें कहा गया है कि एक अनुमान के अनुसार डाक्टरों की फीस, विभिन्न प्रकार की जांच तथा अस्पतालों में इलाज का खर्चा पिछले पांच साल में 70 से 100 प्रतिशत तक बढ गया है.
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