मुंबई : भारत में जगह-जगह पर लोगों की प्राथमिकताएं बदलती हैं, और उसके साथ ही बदलती हैं उनकी पसंद और खरीदारी की वस्तुएं भी. जहां ग्रामीण भारत सोने की खरीदारी पर जोर देता है, वहीं शहरी आबादी कार, एसी आदि की खरीदारी को तवज्जो देता है.
नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन के (एनएसएसओ) आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि देश के विभिन्न हिस्सों की जरूरतें और प्राथमिकताएं अलग-अलग हैं. कहीं ज्यादा से ज्यादा उपभोग की संस्कृति पनप रही है, तो कहीं लोग बदलती तकनीक को अपनाने में लगे हैं. देशभर से इकट्ठा किये गये 2011-12 के एनएसएसओ के आंकड़ों की मानें तो खरीदारी की आदतों के मामले में ग्रामीण भारत शहरी क्षेत्र के मुकाबले बहुत ज्यादा पीछे नहीं है.
* शहरी आबादी कारों की दीवानी : वर्ष 2011-12 में शहरी आबादी का जोर नयी कार खरीदने पर ज्यादा रहा. वहीं, 2004-05 में लोग नयी कार खरीदने से ज्यादा घर खरीदने और उनकी मरम्मत पर ज्यादा खर्च करते थे.
* ऑटो सेक्टर को गांवों ने दी रफ्तार : 2004-05 से 2011-12 के बीच गांवों में दोपहिया और चारपहिया वाहनों की बिक्री का प्रतिशत शहरों के मामले में ज्यादा रहा. आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण भारत व्यक्तिगत वाहनों पर ज्यादा खर्च करने लगा है.
* रेडियो को कोई नहीं पूछता : मोबाइल फोन और टेलीविजन के इस दौर में अब रेडियो अपनी पहचान खो चुका है. जहां शहरी घरों से यह कई सालों पहले दूर होने लगा था, वहीं 2009-10 आते-आते यह गांवों से भी गायब हो गया.
* सोना कितना सोणा है
2009 और 2011 के बीच सोने की खरीदारी के मामले में ग्रामीण भारत शहरी आबादी से ज्यादा पीछे नहीं रहा. इस दौरान 4.9 प्रतिशत शहरी परिवारों ने सोना खरीदा, जिसमें औसत खरीदारी साढ़े 27 हजार रुपये के आसपास रही, जबकि 3.4 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों ने स्वर्णाभूषण खरीदे, जिस पर औसतन 25 हजार रुपये खर्च किये गये.
Disclaimer: शेयर बाजार से संबंधित किसी भी खरीद-बिक्री के लिए प्रभात खबर कोई सुझाव नहीं देता. हम बाजार से जुड़े विश्लेषण मार्केट एक्सपर्ट्स और ब्रोकिंग कंपनियों के हवाले से प्रकाशित करते हैं. लेकिन प्रमाणित विशेषज्ञों से परामर्श के बाद ही बाजार से जुड़े निर्णय करें.