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एनपीए का समाधान व्यवसाय को समाप्त करना नहीं, उसे बचाना है : जेटली

मुंबई : वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कर्ज के दबाव में फंसी कंपनियों को आश्वस्त करते हुए कहा कि उनके पुराने फंसे कर्ज (एनपीए) की समस्या का समाधान करने के पीछे मूल उद्देश्य कारोबार को समाप्त करना नहीं है, बल्कि उसे बचाना है. उन्होंने कहा कि नये दिवाला कानून ने उन कर्जदारों जो उसे समय […]

मुंबई : वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कर्ज के दबाव में फंसी कंपनियों को आश्वस्त करते हुए कहा कि उनके पुराने फंसे कर्ज (एनपीए) की समस्या का समाधान करने के पीछे मूल उद्देश्य कारोबार को समाप्त करना नहीं है, बल्कि उसे बचाना है. उन्होंने कहा कि नये दिवाला कानून ने उन कर्जदारों जो उसे समय पर कर्ज नहीं लौटा पाये और कर्ज देनेवालों के रिश्तों में उल्लेखनीय बदलाव ला दिया है. जेटली ने कहा, ‘एनपीए समस्या के समाधान के पीछे वास्तविक उद्देश्य संपत्तियों को समाप्त करना नहीं है, बल्कि उनके व्यावसाय को बचाना है. यह काम चाहे इन कंपनियों के मौजूदा प्रवर्तक खुद करें अथवा अपने साथ नया भागीदार जोड़कर करें या फिर नये उद्यमी आयें और यह सुनिश्चित करें कि इन मूल्यावान संपत्तियों को संरक्षित रखा जा सके.’

जेटली शनिवार को यहां देश के प्रमुख वाणिज्य एवं उद्योग मंडल सीआइआइ द्वारा आयोजित एक बैठक को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने नये दिवाला एवं शोधन अक्षमता कानून की जरूरत को बताते हुए कहा कि ऋण वसूली न्यायाधिकरणों के अपना काम प्रभावी तरीके से नहीं करने और उनके असफल रहने की वजह से यह कानून लाना पड़ा है. उन्होंने कहा कि प्रतिभूतिकरण और वित्तीय आस्तियों का पुनर्गठन एवं प्रतिभति हितों का प्रवर्तन (सरफेइसी) कानून शुरू के दो-तीन सालों के दौरान एनपीए को प्रभावी ढंग से नीचे लाने में सफल रहा था. लेकिन, उसके बाद ऋण वसूली न्यायाधिकरण उतने प्रभावी नहीं रहे जितना समझा गया था, जिसकी वजह से नया कानूना लाना पड़ा.

जेटली ने कहा कि दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (आइबीसी) नया कानून आने के बाद कर्जदार और लेनदार के रिश्तों में व्यापक बदलाव आया है. उन्होंने कहा, ‘हम कई सालों से एक ऐसी व्यवस्था में रह रहे हैं जिसमें कर्जदार को संरक्षण मिला हुआ था और परिसंपत्तियों को बेकार रखकर जंग लगने दिया गया.’ उन्होंने कहा, ‘वह पुरानी व्यवस्था जिसमें कर्ज देनेवाला कर्जदार का पीछा करते करते थक जाता था और आखिर में उसे कुछ हाथ नहीं लगता था अब समाप्त हो चुकी है. यदि कर्ज लेनेवाले को व्यवसाय में बने रहना है तो उसे अपने कर्ज की किस्त-ब्याज को समय पर चुकाना होगा अन्यथा उसे दूसरे के लिए रास्ता छोड़ना होगा.

मुझे लगता है कि कोई भी कारोबार करने का यही सही तरीका हो सकता है, यह संदेश स्पष्ट रूप से सभी तक पहुंच जाना चाहिए.’ विभिन्न काम धंधों और उद्योगों में फंसे पुराने कर्ज की समस्या का तेजी से और समयबद्ध समाधान करने पर जोर देते हुए जेटली ने उम्मीद जाहिर की कि जो समय सीमा तय की गयी हैं उनका पालन किया जायेगा तभी इसका प्रभावी क्रियान्वयन हो सकेगा. बैंकों का फंसा कर्ज यानी एनपीए इस समय नियामकीय संस्थाओं के लिये बडी समस्या बन चुका है.

मार्च 2017 की स्थिति के अनुसार विभिन्न बैंकों के कुल कर्ज में से 9.6 प्रतिशत राशि की वापसी नहीं हो रही है, जबकि दबाव में आया कुल कर्ज 12 प्रतिशत तक पहुंच गया है. इस स्थिति के बाद रिजर्व बैंक ने जून में 12 बडे कर्जदारों के नाम जारी किये जिनके उपर कुल मिलाकर 2,500 अरब रुपये का कर्ज है. इनमें से करीब करीब सभी मामले अब राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण के दायरे में हैं. कर्जदार कंपनियों के प्रवर्तक यदि किसी सतत समाधान अथवा नयी पूंजी के साथ आगे नहीं आते हैं तो इनका परिसमापन किया जा सकता है. जिन 12 कर्जदार कंपनियों के नाम जारी किये गये हैं वह रिवर्ज बैंक की उन 500 कंपनियों की सूची में शामिल हैं जो बड़े डिफाल्टर हैं.

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