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डबल रोटी की कई वैराइटी मार्केट में उपलब्ध, जानिए सेहत के लिए क्यों है फायदेमंद

अब मैदे की सफेद डबल रोटी के अलावा तरह तरह की डबल रोटियां नजर आने लगी हैं. ब्राउन ब्रेड को चोकर वाले आटे से बनाया जाता है. स्वाद फर्क होने के साथ ही इसे स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद समझा जाता है. मिल्क ब्रेड और फ्रूट ब्रेड मैदे से ही बनती हैं, पर बच्चे इन्हें चाव से खाते हैं.

कुछ लोगों का मानना है कि डबल रोटी का अपना जायका कुछ होता ही नहीं, पता नहीं हमारे फिरंगी हुक्मरान इसे कैसे खाते थे! मक्खन तथा जैम या चीज और अंडे के साथ तो इसे गले के नीचे उतार सकते हैं, वरना किस मुंह से यह हमारी नायाब रोटियों का मुकाबला कर सकती है! डबल रोटी पुर्तगालियों के साथ भारत पहुंची, इसीलिए पाव रोटी भी कहलाती है क्योंकि यही उनकी भाषा में रोटी का नाम है. खमीर चढ़ी ओवन में बेक की गयी रोटी हमारे लिए अजनबी बनी रही, पर आजादी के बाद हालात तेजी से बदले. ब्रैड पकौड़ा, पाव भाजी, पाव मिसल आदि आम आदमी की भूख सस्ते में मिटाने लगे हैं.

अब मैदे की सफेद डबल रोटी के अलावा तरह तरह की डबल रोटियां नजर आने लगी हैं. ब्राउन ब्रेड को चोकर वाले आटे से बनाया जाता है. स्वाद फर्क होने के साथ ही इसे स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद समझा जाता है. मिल्क ब्रेड और फ्रूट ब्रेड मैदे से ही बनती हैं, पर बच्चे इन्हें चाव से खाते हैं. इतालवी खाने के शौकीन सूप, पास्ता के साथ लहसुनी गार्लिक ब्रेड मंगवाने लगे हैं. दूसरे मसालों की ब्रेड भी उपलब्ध हैं. भारतीयों की पसंद को देखते हुए दलिया ब्रेड तथा मिश्रित अनाज वाली डबल रोटियां भी बाजार में प्रकट हो रही हैं. लंबे आकार की ‘फ्रेंच’ ब्रेड और न्यूयॉर्क की यहूदी आबादी की मनपसंद गोलाकार ‘बैगुएट’ भी हिंदुस्तान पहुंच चुकी हैं. एक खास डबल रोटी ‘क्रॉइसौं’ है, जिसे मोड़ कर क्रॉस की शक्ल दी जाती है. कुछ लोग इसे नाश्ते पर टोस्ट की जगह खाना पसंद करते हैं, तो कुछ अन्य इसे पेस्ट्रियों की सूची में शामिल करते हैं.

इधर बड़ी फैक्टरियों में बनने वाली डबल रोटियों की तुलना में ‘आर्टिजनल’ अर्थात छोटे पैमाने पर कुशल कारीगरों द्वारा बनायी डबल रोटियों का जायका ग्राहकों की जुबान पर चढ़ने लगा है. महानगरों में ही नहीं, आधुनिकता की दौड़ में आगे रहने वाले कस्बों में भी बड़ी सी गोलाकार ‘फूशिया’ डबल रोटी दिखाई देने लगी है, जिसमें जैतून और अन्य स्वादिष्ट पदार्थ भरे रहते हैं. इसका आनंद लेने के लिए न मक्खन की दरकार है, न प्रोसेस्ड चीज या किसी जैम की.

तब भी कुछ डबल रोटियां ऐसी हैं, जो हिंदुस्तानियों अभी तक लुभा नहीं पायी हैं. इनमें काली कलूटी ‘राय’ ब्रेड और ‘सावर डो’ ब्रेड है. सागर डो के लिए खट्टा पुराना खमीर तैयार करना आसान नहीं और ‘राय’ के खुरदुरे जायके का संगम जब तक पारंपरिक साथियों, मिसाल के लिए स्मोक्ड सॉल्मन मछली से न हो, यह अपना जादू जगाने में असमर्थ नजर आती है. इधर मोटे अनाजों (मिलेट्स) को प्रोत्साहित करने के लिए जो अभियान चल रहा है, उसे देख कर यह आशा जरूर जगती है कि भविष्य में हमें मडुआ, रागी, बाजरा और जौ की डबल रोटियों का स्वाद लेने का मौका मिल सकता है.

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