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गांधी जयंती के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने वैश्विक शांति के प्रति भारत के समर्पण और प्रतिबद्धता को रेखांकित किया है. दो अक्तूबर को इस विश्व संस्था ने अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा भी है. विगत 70 वर्षों के अस्तित्व में संयुक्त […]

गांधी जयंती के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने वैश्विक शांति के प्रति भारत के समर्पण और प्रतिबद्धता को रेखांकित किया है. दो अक्तूबर को इस विश्व संस्था ने अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा भी है.
विगत 70 वर्षों के अस्तित्व में संयुक्त राष्ट्र की उपलब्धियों की सराहना करते हुए स्वराज ने दुनिया के स्तर पर शांति और सुरक्षा को सुनिश्चित करने में संस्था की असफलता का उल्लेख भी किया. वैश्विक शांति की स्थापना के प्रयासों में संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना का उल्लेखनीय योगदान रहा है. अब तक विभिन्न देशों के 1.80 लाख से अधिक सैनिक अलग-अलग देशों और क्षेत्रों में काम कर चुके हैं. इनमें भारतीय सेना की संख्या सर्वाधिक रही है. आज भी आठ हजार से अधिक हमारे सैनिक संयुक्त राष्ट्र के नीले झंडे के नीचे कार्यरत हैं.
वैश्विक शांति के प्रति भारत की गंभीरता का यह बड़ा प्रमाण है. स्वराज ने इस बात का उल्लेख करते हुए आतंकवाद पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंता का आह्वान भी किया और इस मसले पर एक सम्मेलन बुलाने की मांग भी रखी. उन्होंने महासभा को याद दिलाया कि भारत ने यह प्रस्ताव 1996 में ही रखा था जिसे स्वीकार नहीं किया गया. आज भारत समेत दुनिया का लगभग हर देश कमोबेश आतंक की भयावह चुनौती का सामना कर रहा है. आतंक के जरिये पाकिस्तान तो दशकों से भारत के विरुद्ध अघोषित युद्ध का संचालन कर रहा है.
स्वराज ने बेहिचक दुनिया के सामने के भारत की चिंता को रखते हुए कहा कि शांति वार्ता के लिए भारत हमेशा से इच्छुक रहा है, परंतु पाकिस्तान के खतरनाक पैंतरे और आतंकवाद को उसका खुला समर्थन और शांति की कोशिशें एक साथ नहीं चल सकती हैं. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के चार-सूत्री पहलों को खारिज करते हुए स्वराज ने उफा के संयुक्त बयान का उल्लेख करते हुए कहा कि चार बिंदुओं की आवश्यकता नहीं है, बल्कि बस एक आधार ही पर्याप्त है- पाकिस्तान आतंक को प्रश्रय देना बंद करे.
अगर पाकिस्तान ऐसा करता है, तो भारत परस्पर बातचीत से विवादों के निबटारे के लिए तैयार है. एक तरफ पाकिस्तानी प्रधानमंत्री दशकों पुरानी राग अलाप रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ वैश्विक आतंकवाद को बढ़ाने में पाकिस्तान की भूमिका दुनिया के सामने स्पष्ट हो चुकी है. उम्मीद है कि स्वराज के सधे हुए संबोधन से पाकिस्तान का रवैया भी सुधरेगा और उस पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का दबाव भी बढ़ेगा.

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