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विश्वास करो कि तुम सक्षम हो
दक्षा वैदकर फेसबुक पर मेरी फ्रेंडलिस्ट में एक सज्जन हैं, अभिजीत नाम है उनका. वे अक्सर प्रेरणास्पद बातें लिखा करते हैं. कुछ दिनों पहले उन्होंने इंगलिश में एक लंबा आर्टिकल लिखा. उसका सार कुछ यूं था- ‘कितनी बार आपने किसी को मैसेज भेजने के बाद उसके जवाबी मैसेज का इंतजार किया है, जो कभी आया […]
दक्षा वैदकर
फेसबुक पर मेरी फ्रेंडलिस्ट में एक सज्जन हैं, अभिजीत नाम है उनका. वे अक्सर प्रेरणास्पद बातें लिखा करते हैं. कुछ दिनों पहले उन्होंने इंगलिश में एक लंबा आर्टिकल लिखा. उसका सार कुछ यूं था- ‘कितनी बार आपने किसी को मैसेज भेजने के बाद उसके जवाबी मैसेज का इंतजार किया है, जो कभी आया नहीं?
कितनी बार आप तैयार हो कर इस इंतजार में बैठे कि कोई आपको सुंदर कहेगा? कितनी बार आपने किसी के फोन का इंतजार किया है, ताकि आप खुश हो सको? कितनी बार आपने इस बात का इंतजार किया है कि कोई आयेगा और आपके द्वारा किये गये कामों को सराहेगा, ताकि आप आगे भी वह काम खुशी-खुशी कर सको? वह मैसेज जो कभी नहीं आया, वह फोन जो कभी नहीं बजा, वह तारीफ का शब्द, जो आपने कभी नहीं सुना? यह आपको धीरे-धीरे पीछे की ओर खींच रहा है और आप अपनी अहमियत खोते जा रहे हैं. बचपन से लेकर अाज तक आपको यह बताया गया है कि जितने लोग आपकी तारीफ करेंगे, आप उतने ही अच्छे साबित होंगे.
यह बात हमारे भीतर कुछ इस कदर भर गयी है कि अब हम हर चीज के लिए दूसरों पर निर्भर हो गये हैं. हम चाहते हैं कि कोई हमारी तारीफ करे, हमारे काम को सराहे, हमारे मैसेज का जवाब दे ताकि हम यह जान कर खुश हो सकें कि हम भी महत्वपूर्ण हैं, हमारी भी कोई पहचान है.
अब यह आदत हमें नुकसान पहुंचाने लगी है. समय आ गया है कि हम आइने के सामने खड़े हो जायें. खुद को गौर से देखें. प्रतिबिंब से बात करें. उससे कहें कि अब मैं खुद से प्यार करता हूं. हां, मैं बहुत काबिल हूं. मैं क्रिएटिव हूं. मैं सुंदर हूं. मैं बेस्ट काम करता हूं. मुझे किसी से तारीफ के शब्द सुनने की जरूरत नहीं. मैं क्यों किसी के मैसेज व फोन के इंतजार में खुद की खुशी कम करूं?
daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in
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