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जल्‍द ही हम साउथ की इंडस्‍ट्री को टक्‍कर देने के लिए तैयार होंगे: भूपेंद्र विजय सिंह

भोजपुरी इंडस्‍ट्री के प्रतिष्ठित निर्माताओं में से एक भूपेंद्र विजय सिंह हमेशा से अपने काम को लेकर सराहे जाते रहे हैं. गदर जैसी सुपरहिट फिल्‍में देने वाले भूपेंद्र विजय सिंह ने रंजन सिन्‍हा से बातचीत के दौरान भोजपुरी सिनेमा के उज्‍जवल भविष्‍य को देखते हैं और कहते हैं कि हालांकि यह इंडस्‍ट्री अभी दस साल […]

भोजपुरी इंडस्‍ट्री के प्रतिष्ठित निर्माताओं में से एक भूपेंद्र विजय सिंह हमेशा से अपने काम को लेकर सराहे जाते रहे हैं. गदर जैसी सुपरहिट फिल्‍में देने वाले भूपेंद्र विजय सिंह ने रंजन सिन्‍हा से बातचीत के दौरान भोजपुरी सिनेमा के उज्‍जवल भविष्‍य को देखते हैं और कहते हैं कि हालांकि यह इंडस्‍ट्री अभी दस साल पीछे है. मगर हाल के दिनों में जिस तरह से उन्‍नत तकनीक और क्‍वालिटी प्रोडक्‍शन का काम शुरू हुआ है, वो इस इंडस्‍ट्री के लिए शुभ संकेत हैं और जल्‍द ही हम साउथ की इंडस्‍ट्री को टक्‍कर देने के लिए तैयार होंगे. उन्‍होंने अपनी आने वाली फिल्‍म ‘पाकिस्‍तान में जयश्री राम’ के बारे में चर्चा करते हुए कई महत्‍वपूर्ण बातें बताई, जो आपके सामने पेश है-

आज निर्माता बड़े कलाकारों के साथ फिल्म बनाते हैं, आप नए लोगों को मौका देते हैं ऐसा क्यों ?

भोजपुरी सिनेमा को आगे बढ़ाने के लिए नई प्रतिभाओं को चांस मिलना बेहद जरूरी है. बड़े कलाकारों को लेकर तो अक्‍सर लोग हिट फिल्‍में दे देता है, मगर नए प्रतिभावान लोगों के साथ फिल्‍में बना कर हिट करवाना बड़ी चुनौती होती है और चुनौतियां मुझे पसंद है. वैसे मेरी पहली फ़िल्म पवन सिंह के साथ थी. मेरी पिछली फ़िल्म ग़दर भी पवन सिंह के साथ थी तो आपका इशारा शायद विक्रांत सिंह राजपूत की तरफ है. इसके लिए यही कहूंगा कि विक्रांत को मैंने वादा किया था और उसी वादे के लिए ‘पाकिस्तान में जय श्री राम’ बनाई.

विक्रांत में आप ऐसा क्‍या देखते हैं, जो उन्‍हें बड़े स्‍टारों से अलग करता है ?

विक्रांत में प्रतिभा और जोश काफी है, बस उसे एक शेप में ढालने की जरूरत है. इसलिए मैं यह भी नही कहूंगा कि वो फिल्‍म ‘पाकिस्‍तान में जयश्री राम’ की स्टोरी में फिट बैठे इसलिए विक्रांत को लिया. सच तो यह है कि विक्रांत के हिसाब से स्टोरी बनवाई गई, लेकिन विक्रांत ने भी खुद को उसके हिसाब से तैयार करने मे कोई कसर नही छोड़ी.

वहीं, बात विक्रांत के छोटे स्टार होने की है तो जब मैंने उनके साथ फिल्‍म करने की घोषणा की थी, तब कई शुभचिंतकों ने माना किया था. मगर उस लड़के में लगन और जज्‍बा इतना है कि वही लोग आज विक्रांत को साइन करने के लिए तरस रहे हैं. विक्रांत में सुपरस्‍टार की हर वो खूबियां है, जो उन्‍हें इंडस्‍ट्री में स्‍थापित करेगा. आपने वाले दिनों में विक्रांत का स्‍टारडम भी लोगों के सर चढ़कर बोलेगा. विक्रांत के बारे में एक बात और आज काफी दिलचस्‍प है कि विक्रांत को बिग बॉस और नच बलिये के ज़रिए भोजीवुड के बाहर भी पहचान मिली. आज मैं गर्व से कह सकता हूं की भोजपुरी के किसी भी अन्य स्टार के मुकाबले विक्रांत सिंह का नाम और चेहरा देश – विदेश मे ज़्यादा पहचाना जाता है.

कम आबादी होने के बाद भी 150 करोड़ में बनने वाली साउथ की फिल्‍में अपनी रिकवरी कर लेती है, मगर 13 करोड़ आबादी वाले भोजपुरी में एक करोड़ भी रिकवर करना मुश्‍किल होता है. क्‍यों ?

मैं तो यही कहूंगा कि समय की बात है. एक समय था जब दक्षिण में भी जितेंद्र -कमल हासन-रजनीकांत की हिंदी फिल्में चलती थीं. आज बिहार के लोग भी इंटरनेट पर दक्षिण की फिल्‍में देख रहे हैं. इसकी वजह है समय के साथ उन्‍होंने अपने अंदर बदलाव लाया. इसमें हम पीछे रह गए. मगर हाल के दिनों में हमने भी फिल्‍म मेकिंग को समय के अनुसार बदला है. आपको बता दें कि फिल्‍म ‘ससुरा बड़ा पैसेवाला’ शादी की सीडी जैसे शूट हुई थी. लेकिन आज भोजीवुड में दक्षिण के टेक्‍नीशियन काम कर रहे हैं. मैं खुद को फिल्‍म मेकिंग में अपडेट कर रहे हैं. जल्दी ही वो समय भी आएगा, जब हम दक्षिण भारतीय सिनेमा को टक्कर देंगे और फिर उससे आगे निकल जाएंगे. बस ज़रूरत है खुद पर भरोसा करने की और भेड़चाल से बाहर निकलने की, और ये मैं प्रोड्यूसर्स के लिए कह रहा हूं.

क्या आपको नहीं लगता कि भोजपुरी में भी क्लास की फिल्‍मों की कमी है ?

हां, ऐसी फिल्‍मों की कमी है और मैं समझता हूं ऐसी फिल्‍में ज़रूर आनी चाहिए, मगर मैं मानता हूं कि हम अभी मुख्यधारा से 10 साल पीछे हैं. इसका दोष मैं अपने दर्शकों को दूंगा. बतौर प्रोड्यूसर मेरा पहला लक्ष्य है कि मुनाफा हो या नहीं पर मेरी लागत ज़रूर वापस आ जाए, ताकि मैं अगली फिल्म उसी पैसे से बना सकूं. यदि दर्शको का सहयोग होगा, तभी हम लोग एक बड़ा कदम लेकर ये 10 साल का फासला एक शुक्रवार को तय कर सकेंगे.

पहले हर वर्ग के लोग सिनेमाघरों में भोजपुरी फिल्‍में देखने आते थे, मगर इन दिनों यह सिर्फ रिक्‍शा – ठेले वाले तक सीमित हो गया है. फिर से सभी वर्गों के बीच ले जाने के लिए आप क्‍या प्रयास कर रहे हैं ?

यहां मैं आपसे इत्तेफ़ाक़ नही रखता. ग़दर के समय की जो रिपोर्ट मुझे मिली थी, तब तमाम महिलाएं, परिवार, युवा सभी वर्ग के लोग फ़िल्म देखने आते थे. ये डिमांड और सप्लाई का मसला है, जैसा आपका प्रोडक्ट होगा, वैसी ही डिमांड होगी. स्तर का ध्यान तो हमे ही रखना होगा, तभी स्तरीय दर्शक आएंगे. वैसे व्यक्तिगत रूप से मेरा ये प्रयास रहता है की मेरी फिल्मो में अश्लीलता ना हो, आगे इस पर और भी ज़्यादा ध्यान दूंगा.

आने वाले दिनों में आपकी क्या योजनाएं है ?

अभी तो ‘पाकिस्‍तान में जयश्री राम’ की रिलीज़ और प्रमोशन की तैयारी चल रही है. अगली फिल्म ‘कर्मा’ की स्टोरी और कास्टिंग का काम शुरू हो गया है. इसकी शूटिंग सितंबर या अक्टूबर में शुरू हो जाएगी. मैं एक फ़िल्म खुद डायरेक्ट करने वाला हूं, उसकी भी तैयारी चालू है.

आप शेर भी अच्‍छा कह लेते हैं. चलते चलते एक शेर हो जाये ?

धन्‍यवाद. जीवन के सफर में आपको हर तरह के लोग मिलते हैं. कुछ साथ रह जाते हैं, कुछ आगे निकल जाते हैं तो कुछ पीछे छूट जाते हैं, मगर आपका ध्यान अपने लक्ष्य पर ही होना चाहिए. इसी पर ये लाइन है कि –
कुछ परिंदों को तो बस दो – चार दाने ही चाहिए,
मुझ को मगर, आसमानों के ख़ज़ाने चाहिए !!

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