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यहीं हैं वह 5 कारण, जिसकी वजह से नीतीश को भा गयी रामनाथ कोविंद की उम्मीदवारी

पटना : राष्ट्रपति चुनाव को लेकर अगर किसी राज्य में सबसे ज्यादा सियासी माहौल गरम है, तो वह है बिहार. बिहार में महागठबंधन की सरकार है. यहां राजद-जदयू और कांग्रेस, एक साथ तीन दलों कीसंयुक्त महागठबंधनकी सरकार है. राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में बिहार के पूर्व राज्यपाल रामनाथ कोविंद के नाम की घोषणा होने के […]

पटना : राष्ट्रपति चुनाव को लेकर अगर किसी राज्य में सबसे ज्यादा सियासी माहौल गरम है, तो वह है बिहार. बिहार में महागठबंधन की सरकार है. यहां राजद-जदयू और कांग्रेस, एक साथ तीन दलों कीसंयुक्त महागठबंधनकी सरकार है. राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में बिहार के पूर्व राज्यपाल रामनाथ कोविंद के नाम की घोषणा होने के बाद जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने तत्काल कोविंद से मुलाकात कर उन्हें बधाई दी. उसके बाद से यह कयास लगाये जा रहे थे कि जदयू का समर्थन कोविंद को जायेगा. आखिरकार, वही हुआ और जदयू ने आधिकारिक तौर पर कोविंद के नाम पर अपनी सहमति दे दी. हालांकि, इससे पूर्व जदयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने मीडिया से बातचीत में यह जरूर कहा था कि यह जरुरी नहीं है कि सहयोगी दलों की हर बात पर हम सहमत हों. अब इस मसले पर कांग्रेस और राजद आज फैसला लेंगे. आइए, उन पांच कारणों की पड़ताल करते हैं, जिसकी वजह से नीतीश को रामनाथ कोविंद की उम्मीदवारी भा गयी. आखिर नीतीश ने महागठबंधन से अलग जाकर रामनाथ कोविंद को क्यों सपोर्ट किया ?

1. सबसे बड़ी बात रामनाथ कोविंद का कार्यकाल पूरी तरह बेदाग रहा. बिहार सरकार और राजभवन के बीच किसी प्रकार का एक छोटा सा भी विवाद सामने नहीं आया. दोनों लोगों के बीच किसी प्रकार के मनमुटाव की खबरें सामने नहीं आयीं.

2. बिहार सरकार की ओर से शराबबंदी और निजी विवि को लेकर जो विधेयक विधानमंडल में पारित किया गया, उस पर रामनाथ कोविंद ने मुहर लगा दी. खासकर, जिस शराबबंदी कानून को लेकर

थोड़ी-बहुत चर्चा हो रही थी और नये उत्पाद कानून को काला कानून बताया जा रहा था, उससे परे जाकर रामनाथ कोविंद ने उस पर मुहर लगा दी.

3. बुधवार को विधायकों और नीतीश के साथ हुई बैठक में जदयू विधायक रत्नेश सदा ने मुख्यमंत्री के हवाले से साफ कहा कि रामनाथ कोविंद अच्छे व्यक्ति हैं और उन्हें हमलोगों को सपोर्ट करना चाहिए.

4. चौथा और जो महत्वपूर्ण कारण देखा जा रहा है, वह है कोविंद की साफ छवि के साथ उनका दलित होना. जानकारों के मुताबिक वह एक उदारवादी दलित चेहरा हैं, जिनका राजनीतिक सफर पूरी तरह बेदाग रहा. जदयू को यह पता है कि बिहार में दलित वोटबैंक भी है और वह जदयू को सपोर्ट करता है. कहीं कोविंद को सपोर्ट नहीं करने के बाद मामला उल्टा ना पड़ जाए.

5. नीतीश कुमार इससे पहले भी अपना अलग स्टैंड लेते रहे हैं. नोटबंदी का मामला हो या फिर कोई अन्य बात, वह अपने हिसाब से अपनी स्टाइल में किसी स्टैंड पर कायम हो जाते हैं. नीतीश ने 2012 में एनडीए के साथ रहते हुए भी यूपीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार को समर्थन किया था और अब महागठबंधन में रहते हुए कोविंद को समर्थन करेंगे.

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