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ग्लोबलाइजेशन से वापसी

डॉ भरत झुनझुनवाला अर्थशास्त्री इंगलैंड ने यूरोपियन यूनियन से बाहर आने का निर्णय लिया, जिसे ब्रेक्जिट यानी ब्रिटेन का यूरोपीय यूनियन से एक्जिट कहा जा रहा है. इंगलैंड के नागरिकों ने पाया कि हंगरी तथा पोलैंड जैसे तुलना में गरीब देशों से भारी संख्या में श्रमिक इंगलैंड में प्रवेश कर रहे हैं, इसलिए उनके रोजगार […]

डॉ भरत झुनझुनवाला

अर्थशास्त्री

इंगलैंड ने यूरोपियन यूनियन से बाहर आने का निर्णय लिया, जिसे ब्रेक्जिट यानी ब्रिटेन का यूरोपीय यूनियन से एक्जिट कहा जा रहा है. इंगलैंड के नागरिकों ने पाया कि हंगरी तथा पोलैंड जैसे तुलना में गरीब देशों से भारी संख्या में श्रमिक इंगलैंड में प्रवेश कर रहे हैं, इसलिए उनके रोजगार छिन रहे हैं.

क्योंकि यूरोपीय यूनियन के सभी सदस्य देशों के नागरिकों को किसी भी दूसरे सदस्य देश में नौकरी करने की छूट होती है. ब्रेक्जिट पर निर्णय लेने के लिए इंगलैंड में जनमत संग्रह कराया गया था. इसमें 52 प्रतिशत ने ब्रेक्जिट के पक्ष में मत डाले थे. अर्थशास्त्रियों और उद्यमियों ने इंगलैंड को ब्रेक्जिट से होनेवाली हानि की चेतावनी दी थी. टाटा समूह द्वारा इंगलैंड में जैगुआर कार का उत्पादन किया जाता है.

टाटा ने भी ब्रेक्जिट का विरोध किया था. तमाम उद्यमियों एवं अरबपतियों का मानना था कि दूसरे देशों के सस्ते श्रम के प्रवेश से अंत में इंगलैंड में श्रमिकों के रोजगार में वृद्धि होगी. सस्ते श्रम के प्रवेश से इंगलैंड में श्रमिकों के वेतन घटेंगे. श्रम सस्ता होने से यहां उद्योग ज्यादा लगेंगे और नये रोजगार उत्पन्न होंगे. इससे हंगरी के साथ इंगलैंड के नागरिक भी लाभान्वित होंगे. उद्योगों के विस्तार से इंगलैंड की सरकार को टैक्स अधिक मिलेगा.

उद्यमियों एवं अरबपतियों के तर्क में दम है. प्रमाण है कि प्रति वर्ष 3 लाख श्रमिक इंगलैंड में प्रवेश कर रहे हैं. यूरोपीय यूनियन की सदस्यता से इंगलैंड की अर्थव्यवस्था लाभान्वित हुई है और नये रोजगार बने हैं. फिर इंगलैंड के नागरिकों ने ब्रेक्जिट के पक्ष में वोट क्यों दिया? कारण है कि इंगलैंड के अपने नागरिकों के लिए यूरोपीय यूनियन की सदस्यता घाटे का सौदा रही है.

जो नये रोजगार बने हैं, वे बाहरी श्रमिकों ने हासिल किये हैं. इंगलैंड की परिस्थिति उस गृहस्वामिनी की है, जिसने किचन में बने अधिकाधिक भोजन को मेहमानों को परोस दिया और घर के प्राणी भूखे रह गये. इसी प्रकार यूरोपीय यूनियन की सदस्यता का लाभ उद्यमियों एवं अरबपतियों को हुआ है. इन्हें सस्ता श्रम मिला. यूरोप के बाजार में अपना माल बेचने की छूट मिली. यह सदस्यता यूरोपीय यूनियन के गरीब देशों के लिए भी लाभप्रद रही. लेकिन, इंगलैंड के अपने श्रमिकों के लिए यह सदस्यता घाटे का सौदा रही. अत: ब्रेक्जिट के पक्ष में मतदान हुआ.

भारत की परिस्थिति इंगलैंड सरीखी है. हमने विश्व व्यापार संगठन की सदस्यता को स्वीकार करके अपने उद्यमियों के लिए पूरे विश्व में अपने माल का निर्यात करना आसान बना दिया है. इसके साथ भारत को बांग्लादेश तथा नेपाल से श्रमिकों का पलायन भी बढ़ा है. मेरे पड़ोसी असम के हैं. वे बताते हैं कि बांग्लादेश से लगे जिलों में निम्न श्रेणी के रोजगार जैसे कुली, खेत मजदूर, रिक्शा चालक इत्यादि लगभग पूर्णतया बांग्लादेशी आगंतुकों के हाथ चले गये हैं. इन जिलों के भारतीय नागरिक दुकान चलाने जैसे कुछ कार्यों तक सिकुड़ गये हैं.

यानी जिस प्रकार से इंगलैंड में हंगरी की गृह सहायिका ने प्रवेश किया है, उसी प्रकार भारत में बांग्लादेश की गृह सहायिकाएं प्रवेश कर रही हैं. इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता है कि इंगलैंड में प्रवेश कानूनी था, जबकि भारत में यह गैरकानूनी है. अर्थव्यवस्था को इस कानूनी प्रपंच से कोई सरोकार नहीं होता.

स्पष्ट है कि भारत तथा इंगलैंड की स्थिति एक समान है. यदि इंगलैंड के नागरिकों के लिए यूरोपीय यूनियन के साथ मुक्त व्यापार घाटे का सौदा रहा है, तो हमारे नागरिकों के लिए डब्ल्यूटीओ के अंतर्गत मुक्त व्यापार भी घाटे का सौदा ही है. परंतु जिस प्रकार टाटा, जाॅर्ज सोरोस, तथा डोनाल्ड ट्रंप के लिए यूरोपीय यूनियन की सदस्यता काम का सौदा थी, उसी प्रकार भारत के उद्यमियों तथा अरबपतियों के लिए डब्ल्यूटीओ की सदस्यता लाभ का सौदा है. यही कारण है कि अमीरों का हित साधनेवाले हमारे मंत्री, नीति आयोग के गणमान्य सदस्य, आइएएस अधिकारी तथा विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर मुक्त व्यापार के गुणगान करने में थकते नहीं हैं.

इंगलैंड की प्रधानमंत्री टेरेसा मे ने कहा है कि ब्रेक्जिट के बाद भी विशेष कुशलता वाले आगंतुकों को वीजा दिया जाता रहेगा. रणनीति है कि इन कुशल कर्मियों के सहारे इंगलैंड की अर्थव्यवस्था में वृद्धि हासिल की जाये, जैसे साॅफ्टवेयर प्रोग्रामरों एवं वित्तीय विश्लेषकों के सहारे इंगलैंड को विश्व की पूंजी की राजधानी बनाये रखा जाये. तब इंगलैंड में वित्तीय क्षेत्र में ऊंचे वेतन के नये रोजगार बनते रहेंगे. इन ऊंचे कर्मियों द्वारा गृह सहायिकाओं को रोजगार दिया जायेगा.

गृह सहायिकाओं के वेतन वर्तमान से बढ़ जायेंगे, चूंकि हंगरी से सहायिका का आगमन नहीं होगा. अर्थात् अर्थव्यवस्था को कपड़े के उत्पादन जैसे निम्न कोटि के क्षेत्रों से हटा कर उच्च कोटि के वित्त, इंश्योरेंस एवं डिजाइन जैसे क्षेत्रों की तरफ बढ़ा दें, तो ब्रेक्जिट के कारण घरेलू वेतन में वृद्धि के बावजूद इंगलैंड में नये रोजगार बन सकते हैं. यही फाॅर्मूला हमें भी अपनाना चाहिए. अर्थव्यवस्था को हाइ स्किल उद्योगों की ओर मोड़ना चाहिए. तब हम महंगे घरेलू श्रम का भार वहन कर सकेंगे. मेक इन इंडिया को उच्च कोटि के उद्योगों तक सीमित करना चाहिए.

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