नई दिल्ली : यूक्रेन-रूस का विवाद जारी है. अमेरिका हमेशा यूक्रेन पर रूस की ओर से हमला किए जाने की आशंका जाहिर करने के साथ ही दावा भी कर रहा है. नाटो के सदस्य देश, यूरोपीय यूनियन और अमेरिका यूक्रेन के साथ खड़े हैं, जबकि चीन ने रूस के साथ खड़ा नजर आ रहा है. इस विवाद में वैश्विक स्तर पर दो धूरियां बनती दिखाई दे रही हैं. ऐसे में, भारत अभी पूरे माहौल पर नजर बनाए हुए है, लेकिन स्पष्ट कूटनीतिक कदम नहीं उठा पा रहा है. अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञों की मानें तो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दोस्ती, रूस के साथ भारत के पुराने रिश्ते और अमेरिका के दबाव की वजह से इस मामले में भारत कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रहा है. हालांकि, इस दौरान लाखों भारतीय मझधार में फंसे हुए जरूर दिखाई दे रहे हैं.
बताते चलें कि सोवियत संघ के जमाने में भारत-रूस के रिश्तों और दोस्ती को अंतरराष्ट्रीय स्तर की राजनीति में अभूतपूर्व माना जाता है. सोवियत संघ के टूटने और समय बदलने के साथ संबंधों की परिभाषा भी बदली, लेकिन दोनों देशों के आपसी रिश्तों में कमी नहीं आई. वर्तमान समय में भी साझा सुरक्षा चिंताओं ने दोनों देशों को आपस में जोड़ने का काम किया. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आपस में दोस्ती बढ़ी और भारत ने अपनी सेना के लिए एके-203 राइफल बनाने के लिए रूस के साथ 60 करोड़ डॉलर के संयुक्त उद्यम समझौता किया. इसके साथ ही, पिछले साल अमेरिका के विरोध के बावजूद भारत में रूस के साथ रक्षा मिसाइल प्रणाली खरीदने का फैसला किया.
रूस के रक्षा सौदों के बाद से ही अमेरिका लगातार भारत पर समझौता नहीं करने का दबाव बना रहा था. वह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी भागीदारी बढ़ाने के लिए दिखावे के तौर पर भारत के साथ रिश्तों को मजबूत करता दिखाई तो दिया, लेकिन ईरान परमाणु संधि को लेकर तैयार वियना समझौता से बाहर होने के बाद उसने भारत को तरजीही राष्ट्र से बाहर करने की चेतावनी भी दिया था, क्योंकि भारत ईरान के साथ पेट्रोलियम पदार्थों का कारोबार करने के साथ ही कई महत्वपूर्ण सामरिक समझौते भी किए थे.
रूस के साथ यूक्रेन का विवाद पैदा होने के बाद यूरोपीय यूनियन, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस समेत तमाम नाटो के सदस्य देश प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से यूक्रेन के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं. अंतराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञों की मानें तो यूक्रेन के साथ पश्चिम के वही देश खड़े नजर आ रहे हैं, जो कभी सोवियत संघ के विखंडन में अहम भूमिका निभाए थे. ऐसे में, यूक्रेन मामले को लेकर दुनिया में दो स्पष्ट धुरी बनती दिखाई दे रही है. पहली, धुरी उन देशों की है, जो यूक्रेन के साथ खड़े हैं और दूसरी धूरी वह है जो रूस के हितों के साथ खुद को जोड़कर खड़ा है. इस मामले में इन दोनों धुरियों के अपने-अपने हितों का टकराव है.
अब यूक्रेन-रूस विवाद को लेकर दुनिया में बन रहे दो धुरियों के बीच पश्चिमी देशों प्रतिबंधों के कारण रूस आर्थिक और सैन्य स्तर पर चीन के करीब चला गया है. वहीं, क्वाड के माध्यम से भारत की संलग्नता किसी भी तरह से रूस की तरफ नहीं है, बल्कि चीन के मुखर और व्यापक हितों के खिलाफ अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने के लिए है. नई दिल्ली की ओर से ‘शांतिपूर्ण समाधान’ की अपील की जा रही है. भारत की इस अपील के बाद चीन-पाकिस्तान-रूस का त्रिकोण बनता दिखाई दे रहा है.
भारत का प्रयास यह होगा कि वह चीन-पाकिस्तान-रूस के त्रिकोण को कमजोर करने के लिए इंतजार करेगा. हिंद-प्रशांत क्षेत्र की बढ़ती प्रमुखता के कारण मास्को और नई दिल्ली के बीच मतभेदों की एक शृंखला उभरती दिखाई दे रही है. नई दिल्ली का मानना है कि चीनी खेमे की तुलना में मास्को को अपने खेमे में रखना बेहतर है. रूस ने न केवल क्षेत्रीय, बल्कि वैश्विक मामलों में भी भारत के उदय और महत्व को स्वीकार किया है. इसीलिए भारत यूक्रेन-रूस के विवाद में संतुलित और स्वतंत्र रुख अख्तियार कर रहा है.
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रूस ने यूक्रेन संकट पर भारत के संतुलित और स्वतंत्र रुख की सराहना की है. पूर्वी यूरोप में स्थित देश (यूक्रेन) को लेकर उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के सदस्य देशों और रूस के बीच तनाव बढ़ने के मद्देनजर भारत के रुख पर रूस का यह बयान आया है. हालांकि, एक दिन पहले भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में कहा था कि ‘शांत एवं रचनात्मक कूटनीति’ वक्त की दरकार है और तनाव बढ़ाने वाला कोई भी कदम उठाने से बचना चाहिए.
उधर, अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने नाटो की एकता का झंडा बुलंद करते हुए रूस को चेतावनी दी है कि यदि राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन यूक्रेन पर हमला करते हैं तो अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगी कठोर पाबंदियों के साथ जवाब देने के लिए तैयार हैं. नाटो के महासचिव जेन्स स्टोलटनबर्ग के साथ बैठक में हैरिस ने संकट के समय गठबंधन द्वारा किए गए कार्यों के लिए उनका धन्यवाद किया. हैरिस ने स्टोलटनबर्ग से कहा कि हम कूटनीति के पक्षधर हैं और ऐसा ही चाहते हैं, क्योंकि यह रूस के साथ हुई हमारी बातचीत से जुड़ा है, लेकिन हम इसे लेकर भी प्रतिबद्ध हैं कि अगर रूस आक्रामक रवैया अपनाता है तो हम सुनिश्चित करेंगे कि इसको लेकर कड़ी पाबंदियां लगें.