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बांग्लादेश : जमात के शीर्ष नेता को मौत की सजा

ढाका : बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने मीरपुर के कसाई नाम से कुख्यात कट्टरपंथी जमात–ए–इस्लामी नेता अब्दुल कादर मुल्ला को 1971 के युद्ध अपराधों के लिए मौत की सजा सुनायी. आठ महीने पहले एक विशेष न्यायाधिकरण ने उसे उम्रकैद की सजा सुनायी थी. मुख्य न्यायाधीश एम मुजम्मिल हुसैन ने कहा, उसे मौत की सजा दी […]

ढाका : बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने मीरपुर के कसाई नाम से कुख्यात कट्टरपंथी जमातइस्लामी नेता अब्दुल कादर मुल्ला को 1971 के युद्ध अपराधों के लिए मौत की सजा सुनायी. आठ महीने पहले एक विशेष न्यायाधिकरण ने उसे उम्रकैद की सजा सुनायी थी.

मुख्य न्यायाधीश एम मुजम्मिल हुसैन ने कहा, उसे मौत की सजा दी जाती है. हुसैन की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ मुक्ति संग्राम के दौरान मानवता के खिलाफ अपराध के अब तक के पहले मुकदमे की शीर्ष अदालत ने समीक्षा की है.

जमात का चौथा शीर्ष नेता मुल्ला (65) ऐसा पहला नेता है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने दोषी करार दिया है और जिसकी खुद को सभी आरोपों से बरी किए जाने की अपील को खारिज कर दिया गया.

अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण द्वारा सुनाए गए फैसले के दो अपीलों की समीक्षा करते हुए शीर्ष अदालत ने 4-1 के बहुमत के साथ जमात नेता को मौत की सजा सुनायी. पीठ ने इस साल फरवरी में न्यायाधिकरण के फैसले के खिलाफ अपील पर यह सजा सुनायी. जमात के सहायक महासचिव को उम्रकैद की सजा सुनायी गयी थी.

मुल्ला को 13 जुलाई 2010 को तब गिरफ्तार कर लिया गया जब न्यायाधिकरण ने 28 मई 2012 को उसे निहत्थे नागरिकों पर हमला करने, उसे अंजाम देने और उसमें सक्रियता से हिस्सेदारी का दोषी पाया. उसके कारण भयानक नरसंहार, हत्याएं और दुष्कर्म की घटनाएं हुयी.

मुल्ला के वकीलों ने कहा कि वे इस फैसले पर शीर्ष न्यायालय से पुनर्विचार करने की मांग करेंगे क्योंकि यह अस्वीकार्य और आश्चर्यजनक है. ऐसा इसलिए कि देश के न्यायिक इतिहास में ऐसा मौका नहीं आया है, जब शीर्ष अदालत ने निचली अदालत द्वारा सुनायी गयी सजा में बढ़ोतरी की हो.

अभियोजन पक्ष ने कहा कि कानून के तहत बचाव पक्ष अगले एक महीने के भीतर समीक्षा याचिका दाखिल कर सकता है लेकिन शीर्ष अदालत को इसमें कोई गुणदोष नहीं नजर आता तो एक दिन के भीतर ही इसे खारिज किया जा सकता है.

पाकिस्तान से बांग्लादेश की स्वतंत्रता का विरोध करने वाली कट्टरपंथी पार्टी जमात इस्लामी के सहायक महासचिव 65 वर्षीय मुल्ला के बारे में दिए गए न्यायाधिकरण के फैसले से खासा विवाद उठ गया था.

1971 के दौर के बुजुर्गों और युवा पीढ़ी ने फैसले का विरोध किया क्योंकि उन्हें लगता है कि मुल्ला ने जो अपराध किए हैं उनकी तुलना में सजा अधिक कठोर नहीं है. व्यापक विरोध प्रदर्शनों के चलते सरकार को युद्ध अपराध मामलों की सुनवाई संबंधी कानून में संशोधन करना पड़ा और फैसले को चुनौती देने की बचाव पक्ष को मंजूरी भी दे दी गई.

बांग्लादेश में दो अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण वर्ष 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ हुए आजादी के संघर्ष के दौरान किए गए युद्ध अपराधों के रसूखदार आरोपियों के खिलाफ सुनवाई कर रहे हैं और अब्दुल कादर मुल्ला का मामला समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट आने वाला पहला ऐसा मामला है.

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