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प्रदूषण से घट रही है जीवन प्रत्याशा

पीएम 2.5 की सघनता के मामले में भारत विश्व का दूसरा सर्वाधिक प्रदूषित देश है. शिकागो यूनिवर्सिटी के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट (ईपीआईसी) के मुताबिक. 225 देशों में सबसे खराब वायु गुणवत्ता सूचकांक में नेपाल पहले स्थान पर है. वायु प्रदूषण से निपटने में भारत असफल रहा है. इससे 48 करोड़ लोगों की जीवन प्रत्याशा के […]

पीएम 2.5 की सघनता के मामले में भारत विश्व का दूसरा सर्वाधिक प्रदूषित देश है. शिकागो यूनिवर्सिटी के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट (ईपीआईसी) के मुताबिक. 225 देशों में सबसे खराब वायु गुणवत्ता सूचकांक में नेपाल पहले स्थान पर है. वायु प्रदूषण से निपटने में भारत असफल रहा है. इससे 48 करोड़ लोगों की जीवन प्रत्याशा के सात साल कम होने का खतरा है.

वर्ष 2013 से 2017 के नवीनतम नमूना पंजीकरण सर्वेक्षण के मुताबिक, भारत की जीवन प्रत्याशा 2011 की जनगणना के अनुसार, 67 वर्ष से बढ़कर 69 वर्ष हो गयी है.लेकिन वायु प्रदूषण के कारण मैदानी इलाकों वाले सात राज्यों- पंजाब, चंडीगढ़, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में औसत जीवन प्रत्याशा सात साल घटकर 62 वर्ष हो जाने की संभावना है.
सिंधु-गंगा क्षेत्र के निवासियों की जीवन प्रत्याशा कम होने का कारण 1998 से 2016 के बीच इन क्षेत्रों में वायु प्रदूषण में 72 प्रतिशत की वृद्धि है.वर्ष 1998 में यहां वायु प्रदूषण आज की तुलना में लगभग आधा था. तब उनकी जीवन प्रत्याशा 3.7 वर्ष कम हुई थी. साल 1998 से 2016 के दौरान इन राज्यों में पीएम 2.5 की मात्रा बाकी राज्यों की तुलना में दोगुनी थी.प्रदूषण के कारण 14 शहरों के निवासियों पर जीवन प्रत्याशा के 10 वर्ष कम होने का खतरा मंडरा रहा है. इन शहरों में दिल्ली सबसे ऊपर है.
निम्न मध्यम आयवाले देश ज्यादा प्रभावित
साल 2018 में जारी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के एक अध्ययन के मुताबिक, भारत जैसे निम्न और मध्यम आय वाले देशों में पांच वर्ष से कम आयु के सभी 98 प्रतिशत बच्चे पीएम 2.5 के उच्च स्तर के संपर्क में हैं. उच्च आय वाले देशों में, पांच वर्ष से कम आयु के 52 प्रतिशत बच्चे प्रभावित हैं. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, वायु प्रदूषण के कारण पांच वर्ष से कम उम्र के 10 में से एक बच्चे की मौत हो जाती है.

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