16.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

जारी हैं पाकिस्तान को अलग करने के कूटनीतिक प्रयास, जानें क्या है ओआइसी और क्‍यों जरूरी है भारत को इसमें शामिल होना

भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान स्थित तीन आतंकी शिविरों पर हवाई हमले के बाद विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट माइक पॉम्पियो और चीन, बांग्लादेश, अफगानिस्तान व सिंगापुर के विदेश मंत्रियों समेत पी5 देशों (सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य देश) व अन्य देशों से बात कर अपना पक्ष रखा और उन्हें […]

भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान स्थित तीन आतंकी शिविरों पर हवाई हमले के बाद विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट माइक पॉम्पियो और चीन, बांग्लादेश, अफगानिस्तान व सिंगापुर के विदेश मंत्रियों समेत पी5 देशों (सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य देश) व अन्य देशों से बात कर अपना पक्ष रखा और उन्हें समझाया कि सीमा पार स्थित आतंकी ठिकानों पर हमला करना भारत के लिए क्यों जरूरी हो गया था.
आधिकारिक सूत्रों की मानें, तो पाकिस्तान स्थित आतंकवादी ठिकानों पर भारत के हवाई हमले को बड़े पैमाने पर समर्थन मिला है और ज्यादातर देशों ने यह माना है कि भारत की यह कार्रवाई असैनिक थी जो स्थान विशेष पर की गयी थी और उसका इरादा सैन्य बलों व नागरिकों को नुकसान पहुंचाना नहीं था. हमले के बाद भारत के साथ मजबूती से खड़े ऑस्ट्रेलिया ने पाकिस्तान से जैश-ए-मोहम्मद, लश्करे तैयबा समेत आतंकी समूहों के खिलाफ त्वरित व अर्थपूर्ण कार्रवाई करने को कहा. इतना ही नहीं, 27 फरवरी को वुहान में हुए रूस-भारत-चीन (आरआइसी) समूह के त्रिपक्षीय सम्मेलन में चीनी विदेश मंत्री वैंग यी से मुलाकात के दौरान भी सुषमा स्वराज ने पुलवामा आतंकी हमले और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का मुद्दा उठाया था.
इससे पूर्व पुलवामा हमले के अगले ही दिन भारतीय विदेश सचिव नयी दिल्ली स्थित पी-5 देशों, सभी दक्षिण एशियाई देशों, जापान, जर्मनी, कोरिया सहित कई अन्य देशों के हेड ऑफ मिशन से भेंट की थी. वहीं, हमले के दो दिन बाद यानि 16 फरवरी को विदेश सचिव व अन्य सचिवों ने आसियान देशों, गल्फ को-ऑपरेशन कौंसिल, मध्य एशिया व अफ्रीकी देशों के राजदूतों से भेंट कर कूटनीतिक तरीके से पाकिस्तान को अलग-थलग करने का प्रयास जारी रखा.
महत्वपूर्ण है ओआइसी में भारत का शामिल होना
पुलवामा में सीआरपीएफ काफिले पर हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच उभरे तनाव के बीच एक मार्च को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अबू धाबी में 57 मुस्लिम बहुल देशों के संगठन ओआइसी (आर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन) को संबोधित किया. ओआईसी के विदेश मंत्रियों की इस बैठक में भारत को ‘गेस्ट ऑफ ऑनर’ के तौर पर आमंत्रित किया गया था.
पांच दशक में ऐसा पहली बार हुआ है जब इस संगठन की बैठक में भारत को बुलाया गया है. मुस्लिम आबादी के लिहाज से दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश भारत न तो ओआईसी का सदस्य है और न ही उसे इस संगठन ने पर्यवेक्षक राष्ट्र का दर्जा प्रदान किया है.
जबकि कम मुस्लिम आबादी वाले देश थाइलैंड और रूस को भी इस संगठन के पर्यवेक्षक का दर्जा मिला हुआ है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि शुरुआत से ही पाकिस्तान इस समूह में भारत के शामिल होने का विरोध करता रहा है. इस बार भी पाकिस्तान ने ओआईसी द्वारा भारत को दिये न्योते को रद्द करने की मांग की थी, लेकिन उसकी बात नहीं सुनी गयी. इससे नाराज पाकिस्तान ने बैठक का बहिष्कार कर दिया. इस तरह से देखा जाये तो यह जहां भारत की एक बड़ी कूटनीतिक जीत है, वहीं पाकिस्तान के लिए तगड़ा झटका है.
पाकिस्तान हमेशा से इस प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल भारत के खिलाफ करता आया है. इससे पहले 1969 में इस संगठन के पहले शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए भारत को न्योता दिया गया था, लेकिन तब पाकिस्तान की आपत्ति पर आखिरी वक्त में भारत को दिया न्योता रद्द कर दिया था और भारतीय प्रतिनिधिमंडल को बीच रास्ते से लौटना पड़ा था. हालांकि भारत के ओआईसी के कई सदस्य देशों से अच्छे संबंध हैं. कतर ने तो वर्ष 2002 में पहली बार भारत को पर्यवेक्षक का दर्जा देने का प्रस्ताव दिया था, वहीं तुर्की और बांग्लादेश भी भारत को इस संगठन का सदस्य बनाये जाने की मांग कर चुके हैं.
इस बार न्योता देने वाले यूएई, जिसके साथ पिछले कुछ वर्षों में हमारे संबंध काफी गहरे हुए हैं, की आबादी में एक तिहाई भारतीय हैं. ओआइसी से भारत को ऐसे समय न्योता आना, जब पुलवामा में सीआरपीएफ काफिले पर हुए आतंकी हमले के बाद वह पाकिस्तान को लेकर आक्रामक है और उसकी कूटनीतिक घेरेबंदी में लगा हुआ है, बेहद महत्व रखता है.
क्या है ओआइसी
ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन (ओआइसी) मुस्लिम देशों का संगठन है. 25 सितंबर, 1969 को मोरक्को की राजधानी रबात में मुस्लिम देशों के हुए सम्मेलन में इसकी स्थापना का फैसला लिया गया था.
इस्लामिक कॉन्फ्रेंस ऑफ फॉरेन मिनिस्टर (आईसीएफएम) की 1970 में पहली मीटिंग हुई थी. वर्ष 1972 में ऑर्गनाइजेशन ऑफ द इस्लामिक कॉन्फ्रेंस (वर्तमान में ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन) की स्थापना हुई. 57 सदस्यों वाले इस संगठन का मुख्यालय सऊदी अरब के जेद्दा में है. इसके मौजूदा महासचिव युसूफ बिन अहमद अल उसैमीन हैं.
Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel