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देश को नेता नहीं, नीयत और नीति की है जरूरत
वार्ता-चक्र सीताराम येचुरी, महासचिव, माकपा दिल्ली के प्रसिद्ध सेंट स्टीफन कॉलेज और जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी से पढ़े सीताराम येचुरी राजनीतिक तौर पर छात्र जीवन से ही सक्रिय रहे हैं. कई भाषाओं के जानकार येचुरी 1974 में स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया और फिर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हुए. आपातकाल में जेल गये और पार्टी […]
वार्ता-चक्र
सीताराम येचुरी, महासचिव, माकपा
दिल्ली के प्रसिद्ध सेंट स्टीफन कॉलेज और जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी से पढ़े सीताराम येचुरी राजनीतिक तौर पर छात्र जीवन से ही सक्रिय रहे हैं. कई भाषाओं के जानकार येचुरी 1974 में स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया और फिर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हुए. आपातकाल में जेल गये और पार्टी के विभिन्न पदों पर रहते हुए 19 अप्रैल 2015 को पार्टी के महासचिव चुने गये. राज्यसभा सांसद के तौर एक अलग पहचान बनायी. विभिन्न मुद्दों पर बेबाक राय रखने वाले येचुरी को गठबंधन बनाने में माहिर माना जाता है. 1996 में संयुक्त मोर्चा और 2004 में यूपीए के गठन में अहम रोल निभा चुके सीताराम येचुरी फिलहाल पार्टी को मजबूत करने की दिशा में काम कर रहे हैं. मौजूदा राजनीतिक हालात और अन्य मुद्दों पर प्रभात खबर संवाददाता विनय तिवारी की माकपा महासचिव से बातचीत के अंश.
Qमोदी सरकार के चार साल का कार्यकाल कैसा रहा? इस सरकार की सबसे बड़ी विफलता आप क्या मानते हैं?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चार साल का कार्यकाल पूरी तरह नकारात्मक रहा है. इस सरकार के दौरान देश कई चुनौतियों का सामना कर रहा है. मौजूदा समय में देश का कोई भी क्षेत्र उदारवादी आर्थिक नीति से अछूता नहीं है. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण बड़े पैमाने पर किया गया. शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र भी निजीकरण से अछूता नहीं है. हाल में एक रिपोर्ट आयी है कि अपने स्वास्थ्य पर खर्च करने के कारण देश के कई करोड़ आम आदमी गरीब हो गये हैं. नोटबंदी और जीएसटी उदारीकरण का अगला चरण था. नोटबंदी के कारण असंगठित क्षेत्र पूरी तरह बर्बाद हो गया. नोटबंदी का फैसला उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया, जबकि असंगठित क्षेत्र में करोड़ों लाेग काम करते हैं. सरकार के एक गलत फैसले से करोड़ों लोगों की जिंदगी बर्बाद हो गयी. उदारवादी आर्थिक नीतियों के कारण देश में संपत्ति की लूट हो रही है.
Qसरकार का कहना है कि मौजूदा समय में आर्थिक विकास दर 7 फीसदी से ऊपर है. नोटबंदी और जीएसटी से आर्थिक विकास को गति मिली है. विपक्ष लोगों में भ्रम फैलाने के लिए इन फैसलों का विरोध कर रहा है.
नोटबंदी के फैसले से आम लोगों को कोई राहत नहीं मिली. अपने पैसे के लिए लोगों को बैंकों के सामने घंटों लाइन में लगना पड़ा. रोजगार का सबसे बड़े स्रोत असंगठित क्षेत्र पूरी तरह बर्बाद हो गया. सरकार का दावा था कि इससे बड़े पैमाने पर कालाधन आयेगा, लेकिन रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार 99 फीसदी पैसे बैंकों के पास वापस आ गये. फिर कालाधन कहां चला गया? देश पर लाखों करोड़ रुपये का उधार है. उधार पर ब्याज देने में ही 11.50 लाख करोड़ रुपये चला जाता है. बड़े लोगों ने हजारों करोड़ रुपये का कर्ज बैंकों से ले रखा है. वे इसे देने की बजाय देश छोड़कर ही चले जाते हैं. बिना सरकार की जानकारी के एेसा संभव नहीं है. आज देश के 73 फीसदी संसाधनों पर एक फीसदी लोगों का कब्जा है. समाज में आर्थिक असमानता बढ़ रही है. वहीं जीएसटी से छोटे दुकानदारों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. सरकार की नीतियों का खामियाजा आम लोगों को उठाना पड़ रहा है. बैंकों का एनपीए लगातार बढ़ता जा रहा है.
Qसरकार सबका साथ और सबका विकास की बात करती है. वहीं विपक्ष का आरोप है कि देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ा है. भाजपा का आरोप है कि विपक्षी दल धर्मनिरपेक्षता के नाम पर ध्रुवीकरण की राजनीति को बढ़ावा दे रहे हैं. क्या मोदी सरकार बनने के बाद ही सांप्रदायिक ध्रुवीकरण तेज हुआ है?
पिछले चार साल की घटनाओं को देखते हुए साफ तौर पर कहा जा सकता है कि देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण तेज हुआ है. दलित और आदिवासियों पर अत्याचार भाजपा शासित राज्यों में काफी बढ़ गया है. गाय के नाम पर लोगों की हत्याएं हो रही है. भाजपा के नेता पीड़ित को मदद देने की बजाय आरोपियों को मदद पहुंचाने का काम कर रहे हैं. एंटी रोमियो दस्ता, श्रीराम सेना जैसे संगठन के जरिये भय का वातावरण पैदा किया जा रहा है. ये संगठन निजी आर्मी के तौर पर काम कर रहे हैं. देश के लोगों के पहनावे, खाने पर नियंत्रण की कोशिश हो रही है. लव जिहाद के नाम पर धार्मिक आधार पर समाज को बांटने का काम हो रहा है. इन कारणों से देश का सामाजिक ताना-बाना बिखर रहा है और हालात काफी खतरनाक होते जा रहे हैं. देश की एकता और अखंडता मुश्किल में हैं. आरएसएस का राजनीतिक अंग है भाजपा. आरएसएस का उद्देश्य देश को हिंदू राष्ट्र बनाने का है. हिंदुत्व के नाम पर सामाजिक सौहार्द बिगाड़ा जा रहा है. ऐसे में सरकार का सबका साथ सबका विकास सिर्फ दिखावा है.
Qविपक्ष ने मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की कोशिश की. चुनाव आयोग की मंशा पर सवाल उठाये गये. आखिर क्या कारण है कि विपक्षी दल संवैधानिक संस्थाओं पर लगातार हमले कर रहे हैं? क्या राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए ऐसा नहीं किया जा रहा है?
मौजूदा सरकार संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने की कोशिश कर रही है. संसदीय प्रणाली पर हमला किया जा रहा है. जवाबदेही से बचने के लिए संसद का सत्र छोटा किया जा रहा है. सत्ताधारी दल के लोग संसद के कामकाज को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों ने मुख्य न्यायाधीश के कामकाज पर सवाल उठाये.
देश के इतिहास में पहली बार न्यायाधीशों को अपनी बात कहने के लिए प्रेस कांफ्रेस करना पड़ा. चुनाव आयोग के कामकाज पर प्रश्नचिह्न लगा है. कई पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों ने भी मौजूदा चुनाव आयुक्त से मिलकर आयोग की विश्वनीयता कम होने की बात कही है. लाॅ कमीशन हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाने का काम कर रहा है. सरकार लोकसभा और विधानसभा का चुनाव एक साथ कराने की बात कर रही है, लेकिन संविधान में जब तक धारा 356 का प्रावधान रहेगा, एक साथ चुनाव कराना संभव नहीं है.
अगर किसी राज्य में चुनाव के बाद हालात ऐसे बनें कि चुनी हुई सरकार को हटाना पड़े, तो फिर वहां क्या बचे कार्यकाल के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया जायेगा? ऐसा करना लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन होगा. सरकार चुनाव को राष्ट्रपति प्रणाली में बदलने पर आमदा है. फायदे के लिए पूरी व्यवस्था को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है. मीडिया से लेकर विपक्षी दलों तक को नियंत्रित करने की कवायद जारी है. एक तरह से देश में अघोषित आपातकाल जैसे हालात हैं. जनवादी अधिकार के रास्ते बंद किये जा रहे हैं.
Qप्रधानमंत्री ने कई देशों का दौरा किया है और विदेशों में भारत की एक अलग पहचान बनी है. भारत की विदेश नीति देश की सामरिक और आर्थिक जरूरतों के आधार पर तय की जा रही है. क्या विदेश नीति के मोर्चे पर सरकार ने बेहतर काम नहीं किया है?
विदेश नीति के मोर्चे पर सरकार पूरी तरह असफल साबित हुई है. पहले भारत की विदेश नीति विकासशील देशों के अगुआ के तौर पर थी, लेकिन मोदी सरकार के दौरान यह अमेरिकी नीति की पिछलग्गू हो गयी है. देश के सैन्य संस्थानों के उपयोग की इजाजत अमेरिका को दी गयी है. आज अमेरिका, इस्राइल और भारत का एक गठजोड़ बन गया है.
पड़ोसी देशों के साथ पहले की तुलना में रिश्ते खराब हुए है. चीन पर नियंत्रण लगाने के लिए अमेरिका की मदद की जा रही है. आज भारत की विदेश नीति देश हित की बजाय अमेरिकी हितों को साधने का माध्यम बन गयी है. पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका और मालदीव जैसे देशों के साथ रिश्ते अच्छे नहीं रहे गये हैं. भारत, अमेरिका और इस्राइल का गठजोड़ देश को नुकसान पहुंचाने वाला है.
Qएक ओर वैश्विक स्तर पर लोगों का रुझान वामपंथ की ओर बढ़ रहा है, ऐसे में क्या कारण है कि भारत में वामपंथी दलों की भूमिका सीमित होती जा रही है?
आर्थिक उदारीकरण के बाद आर्थिक शोषण बढ़ा है. वामपंथी पहले से आर्थिक शोषण के खिलाफ संघर्ष करते रहे हैं, लेकिन देश में सामाजिक शोषण भी एक बड़ी समस्या है. अब वामपंथी विचारधारा के लोग सामाजिक शोषण के खिलाफ भी संघर्ष कर रहे हैं. जन आंदोलनों को मजबूत करने के लिए 186 संगठनों को एक साथ लाने की काेशिश हम कर रहे हैं. इसमें वामपंथी और दलित संगठन शामिल हैं. इन संगठनों के बीच तालमेल को मजबूत किया जा रहा है. समाज में आर्थिक के साथ-साथ सामाजिक शोषण होता रहा है.
अब इन दोनों शोषण के खिलाफ हम संघर्ष कर रहे हैं. इन जन आंदोलनाें के जरिये भाजपा के खिलाफ माहौल तैयार किया जा रहा है. वामपंथी ताकत की तुलना चुनावी नतीजों से नहीं की जा सकती है. हाल के दिनों में हमारी चुनावी ताकत कम हुई है, लेकिन एजेंडा प्रभावित करने की क्षमता अभी भी बनी हुई है. सामाजिक शोषण के खिलाफ हमारी लड़ाई कमजोर होने के कारण चुनावी लाभ नहीं मिल पाया है, लेकिन अब दोनों मोर्चे पर हम संघर्ष कर रहे हैं.
Qविपक्षी दल भाजपा के खिलाफ महागठबंधन बनाने की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन इन दलों के बीच वैचारिक तौर पर मतभेद को देखते हुए नेतृत्व का चयन करना मुश्किल होगा. ऐसे में बिना नेतृत्व के विपक्षी दल भाजपा का मुकाबला कैसे कर पायेंगे?
गठबंधन की राजनीति पर गौर करें, तो चुनाव के बाद ही नेता का चयन किया गया है. आपातकाल के बाद जनता पार्टी ने बिना नेता के चुनाव लड़ा. 1996 में संयुक्त मोर्चा बना और इसे भाजपा के अलावा वामपंथी पार्टियों ने समर्थन दिया. चुनाव के बाद वीपी सिंह को नेता चुना गया. 2004 में यूपीए ने चुनाव लड़ा और नतीजों के बाद नेता का चयन किया गया. देश में चुनाव के बाद ही राजनीतिक फ्रंट बनते रहे हैं. हर राज्य के राजनीतिक हालात अलग-अलग होते हैं. इन राज्यों के हालात को देखते हुए प्रदेश स्तर पर तालमेल करने की कोशिश होगी. ऐसे में मौजूदा समय में फेडरल फ्रंट की संभावना काफी कम है और चुनाव के बाद विपक्षी दल नेता का चयन कर लेंगे.
Qदेश में रोजगार और कृषि संकट को लेकर विपक्ष हमलावर रहा है. कई राज्यों में किसान कर्जमाफी की मांग कर रहे हैं. वर्ष 2008 में किसानों की कर्जमाफी की गयी, लेकिन हालात नहीं बदले. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कर्जमाफी से कृषि संकट को दूर किया जा सकता है?
मोदी सरकार ने हर साल दो करोड़ युवाओं को रोजगार देने का वादा किया था, लेकिन आंकड़ों पर गौर करें तो रोजगार घट रहे हैं. संगठित क्षेत्र में रोजगार के अवसर लगातार कम हो रहे हैं. बड़े उद्योगपतियों को बड़े पैमाने पर कर्ज दिये गये. लगभग 11.50 लाख करोड़ रुपये बैंकों के डूब गये हैं.
अगर इसका आधा भी इंफ्रास्ट्रक्चर विकास पर खर्च किया गया होता, तो करोड़ों लोगों को रोजगार मिलता. देश में साधनों की कमी नहीं है, बल्कि नीति और नीयत की कमी है. उसी प्रकार देश में किसानों की आत्महत्या लगातार बढ़ रही है. सरकार कॉरपोरेट के 2.65 लाख करोड़ रुपये माफ कर देती है, लेकिन किसानों के कर्जमाफ करने को तैयार नहीं है. एक बार किसानों की पूर्ण कर्जमाफी होनी चाहिए. बिना कर्जमाफी के अन्नदाताओं का भला नहीं होने वाला है. कॉरपोरेट मुनाफा कमाने के लिए काम करता है, जबकि किसान आजीविका के लिए काम करता है. कृषि संकट के कारण समाज में अलगाव पैदा हो रहा है. आज देश को नेता नहीं, नीति की जरूरत है, जो समग्र विकास के रास्ते पर देश को आगे ले जा सके.
इमरान की िजंदगी पर से पर्दा हटाया रेहम ने
आजकल चारों तरफ एक ही बुक की चर्चा है, ‘रेहम खान’. इमरान की जिंदगी को सिर्फ सेक्स, ड्रग्स और राजनीति के नशे में धुत बताने वाली इस पुस्तक को लोग हाथों-हाथ ले रहे हैं. यूं तो रिलीज से पहले ही रेहम की यह विवादास्पद बायोग्राफी चर्चा में आ गयी थी, लेकिन लोगों के हाथों में आने के बाद तो जैसे धमाका ही हो गया. किताब में उन्होंने न सिर्फ पूर्व क्रिकेटर व राजनीतिज्ञ इमरान खान पर सनसनीखेज आरोप लगाया है, बल्कि पाकिस्तान की राजनीति में फैली गंदगियों और कुरीतियों की भी चर्चा की है. रेहम की किताब में ऐसे कई खुलासे किये गये हैं, जिन पर विश्वास करना कठिन है, लेकिन इस किताब की ज्यादातर बातें उन्होंने किसी-न- किसी के हवाले से लिखी हैं.
ट्रांसजेंडरों का भी रखते थे शौक
रेहम लिखती हैं कि एक बार एक महिला पत्रकार मुझसे मिली. उसने पाकिस्तानी फिल्म अभिनेत्री रेशम का हवाला देते हुए कहा कि ट्रांसजेंडर डांसर रिमाल आजकल इमरान को अपनी सेवाएं दे रहा है. इतना सुनने के बाद रेहम हैरान रह गयी. रेहम की हैरानी से वह पत्रकार हतप्रभ रह गयी. उन्हें समझ में नहीं आया कि रेहम, इमरान के बारे में इतना कम कैसे जानती हैं.
पुरुषों के साथ थे लिव इन में इमरान
अपनी पुस्तक में रेहम ने दावा किया है कि उनके पूर्व पति इमरान खान समलैंगिक हैं. वह लंबे समय तक एक आदमी के साथ लिव-इन में भी रहे थे. रेहम ने लिखा है कि लंदन में रहने वाले बिजनेस मैन बुखारी के इमरान के साथ नाजायज ताल्लुकात हैं और वह इमरान खान के हरम का मुखिया है. पुस्तक में बुखारी के बारे में यह लिखा गया है कि उन्होंने एक युवा महिला के गर्भपात की व्यवस्था करवायी, जिसके गर्भ में इमरान खान का बच्चा था. उनके पार्टी के कुछ नेताओं के साथ संबंध रह चुके हैं. इमरान खान के अलावा रेहम ने पाकिस्तानी एक्टर हमजा अली अब्बासी और तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के नेता मुराद सईद पर भी समलैंगिक होने के आरोप लगाये हैं.
ज्यादा उम्र की महिलाओं से भी संबंध
इमरान का सेक्सुअल एडवेंचर उनके क्रिकेट करियर से पहले ही शुरू हो गया था. इमरान ने बचपन में ही अपनी उस नौकरानी के साथ रिश्ते बनाये, जो उनकी देखरेख में लगायी गयी थी. एक दिन रेहम से बातचीत के दौरान इमरान ने बताया कि उनकी उनसे बड़ी कजन ने तब खुद को उनके साथ छूने के लिए दबाव डाला जबकि वह दस साल के भी नहीं थे. वह शादीशुदा होते हुए भी लगातार कई महिलाओं के साथ फ्लर्ट करते रहते. पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी में काम करने वाली कई महिला कार्यकर्ताओं के साथ इमरान के संबंध थे. रेहम कई बार खुद इमरान और उन महिलाओं के बीच हुई अश्लील बातों का चैट मोबाइल में देख चुकी हैं.
इसके अलावा इमरान का अपनी वाइफ या किसी दूसरी औरतों से बात करने का तरीका बेहद गलत था. रेहम के मुताबिक इमरान ने एक बार उन्हें कहा था कि उनका अफेयर एक अभिनेत्री से चल रहा है. वह अभिनेत्री 70 के दशक में काफी मशहूर थी और इमरान से उसका रिश्ता काफी समय तक चला था.
कोकीन को वाइन की तरह लेते थे
रेहम लिखती हैं कि इमरान ने ड्रग्स का सेवन बाद में शुरू किया. इमरान के मुताबिक पहली बार उन्होंने कोकीन तब ली, जब उनकी पहली पत्नी जेमिमा बच्चों को उनसे दूर ले गयीं. उनकी पार्टी के संस्थापक सदस्य उनकी आदत से वाकिफ थे. रेहम से उन्होंने कहा था कि कोकीन उसी तरह है जैसे आधी गिलास वाइन. इमरान खान के ड्रग्स की आदत के बारे में रेहम ने लिखा है उन्होंने इमरान को बाथरूम में कोक सूंघते हुए पकड़ा था. उन्होंने किताब में दावा किया है कि इमरान हेरोइन भी लेते हैं.
लालची और मौकापरस्त हैं इमरान
इमरान अपनी पूर्व पत्नी जेमिमा के भाई यानि साले जैक के काफी करीब रहे हैं. रेहम लिखती हैं कि एक दिन एक गर्मागर्म बहस के बाद इमरान ने जेमिमा को चांटा जड़ दिया. वह उसी समय जेमिमा को तलाक देना चाहते थे तब जैक ने उनसे कहा वह उनकी बहन को तलाक नहीं दें. इमरान मान गये. दरअसल, इमरान इस परिवार के बहुत अच्छे दोस्त ही नहीं थे बल्कि उनको लगता था कि उनके ससुर जेम्स गोल्डस्मिथ ही उनका जीवन संवार सकते हैं. जेम्स, ब्रिटेन के सबसे धनी और राजनीतिक तौर पर काफी संपर्कों वाले शख्स थे. 90 के दशक में उन्होंने रेफरेंडम पार्टी बनायी थी.
अंधविश्वासी प्रवृत्ति है इनकी
किताब में रेहम ने यह भी दावा किया है कि इमरान खान कुरान नहीं पढ़ सकते, उनका काला जादू पर विश्वास है. एक बार तो एक पीर की सलाह पर इमरान ने काली दाल को अपने पूरे शरीर पर लगा लिया था. इतना ही नहीं, इमरान एक क्रिमनल माइंडेड पर्सन भी हैं.
इमरान से निकाह एक भूल : रेहम
बता दें कि एक इंटरव्यू में रेहम खान ने कहा था कि मैंने यह किताब इसलिए लिखी है ताकि मेरे अनुभव किसी दूसरे की मदद कर सकें. रेहम खान बीबीसी में पत्रकार रह चुकी हैं. टेलीविजन एंकर रही रेहम खान ने जनवरी 2015 में इमरान खान से विवाह किया था, लेकिन 10 महीने बाद अक्टूबर 2015 में ही दोनों का तलाक हो गया. रेहम खान ने इस इंटरव्यू में कहा था कि इस किताब में मैंने अपनी गलतियों का भी जिक्र किया है. रेहम ने कहा कि वह इमरान से एक पत्रकार के तौर पर मिली थी, लेकिन उन्हें हमेशा वह एक घमंडी आदमी लगे. मैंने उस व्यक्ति से विवाह क्यों किया. आजतक मैं समझ नहीं पायी. मुझे लगता है कि सभी लड़कियों को यह बात समझनी बहुत जरूरी है. मेरा मकसद लड़कियों में जागरूकता पैदा करना है, क्योंकि जब वे पाकिस्तान में अपने मतों का प्रयोग करेंगी तो यह बात उनकी मदद करेगी.
वसीम अकरम थे सेक्सुअल फैंटसीज का शिकार
रेहम ने पाकिस्तानी क्रिकेटर वसीम अकरम पर भी अपनी सेक्सुअल फैंटसीज को पूरा करने के लिए उनकी पत्नी का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था. रेहम के मुताबिक, वसीम ने अपने सामने अपनी पत्नी को एक अश्वेत आदमी के साथ सेक्स करने को मजबूर किया. रेहम के मुताबिक वसीम अकरम खुद उसे अपनी पत्नी के साथ सेक्स करते हुए देख रहे थे. वसीम अकरम ने इसपर रेहम खान को कानूनी नोटिस भी दिया है.
क्रिकेटर सकलैन मुश्ताक पर फिदा थे इमरान
अपनी क्यूट स्माइल और अच्छे लुक के लिए जाने जाने वाले क्रिकेटर सकलैन मुश्ताक इमरान की पसंद थे. रेहम लिखती हैं कि इमरान जिस तरह सकलैन मुश्ताक के बारे में बातें करते थे, उससे लगता था कि उनका दिल सकलैन पर आया हुआ है. एक बार तो उन्होंने जिस तरह से सकलैन के प्रति अपने आकर्षण का इजहार किया, उसने मुझको डिस्टर्ब कर दिया. रेहम ने कहा कि वह जिस तरह से सकलैन की बात बताते थे उससे साफ हो गया था कि वह दोस्ती से बढ़कर कुछ और है.
पीटीआइ नेता आयशा ने लगाया था अश्लील मैसेज भेजने का आरोप
इमरान की पार्टी की एक महिला नेता आयशा गुलालई ने इमरान खान पर अश्लील मैसेज भेजने का आरोप लगाया था. इन अश्लील मैसेजों से परेशान होकर पीटीआइ महिला नेता आयशा ने कहा कि मैं चंद पैसों के लिए अपनी ईमानदारी, सम्मान और इज्जत से कोई समझौता नहीं करूंगी. उन्होंने कहा था कि इमरान मानसिक समस्या के शिकार हैं. आरोप लगाने के बाद महिला नेता आयशा ने पार्टी और नेशनल असेंबली दोनों की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था.
उन्होंने पार्टी के चीफ इमरान पर आरोप लगाया था कि पीटीआइ से जुड़ी महिला नेताओं की इज्जत खतरे से खाली नहीं है. आयशा ने कहा था कि इमरान द्वारा भेजे गये मैसेज इतने अश्लील होते थे कि उनके बारे में बताया नहीं जा सकता. आयशा ने इमरान पर यह भी आरोप लगाया था कि इमरान खान पाकिस्तान को इंग्लैंड समझता है और वह मानसिक समस्या का शिकार है. बेहतर लोगों से जलना उसकी आदत है. वह एक चरित्रहीन तथा दो नंबर का आदमी है.
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