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विविध तकनीकों के सहारे मुमकिन होगी हृदय की मरम्मत!
भारत समेत दुनिया के अन्य देशों में हार्ट डिजीज का जोखिम बढ़ता जा रहा है. हालांकि, मेडिकल वैज्ञानिक इससे बचाव के लिए अनेक तरीके विकसित कर रहे हैं. लेकिन, ये तरीके अब तक पूरी तरह से कामयाब नहीं हो पा रहे हैं, लिहाजा इसके लिए नयी तकनीकों से हार्ट की मरम्मत और इसके दोबारा से […]
भारत समेत दुनिया के अन्य देशों में हार्ट डिजीज का जोखिम बढ़ता जा रहा है. हालांकि, मेडिकल वैज्ञानिक इससे बचाव के लिए अनेक तरीके विकसित कर रहे हैं.
लेकिन, ये तरीके अब तक पूरी तरह से कामयाब नहीं हो पा रहे हैं, लिहाजा इसके लिए नयी तकनीकों से हार्ट की मरम्मत और इसके दोबारा से निर्माण की कोशिश की जा रही है और इस दिशा में कुछ हद तक आरंभिक कामयाबी भी हाथ लगी है. कैसे मिली है यह कामयाबी समेत इससे संबंधित अनेक पहलुओं को रेखांकित कर रहा है आज का मेडिकल हेल्थ आलेख …
शंभु सुमन
दय रोग भले ही एक जानलेवा बीमारी हो, लेकिन इसे लाइलाज नहीं कहा जा सकता है. चिकित्सा वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र में कई सफलताएं हासिल की हैं, फिर भी दिल के मरीजों को मौत के मुंह से बाहर निकाल लाना आसान नहीं है. इस संबंध में अभी तक जो कामयाबी हासिल हुई है, उसमें एक खराब हो चुके हृदय की कोशिकाओं का पुनर्निर्माण भी है. ऐसे में दिल की मांसपेशियों की मरम्मत संभव हो सकेगी, जिससे हृदय रोगी को समय रहते बचाया जा सकेगा.
हृदय की कोशिकाओं का पुनर्निर्माण या कहें पुनर्जन्म वैसे समुद्री जीव स्टार्लेट एनीमोन (छोटे तारे की तरह चमकने वाला) से हो सकेगा, जो खुद बगैर दिल और मांसपेशीरहित है. चिकित्सा वैज्ञानिकों का दावा है कि वे एक दिन दिल-रहित बायोलाॅजिकल सुपरपावर की मदद से हृदय की खराब हो चुकी कोशिकाओं की मरम्मती और पुनर्निर्माण करने में सफल होंगे.
दवा से कोशिकाओं की मरम्मत
कुछ वर्षों में न केवल भारत, बल्कि दुनियाभर में हृदय रोगियों की संख्या काफी बढ़ गयी है. दिल से जुड़ी बीमारी के कई कारणों में हृदय गति का अचानक रुक जाना है, जो दिल के कुछ भागों में रक्त संचार में आनेवाली बाधा के कारण होता है और इसमें रक्त कोशिकाएं मर जाती हैं. इस संदर्भ में चिकित्सकों के सामने मुख्य समस्या यही थी कि खराब हो चुके हृदय की कोशिकाओं को ठीक कैसे किया जाए? यह समस्या खासकर तब आती है, जब रोगी को हार्ट अटैक आता है.
इसके लिए हृदय गति रुकने की स्थिति में दिल में स्टेम कोशिकाओं का प्रत्यर्पण करने में सफलता तो मिली, लेकिन अधिकतर मामले में पाया गया कि प्रत्यर्पित कोशिकाएं मरीज के शरीर में अधिक समय तक जीवित नहीं रह पाईं. उसके बाद नयी खोज के तहत दवाओं से कोशिकाओं का पुनर्निर्माण किया गया.
अमेरिका के ग्लैडस्टोन इंस्टिट्यूट्स के शेंग डिंग की अगुवाई में डॉक्टरों ने कुछ रसायनों के जरिये हृदय और मस्तिष्क की खराब कोशिकाओं को दुरूस्त करने में तकनीकी सफलता पायी. डिंग के अनुसार, इस तकनीक से मरीज के चोट की जगह पर ही कोशिकाओं का पुनर्निर्माण किया जा सकता है. ये दवाएं न केवल हृदय, बल्कि मस्तिष्क की स्वस्थ कोशिकाओं की मदद से क्षतिग्रस्त क्षेत्र में नयी कोशिकाओं को तैयार करने में सक्षम हैं.
समुद्री जीवों से दिल में सुधार
हाल ही में किये गये एक नये शोध के मुताबिक, फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी के चिकित्सा वैज्ञानिकों ने समुद्री प्राणी स्टार्लेट एनीमोन की मदद से नया प्रयोग किया है. इसे बायोलॉजिकल नाम निमेटोस्टेला विक्टेंसिस समूह का प्राणी कहा जाता है. बायोलॉजिकल तकनीक अपना कर मानव हृदय में उत्तक (मांस तंतु) को फिर से तैयार किया जा सकता है.
रोचक बात यह है कि यह प्राणी हृदय और मांसपेशी रहित है. समुद्र की साधारण गहराई वाले पानी में टिमटिमाने वाला यह प्राणी बेहद ही लिजलिजा और महज दो से छह सेंटीमीटर लंबाई का ही होता है. इसके मुख्तः दो हिस्से होते हैं. एक स्तंभ की तरह, जबकि दूसरा सिरा नीचे की ओर मूंछनुमा लता के रेशे की तरह होता है. ऊपरी सिरे की तलछट यानी नीचे की ओर का बाहरी सतह बलगम की तरह काफी ढीलाढाला लचीला होता है.
उसमें कुछ कण भी चिपके होते हैं. इस प्राणी का मुंह एक डिस्क की तरह ऊपर खुलता है, जो दो पतले जालनुमा तंतुओं के छल्ले से घिरा होता है.
ये पारदर्शी और सामान्य तौर पर रंगहीन होते हैं. इनकी 14 से अधिक किस्म की प्रजातियां उत्तरी अमेरिका के पूर्वी और पश्चिमी तटों पर पायी जाती हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार इसे टुकड़ों में काटकर मानव हृदय के क्षतग्रिस्त तंतुओं को पनुर्जीवित करने के उपयोग में लाया जाता है. वे इसे जैविक महाशक्ति की तरह मानते हैं और इससे हृदय में तंतुओं के पुनर्जीवन की प्रक्रिया को सीखा-समझा जा सकता है.
जीन प्रोग्रामिंग की तकनीक
फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने जीवों के शोध के दौरान पाया कि एनीमोन से मानव या जानवर में हृदय कोशिकाओं की उत्पत्ति हो सकती है. इसके प्रमुख शोधकर्ता मार्क मार्टिंडाले का कहना है, ‘हमारे अध्ययन से पता चलता है कि यदि हम इस तर्क और तथ्य के बारे में अधिक सीखते हैं कि हृदय की कोशिकाओं को जन्म देने वाले जीन एक-दूसरे से मिल सकते हैं, तो मानव में मांसपेशियों का पुनर्निर्माण संभव हो सकता है.’ दूसरे शब्दों में कहें कि यदि शोधकर्ता हृदय कोशिकाओं में जीन के काम करने के तकनीक की प्रोग्रामिंग को अच्छी तरह से समझ लेते हैं, तो भविष्य में इसे जीन प्रोग्रामिंग करने में सक्षम बनाया जा सकता है.
समुद्री एनीमोन में ‘हृदय जीन’ का विश्लेषण करते हुए वैज्ञानिकों ने पाया कि अन्य जानवरों के जीन की तुलना में इसके व्यवहार और कार्यक्षमता में काफी अंतर है. खासकर इसमें ‘लॉकडाउन लूप’ नहीं है. इसके जीन दूसरे जानवरों के जीवनकाल से संबंधित निर्देशों को पालन ही नहीं करते हैं, बल्कि इसका उपयोग अन्य कार्यों के लिए भी किया जा सकता है.
कैसा है इनसान का हृदय
मानव शरीर के एक महत्वपूर्ण अंग हृदय का स्वस्थ होना उसकी धड़कनों पर निर्भर करता है, जो प्रति मिनट 60 से 90 बार हो सकती है.
हर धड़कन के साथ शरीर में रक्त का संचार होता है, तो उसे पोषण और ऑक्सीजन रक्त से ही मिलता है. हृदय को रक्त की आपूर्ति दायें और बायें भागों में बंटे अंग कोरोनरी धमनियों से होती है. हृदय के दाहिनी और बायीं ओर एट्रिअम और वेंट्रिकल नाम के दो चैंबर होते हैं. इस तरह हृदय के चार चैंबर होते हैं. दाहिने भाग के चैंबर में दूषित रक्त आता है, जिसे फेफड़ों में शुद्ध करने के लिए पंप कर दिया जाता है.
इस तरह शोधित रक्त हृदय के बाएं भाग में वापस लौटता है और वहीं से शरीर में फैलता है. इन चार चैंबरों में चार वाल्व होते हैं. बायीं ओर के वाल्व मट्रिल व एओर्टिक और दायीं ओर के वाल्व पल्मानरी व ट्राइक्यूस्पिड कहलाते हैं, जिनके जरिये रक्त का बहाव संचालित होता है. हृदय एक दिन में तकरीबन 2,000 गैलन रक्त की पंपिंग करता है. इसलिए इसे शरीर का पंपिंग स्टेशन भी कहा गया है.
हार्ट अटैक से पहले मिलेगा अलर्ट
चिकित्सा वैज्ञानिकों को हृदय कोशिकाओं के पुनर्निर्माण के अलावा समय रहते हार्ट अटैक का पता लगाने में भी सफलता मिली है. ‘सांइस ट्रांसलेशनल’ मेडिसिन में प्रकाशित एक शोध की रिपोर्ट के अनुसार, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने रक्त की शिराओं के बाहर मौजूद वसा के कारण सूजन और मोटापे पर अध्ययन किया.
इस क्रम में उन्होंने पाया कि शरीर के अंदर सूजन का सबसे बड़ा कारण रक्त की शिराओं में कई छोटे-छोटे टुकड़ों का इकट्ठा हो जाना है. यही टुकड़े टूट कर बाद में कॉरोनरी धमनी को ब्लॉक कर देते हैं, जिससे हृदय तक ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती है. यह हार्ट अटैक होता है. अब जैसे-जैसे सूजन बढ़ती है, वैसे-वैसे वसा के टुकड़े तेजी से बंटने लगते हैं और आसपास के उत्तक का गीलापन बढ़ जाता है.
इसका पता दिल से जुड़े मरीजों के सीटी स्कैन से लगाया जा सकता है. इसके अनुसार जो उत्तक जितना अधिक लाल होगा, सूजन का स्तर भी उतना ही बड़ा होगा. यानी कि यह जांच हार्ट अटैक के खतरे को बताने वाला साबित हो सकता है. इसके अलावा, अध्ययन से हृदय की सर्जरी करवाने वाले मरीज को उनमें होने वाले बदलावों के बारे में भी पता लगाया जा सकता है.
करीब 2,000 हार्ट स्कैन करते हुए शोधकर्ताओं ने यह पुष्टि कि है कि स्वस्थ दिखने वाले लोगों में हार्ट अटैक की आशंका किस हद तक बन सकती है.
शोधकर्ता टीम के एक सदस्य प्रोफेसर चारालंबोस एंटानियाडेस का कहना है कि काॅरोनरी धमनियों में सूजन का पता लगाना बीते 50 वर्षों से एक चुनौती बना हुआ था. इस तकनीक से भविष्य में पता लगाया जा सकेगा कि किसे हार्ट अटैक हो सकता है और कौन कब इसकी जद में आ सकता है. इससे इस बात का अंजादा लगाया जा सकता है कि स्वस्थ दिखने वाला कोई व्यक्ति यदि हृदय रोग के प्रारंभिक दौर में है और उसे किस हद तक कोलेस्ट्रॉल को कम करने की जरूरत होगी.
इन्हें भी जानें
विविध प्रकार के हृदय रोग
मानव हृदय कई तरह के रोगों से ग्रसित हो सकता है. जन्म के समय हृदय की संरचना में खराबी के कारण पैदा हुआ जन्मजात हृदय रोग कहलाता है, जबकि उच्च रक्त चाप या वातरोग से भी हृदय रोग की आशंका बन सकती है.
जन्मजात हृदय रोगियों में सामान्यतः दिल में छेद, असामान्य वाल्व और असामान्य दिल के चैंबर होते हैं. यह एक तरह से उसे अपने माता-पिता के किसी जीन का विरासत में मिला एक परिणाम होता है. इसके अतिरिक्त कोई भी व्यक्ति उच्च रक्त चाप से ग्रसित होने की स्थिति में हृदय रोग का शिकार हो सकता है. इसका पता चिकित्सक कई तरह के लक्षणों के आधार पर करते हैं. उसी के अनुरूप समुचित उपचार किये जाते हैं.
पालक से बनेंगी कोशिकाएं!
पौष्टिकता और लौह तत्वों से भरपूर पालक को शरीर में रक्त की मात्रा बढ़ाने वाला समझा जाता है. वैज्ञानिकों को इससे बनायी गयी रक्त कोशिकाओं को हृदय कोशिकाओं में बदलने में बड़ी कामयाबी मिली है.
इस शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने पालके के पत्ते में पाये जाने वाले सेल्यूलोस के ढांचे को कुछ दिनों के लिए जीवित मानव-कोशिका के साथ रखा. पाया गया कि उसका व्यवहार मानव कोशिका की तरह ही होने लगा है. इस सिलसिले में शोध के सफल होने की दशा में यह संभावना बन गयी है कि पालक के हरे पत्ते से कोशिकाएं बनायी जा सकती हैं, जो क्षतिग्रस्त हृदय के लिए उपयोगी साबित हो सकता है.
स्वयं इलाज करेगा दिल!
दिल की बीमारी से निपटने के लिए चिकित्सा वैज्ञानिकों ने एक अन्य तकनीक का सहारा लिया है. ऐसे उत्तक विकसित किये गये हैं, जो दिल के मरीजों से ही ली गयी कोशिकाओं से बनाये गये थे. इस बारे में टेक्रोन इस्राइल इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक लिओर गेपस्टीन की टीम शोधकार्यों में जुटी है.
उनका मानना है कि इससे दिल के मरीजों की कोशिकाओं को फिर से विकसित कर दिल की मरम्मत की जा सकती है. वे ऐसा स्टेम सेल यानी मूल कोशिकाओं पर किये जा रहे शोध के आधार पर बता रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि भ्रूण या मानव त्वचा की रक्त से मिलने वाले सेल्स खुद को कई तरह की कोशिकाओं में बदल सकते हैं़ वैज्ञानिकों ने दिल के मरीजों की त्वचा से कुछ कोशिकाओं के साथ तीन अन्य जीन और वालप्रोइक एसिड मिलाकर ऐसी कोशिका बनाने में सफलता पायी, जो दिल में धड़कती हैं.
इस बारे में गेपस्टीन का कहना है कि उनके द्वारा प्रयोगशाला में विकसित की गयी कोशिकाएं मरीज के दिल की कोशिकाओं से मेल खाती और धड़कती हैं. इस शोध को यूरोपियन हार्ट जर्नल में प्रकाशित किया गया है, जिसके अनुसार इसका मेडिकल परीक्षण अगले 10 वर्षों में शुरू किया सकेगा.
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