सेंट्रल डेस्क
उत्तर प्रदेश कभी देश की राजनीति की धुरी था. देश को 14 में आठ प्रधानमंत्री इसी प्रदेश ने दिये. इसी प्रदेश के चलते देश में सबसे ज्यादा गंठबंधन सरकारें भी बनीं. यानी सरकार बनाने और बिगाड़ने के खेल में यूपी माहिर है. इसलिए सभी दलों का ध्यान यहां केंद्रित है, क्योंकि जो यहां बाजी मारेगा, दिल्ली के तख्त के सबसे करीब वही होगा. इस बीच, सभी न्यूज चैनलों पर देश में मोदी की लहर की चर्चा हो रही है.
लेकिन सभी राजनीतिक दल इसे सिरे से नकार रहे हैं. भाजपा यहां से 40 से अधिक सीटें जीतने के लिए जोर लगा रही है, तो शेष सभी दल उसे रोकने में जुट गये हैं. कुल मिला कर उत्तर प्रदेश में इस बार जंग नरेंद्र मोदी बनाम सभी दलों का हो गया है. चेन्नई मैथेमेटिकल इंस्टीटय़ूट के मुताबिक, यदि भाजपा को उत्तर प्रदेश में 38 फीसदी वोट मिले, तो वह 49 सीटें जीत सकती हैं. ऐसा हो सकता है, क्योंकि सत्ताधारी समाजवादी पार्टी से लोग नाराज हैं. दो साल पहले विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी सत्ता से बेदखल हुई, तो इसकी वजह भी नाराजगी ही थी. केंद्र की कांग्रेस नीत सरकार में महंगाई, भ्रष्टाचार से लोग त्रस्त हैं. इसलिए 2009 में 80 में सिर्फ 10 सीटें जीतनेवाली भाजपा से लोगों की उम्मीदें बंधी हैं, क्योंकि नरेंद्र मोदी बदलाव की बात कर रहे हैं. सुशासन की बात कर रहे हैं. लेकिन, सवाल है कि विधानसभा चुनाव में महज 15 फीसदी वोट पानेवाली भाजपा को एकाएक दोगुना से अधिक वोट कैसे मिलेगा? तो भाजपा कहती है कि उसे उसके प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मिलेंगे, जिन्होंने गुजरात में विकास करके दिखाया है.
मोदी-मोदी
उत्तर प्रदेश में राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह और मुरली मनोहर जोशी जैसे कुछ गिने-चुने नेता को छोड़ दें, तो प्रदेश के लोग भाजपा के नेताओं के नाम तक नहीं जानते होंगे. लेकिन, नरेंद्र मोदी को बच्च-बच्चा जानता है. यही भाजपा की बड़ी ताकत है. वहीं, क्षेत्रीय दलों से लोगों का विश्वास उठने लगा है. 15 सालों में बारी-बारी से सपा और बसपा की सरकार बनी, लेकिन यूपी का विकास नहीं हुआ. न दलितों का उत्थान हुआ, न मुसलिमों का.
कांग्रेस रही हाशिए पर
पिछले 20-22 सालों से कांग्रेस यूपी में हाशिये पर है. हालांकि, पिछले लोकसभा चुनाव में उसका प्रदर्शन थोड़ा अच्छा था, लेकिन इस बार केंद्र की नाकामियों ने कांग्रेस को फिर से कमजोर कर दिया है. इसलिए संभव है कि इस बार यहां से कांग्रेस फिर से दहाई के अंक तक पहुंचने में कामयाब न हो सके. सपा, बसपा और कांग्रेस की जातिगत वोटरों पर पकड़ भी ढीली पड़ी है. इसलिए भी उनकी सीटें कम हो सकती हैं.
पसंद आ गया गुजरात मॉडल
उत्तर प्रदेश की जनता अब उस गुजरात मॉडल के विकास को अपनाना चाहती है, जिसकी चर्चा नरेंद्र मोदी अपनी हर रैली में करते हैं. मोदी के सपने हालांकि खूबसूरत हैं, लेकिन यूपी को गुजरात के सांचे में भाजपा और नरेंद्र मोदी कितना ढाल पायेंगे, यह अभी कहना जल्दबाजी होगी. लेकिन, यूपी ने मोदी को अपना दिल दे दिया है. दिल देनेवाली जनता ने यदि मोदी के नाम पर वोट भी कर दिया, तो भाजपा का बेड़ा पार हो जायेगा.
गिरने लगा आप का ग्राफ
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी, तो पार्टी का ग्राफ यूपी में भी तेजी से चढ़ा. दिल्ली सरकार के इस्तीफे के बाद उसका ग्राफ उससे ज्यादा तेजी से गिरा. हालांकि, कुछ सीटों पर पार्टी की लोकप्रियता अब भी कायम है. प्रदेश में पार्टी का मजबूत संगठन नहीं होने की वजह से टीवी पर चलनेवाली बहस से उसकी छवि बन और बिगड़ रही है. इसलिए चुनाव में यह पार्टी बड़ी भूमिका निभा पायेगी, कहना मुश्किल है.
प्रमुख मुद्दे
यूपी में सड़कों की खराब हालत जगजाहिर है. औद्योगिक शहर कानपुर में भी सड़कें बदहाल हैं. यकीन ही नहीं होता कि यह देश के ‘ए’ क्लास का शहर है.
शिक्षा और रोजगार भी प्रमुख मुद्दे हैं. बलिया, मऊ, आजमगढ़, गाजीपुर और जौनपुर समेत पूर्वाचल के अधिकतर जिले परीक्षा के दौरान नकल का गढ़ बन जाते हैं. चूंकि शिक्षा का स्तर काफी गिर गया है, रोजगार प्रमुख समस्या है.
यादवों को छोड़ कर सभी जाति के लोग सपा सरकार पर आरोप लगाते हैं कि वह केवल यादवों और कुछ मुसलिमों का विकास कर रही है. नौकरियों में सिर्फ यादवों को लिया जा रहा है.
दलितों को छोड़ सभी जाति के लोग बसपा पर आरोप लगाते हैं कि उसकी सरकार में केवल दलितों का विकास होता हैं. यानी की यूपी में विकास तो होता है, समावेशी नहीं.