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देव परिवार से सबको होता है रश्क

मिथिलेश झा असम के एक परिवार से किसी भी राजनीतिक दल को रश्क हो सकता है. वर्ष 1952 से शुरू हुए देश के संसदीय इतिहास में वर्ष 1971 से 1975 और वर्ष 1998 और 1999 के बीच एक साल को छोड़ दें, तो इस परिवार का कोई न कोई सदस्य विधानसभा, संसद या नगरपालिका का […]

मिथिलेश झा

असम के एक परिवार से किसी भी राजनीतिक दल को रश्क हो सकता है. वर्ष 1952 से शुरू हुए देश के संसदीय इतिहास में वर्ष 1971 से 1975 और वर्ष 1998 और 1999 के बीच एक साल को छोड़ दें, तो इस परिवार का कोई न कोई सदस्य विधानसभा, संसद या नगरपालिका का सदस्य रहा.

असम में गुवाहाटी के बाद दूसरे सबसे बड़े शहर सिलचर के इस परिवार की राजनीतिक यात्र सतींद्र मोहन देव से शुरू हुई. स्वतंत्रता सेनानी सतींद्र मोहन राज्य के मंत्री भी बने. बेटे संतोष मोहन देव ने विरासत संभाली और कांग्रेस के टिकट पर नौ बार लोकसभा चुनाव लड़ा. सात बार जीते. संतोष उन गिने-चुने सांसदों में हैं, जिन्हें दो राज्यों का प्रतिनिधित्व करने का गौरव प्राप्त है. पांच बार वह सिलचर से और दो बार त्रिपुरा से संसद पहुंचे. संतोष मोहन वर्ष 1998 और 2009 में चुनाव हार गये.

उनकी पत्नी बीथिका देव वर्ष 2006 से 2011 के बीच सिलचर विधानसभा का प्रतिनिधित्व किया. वर्ष 2014 आम चुनाव में कांग्रेस ने देव की बेटी सुष्मिता, जो सिलचर से विधायक हैं, को मैदान में उतारा है. पेशे से वकील सुष्मिता वर्ष 2009 में नगरपालिका चुनाव के जरिये सक्रिय राजनीति में आयीं. वर्ष 2011 में विधानसभा चुनाव जीता. वह कहती हैं कि उनके परिवार ने क्षेत्र में काफी विकास कार्य किये हैं. उनके पिता पर आरोप नहीं हैं. परिवार जमीन से जुड़ा है. लोग उन्हें चाहते हैं.

वर्ष 2009 में सिलचर में ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के पक्ष में मुसलिम मतों के ध्रुवीकरण के कारण संतोष को हार का सामना करना पड़ा. उन्हें भाजपा के कबींद्र पुरकायस्थ ने 41,470 मतों से हराया. वह एआइयूडीएफ प्रमुख मौलाना बदरुद्दीन अजमल से भी कुछ मतों से पीछे रह गये. अजमल को दो लाख, तो देव को 1,97,244 मत मिले.

क्षेत्र में 35% आबादी मुसलिमों की है, लेकिन सुष्मिता को नहीं लगता कि इस बार उनके पक्ष में ध्रुवीकरण होगा. वह अपनी जीत के प्रति आश्वस्त हैं.

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