।। रवि दत्त बाजपेयी ।।
– जल-संसाधन की चुनौतियां
– देश की एक बड़ी जनसंख्या के लिए पर्याप्त पेयजल उपलब्ध नहीं
पिछले 60 सालों में तेल की धार ने अंतरराष्ट्रीय कूटनीति-युद्धनीति की धार तय की है लेकिन निकट भविष्य में अंतरराष्ट्रीय संघर्ष का मुख्य कारण शुद्ध पानी के स्रोत होंगे. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के अपने पड़ोसी देशों पाकिस्तान,चीन, नेपाल, बांग्लादेश के साथ तनाव का एक प्रमुख कारण नदी जल का बंटवारा है, वैसे भी दक्षिण एशिया में जनसंख्या की लगातार वृद्धि ने इस क्षेत्र में जल व भोजन सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौतियां प्रस्तुत की है.
जहां एक ओर भारत में मानसून की बारिश, नदियां, तालाब, भूमिगत जल जैसे शुद्ध जल के स्रोत है वहीं दूसरी ओर इन स्रोतों के अंधाधुंध दुरु पयोग व असीमित प्रदूषण से भारत में एक बड़ी जनसंख्या के लिए पर्याप्त पेयजल तक उपलब्ध नहीं है. भारत में आर्थिक विकास के नव उदारवादी प्रारूप ने आम भारतीय के जल संसाधनों पर दोहरा खतरा खड़ा किया है, एक तो प्राकृतिक संसाधनों के दोहन का एकाधिकार निजी उद्यमों को सौंपना और दूसरे जल-आपूर्ति जैसी सार्वजनिक सुविधाओं के निजीकरण द्वारा इनके मूल्य में असाधारण वृद्धि करना.
एक अनुमान से विश्व में शुद्ध जल का 4.2 फीसदी भाग भारत में है जबकि विश्व की 17 फीसदी जनसंख्या भारत में रहती है, भारत में निर्मल जल का 82 फीसदी भाग कृषि, 12 फीसदी उद्योग और पांच फीसदी घरेलू उपयोग में काम में लिया जाता है. भारतीय कृषि क्षेत्र में पारंपरिक फसलों और सिंचाई के तरीकों से पानी का घोर अपव्यय होता है, इसी प्रकार उद्योगों में भी स्वच्छ जल का दुरुपयोग व जल के स्वच्छ स्रोतों का प्रदूषण अब बेहद गंभीर समस्या बन चुकी है.
अगले 30-40 सालों में भारत स्वच्छ जल की कमी एक बहुत गंभीर संकट के रूप में सामने आयेगी, वर्ष 2050 तक भारत की जनसंख्या 170 करोड़ होगी और कृषि, उद्योग और घरेलू उपयोग के लिए पानी की मांग बहुत अधिक बढ़ जायेगी. वर्ष 2050 तक भारत के शहरी इलाकों की जनसंख्या वर्त्तमान से दोगुनी होगी, शहरी आबादी की पानी की मांग हमेशा से ग्रामीण आबादी से कहीं अधिक होती है. बढ़ती आबादी के लिए अतिरिक्त खाद्य-सामग्री उपजाने की आवश्यकता होगी और तब कृषि के लिए अतिरिक्त जल की आवश्यकता होगी. आर्थिक विकास के लिए भारत में औद्योगिक उत्पादन बढ़ने की जरूरत पड़ेगी और इसके लिए भी अधिक जल चाहिए होगा, अर्थात तीन दशकों में भारत में जल की मांग आज से कई गुना अधिक होगी.
भारत में ग्लेशियर्स से निकलने वाली नदियों में गंगा और ब्रह्मपुत्र सबसे बड़ी है, भारत स्वच्छ जल का बहुत बड़ा भाग इन्हीं दोनों नदियों से मिलता है, इसके साथ ही गंगा-ब्रह्मपुत्र के किनारे करीब 40 करोड़ लोग या भारत की लगभग एक तिहाई आबादी रहती है. गंगा में विशाल बांध, शहरी तथा औद्योगिक प्रदूषण ने इस नदी के पानी को मानव उपयोग तथा सिंचाई के लिए अनुपयुक्त बना दिया है. ब्रह्मपुत्र नदी का उदगम चीन के तिब्बत प्रांत में है और चीन अपनी बढ़ती आबादी और औद्योगिकीकरण के लिए इस नदी का बहाव पूरी तरह से अपनी सीमा के भीतर ही रोकने पर आमादा है. भारत-चीन के बीच सीमा विवाद से कहीं बहुत गंभीर मसला भारत-चीन के बीच नदी जल बंटवारे का कोई समझौते का न होना है, आर्थिक-सामरिक महाशक्ति चीन से नदी जल का समुचित हक मांगना भारत के लिए आसान नहीं होगा.
इन दोनों नदियों के अलावा भी भारत की अधिकतर नदियां या तो बरसाती नाले बन चुकी है या पूरी तरह से विलुप्त हो गयी है. जलवायु परिवर्तन के बावजूद भी पिछले कई सालों से भारत में मानसून सामान्य रही है लेकिन वर्षा जल के भंडारण के प्रति भारत में जागरूकता का अभाव है और अधिकतर वर्षा जल व्यर्थ हो जाता है. मानसून की वर्षा के जल के उचित भंडारण को नदियों में भी प्रयोग में लाना आवश्यक है क्योंकि गंगा-ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों में उनके कुल वार्षिक बहाव का 80 प्रतिशत बरसात के मौसम में ही होता है. अत्यधिक शहरीकरण के कारण वर्षा का जल भूमि के भीतर भी नहीं पहुंच पाता है और जिसके कारण भारत में भूमिगत जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है. भूमिगत जल स्तर का घटना बेहद चिंताजनक पहलू है चूंकि कृषि कार्य और शहरी क्षेत्रों में पानी का सबसे बड़ा स्रोत भूमिगत जल ही है.
एक समाज, राष्ट्र व संस्कृति के रूप में के लिए भारत में समुचित जल संसाधनों का उपलब्ध होना अनिवार्य है, अब निर्मल जल को स्रोतों को राष्ट्रीय नहीं बल्कि सामरिक संपत्ति मानकर उन्हें उचित सुरक्षा, संरक्षण और संवर्धन देना बड़ी चुनौती है. स्वच्छ जल की कमी भारत की भौगोलिक अखंडता, राष्ट्रीय संप्रभुता और मानव सुरक्षा के लिए एक बहुत भीषण संकट बन सकती है. सबसे पहले एक कृषि प्रधान देश में पानी की कमी देश की खाद्य सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा है, कृषि पर आने वाले किसी भी संकट का भारत के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और आंतरिक सुरक्षा पर बहुत गंभीर दुष्प्रभाव पड़ेगा.
पानी की कमी से कृषि ही नहीं बल्कि भारत की समूची औद्योगिक उत्पादन क्षमता पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ेगा, घटती औद्योगिक क्षमता से बेरोजगारी और आर्थिक मंदी बढ़ेगी जिसके भयानक आर्थिक व सामाजिक परिणाम होंगे. आज भी भारत में 80 फीसदी बीमारियों का स्रोत अस्वच्छ जल है, ताजे पानी की कमी होने से विषैले-दूषित जल की मात्र और बढ़ जायेगी जिसके आम जनसंख्या के स्वास्थ्य पर घातक परिणाम होंगे. नेपाल तथा बांग्लादेश में जल की कमी से होने वाले बेरोजगार बड़ी संख्या में लोगों को भारत आने को मजबूर होंगे, इस प्रवासन के परिणाम स्वरूप भारत में बेरोजगारी की समस्या बढ़ेगी और भीतरी-बाहरी के झगड़े शुरू हो जायेंगे. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जल के बंटवारे को लेकर भारत का चीन व पाकिस्तान के साथ तनाव है और इस विवाद को लेकर सैन्य युद्ध का अंदेशा अभी से बना हुआ है.
भारत में आज भी एक बड़ी जनसंख्या को स्वच्छ जल सुगमता से उपलब्ध नहीं है, हर साल यह समस्या और विकराल होती जा रही है. भारत के प्रशासनिक-राजनीतिक वर्ग के लिए यह समस्या महत्वपूर्ण नहीं है जबकि जल संसाधनों के संरक्षण की चुनौती भारत के किसी भी अन्य राजनीतिक-अंतरराष्ट्रीय-सैन्य खतरे से कहीं अधिक गंभीर, ज्यादा नजदीक और वास्तविक है.