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बच्चों से जुड़ी स्वास्थ्य की दो तसवीरों से झांकती कल के भारत की चिंता
बीमार होते बच्चे आज के बच्चे ही कल के भारत की तकदीर गढ़ेंगे. इस लिहाज से देखें तो बच्चों के स्वास्थ्य के बारे में आयी दो हालिया रिपोर्टें कल के भारत को लेकर चिंता पैदा कर रही हैं. पहली रिपोर्ट कहती है, दुनिया में करीब 38.5 करोड़ बच्चे गंभीर कुपोषण की दशा में जीते हैं, […]
बीमार होते बच्चे
आज के बच्चे ही कल के भारत की तकदीर गढ़ेंगे. इस लिहाज से देखें तो बच्चों के स्वास्थ्य के बारे में आयी दो हालिया रिपोर्टें कल के भारत को लेकर चिंता पैदा कर रही हैं. पहली रिपोर्ट कहती है, दुनिया में करीब 38.5 करोड़ बच्चे गंभीर कुपोषण की दशा में जीते हैं, जिनमें से करीब एक-तिहाई भारत में हैं.
यह रिपोर्ट यूनिसेफ और विश्व बैंक समूह ने ‘एंडिंग एक्सट्रीम पॉवर्टी : ए फोकस ऑन चिल्ड्रेन’ नाम से जारी की है. कुछ दूसरी रिपोर्टों में कहा गया है कि पिछले ढाई दशकों में भारत में मोटापाग्रस्त बच्चों की संख्या दोगुनी हो गयी है और आशंका जतायी गयी है कि 2025 तक ऐसे बच्चों की संख्या 1.7 करोड़ से ज्यादा हो जायेगी. देश के बच्चों में बड़े पैमाने पर कुपोषण और मोटापे से उत्पन्न चिंता बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य के प्रति तुरंत कारगर पहल की मांग करती है. रिपोर्ट की मुख्य बातों के बारे में जानें विस्तार से…
कुपोषण के शिकार दुनिया के 30 फीसदी बच्चे भारत में
दुनिया में 38.5 करोड़ बच्चे कुपोषण की मार झेल रहे हैं, जिनमें से 30 फीसदी भारत में हैं. इसका कारण यह है कि भारत सहित विकसित देशों में 19.5 फीसदी बच्चों के खान-पान व रहन-सहन पर रोजाना औसतन 1.9 डॉलर से कम रकम खर्च की जाती है, जो वयस्कों में यह संख्या 9.2 फीसदी ही है. यूनिसेफ (यूनाइटेड नेशंस चिल्ड्रेन्स फंड) के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर एंथोनी लेक के मुताबिक, परिवार की गरीबी की सबसे ज्यादा मार बच्चों एवं किशोरों पर ही पड़ती है और उन्हें अत्यंत दयनीय स्थिति में जीवन यापन करना पड़ता है.
रिपोर्ट के मुताबिक, कुपोषण के कारण बच्चों में होनेवाली मौत का करीब 50 फीसदी मामला पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में पाया गया है. हालांकि, रिपोर्ट में जिक्र किया गया है कि पिछले 25 वर्षों के दौरान बच्चों के कुपोषण की संख्या में व्यापक कमी आयी है, लेकिन दक्षिण एशिया के देशों में अभी बहुत कम सुधार हुआ है, जिसमें भारत भी शामिल है. विश्व बैंक के मुखिया जिम योंग किम ने पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण की समस्या को अनेक देशों के लिए शर्म का विषय बताते हुए भारत की प्रगति को भी असंतोषजनक ठहराया है. बच्चों में कुपोषण के मामले में सब-सहारा अफ्रीका की स्थिति सबसे खराब है, जहां करीब आधे बच्चे कुपोषण के शिकार हैं.
बाल विकास को देनी होगी प्राथमिकता
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के ग्लोबल हेल्थ इकोनॉमिक्स एंड सोशल चेंज द्वारा किये गये एक अध्ययन के हवाले से प्रसिद्ध मेडिकल पत्रिका ‘द लैंसेट’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले दशक में चीन और भारत ने बच्चों में कुपोषण की समस्या खत्म करने के लिए समग्र रणनीति तैयार की थी, लेकिन भारत इस मामले में कहीं पीछे रह गया है. इतना ही नहीं, वर्ष 2010 तक के आंकड़ों के अनुसार, इससे पहले के एक दशक के दौरान वियतनाम ने इस मामले 45 फीसदी प्रगति की है, जबकि चीन ने 40 फीसदी और भारत में यह महज 20 फीसदी तक रहा. कुपोषण की गंभीर समस्या से जूझ रहे दुनिया के 141 निम्न और मध्य आयवर्गवाले देशों का अध्ययन करने पर पता चला है कि गरीबी के कारण वर्ष 2004 में इन देशों में 27.91 करोड़ बच्चे कुपोषण के शिकार थे, जबकि 2010 में इनकी संख्या घट कर 24.94 करोड़ तक रह गयी.
इन उपायों को अमल में लाने कादिया गया सुझावयूनिसेफ और विश्व बैंक ग्रुप ने बच्चों में कुपोषण का जोखिम दूर करने के लिए देशों को इन उपायों को अमल में लाने के लिए कहा है :
– बच्चों में कुपोषण की नियमित जांच होनी चाहिए और इसे राष्ट्रीय स्तर पर एक मुहिम के तौर पर शामिल करना चाहिए, ताकि वर्ष 2030 तक इनकी दशा को पूरी तरह सुधाराजा सके.
– ऐसे नीतिगत फैसले लिये जाने चाहिए, ताकि उनमें बच्चों की इस समस्या को शामिल किया जाये और वह नागरिकों के आर्थिक विकास को सुनिश्चित कर सके.
– बच्चों की सामाजिक सुरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाना होगा, जिसमें ऐसे बच्चों को मदद के लिए उनके परिवारों को ‘कैश ट्रांसफर प्रोग्राम’ में शामिल करते हुए उन्हें सीधे मदद मुहैया कराना होगा.
– अकाल, बीमारियों या आर्थिक अस्थिरता के बाद गरीब परिवारों के सामान्य जीवनयापन के लिए उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, साफ पेयजल और सफाई आदि के लिए निवेश को प्राथमिकता देनी होगी.
देश में बीते ढाई दशक में दोगुनी हुई मोटापाग्रस्त बच्चों की संख्या
एक ओर भावी पीढ़ी को कुपोषण से बचाने के लिए सरकार मध्याह्न भोजन जैसी योजनाएं चला रही हैं, वहीं दूसरी ओर स्कूलों की कैंटीन में कोल्ड ड्रिंक्स और पिज्जा खानेवाले बच्चे गंभीर बीमारियों को दावत दे रहे हैं. कुपोषित बच्चों के ये दो चेहरे देश में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता की कमी के संकेत देते हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताजा रिपोर्ट दावा करती है कि दुनिया में 2014 में पांच वर्ष से कम आयु के 4.1 करोड़ बच्चे मोटापे के शिकार थे, यानी 0-5 आयु वर्ग के 6.1 फीसदी बच्चों का वजन सामान्य से अधिक था. वर्ष 1990 में यह आंकड़ा 4.8 फीसदी पर था. चौंकानेवाली बात यह है कि यह समस्या भारत जैसे निम्न मध्यमवर्गीय आयवाले देशों में सर्वाधिक है, जहां इस अवधि में मोटापे से ग्रसित बच्चों की संख्या 75 लाख से बढ़ कर 1.55 करोड़ हो गयी है. अधिक भारवाले बच्चों में 48 फीसदी एशियाई देशों के और 25 फीसदी अफ्रीकी देशों से हैं.
2025 तक ऐसे बच्चों की संख्या 1.7 करोड़
इंटरनेशनल जर्नल ‘पीडिएट्रिक्स अबेस्टी’ के अनुसार 2025 तक भारत में सामान्य से अधिक भारवाले बच्चों (0-5 साल) की संख्या 1.7 करोड़ पार कर जायेगी. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि हम समय रहते नहीं चेते, तो हमारी भावी संतति हृदय की बीमारियों, हाइपरटेंशन और डायबिटीज की चपेट में होगी. शोधकर्ताओं के अनुसार 2025 तक दुनियाभर में मोटापे से ग्रसित 5 से 17 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों की संख्या 26.8 करोड़ हो जायेगी, यानी हमारी मौजूदा जीवनशैली नहीं बदली, तो हमें निकट भविष्य में गंभीर चुनौतियों के लिए तैयार रहना पड़ेगा. बच्चों में मोटापे के मामले में चीन पहले स्थान पर है, तो भारत भी उससे मात्र एक पायदान ही नीचे है.
मोटापे से बीमारियों को दावत
रिपोर्ट इस बात की ओर इशारा है कि मोटापाजनित बीमारियों से निबटने के लिए नीतिगत स्तर पर बड़े कदम उठाने होंगे, अन्यथा आनेवाले वर्षों से एक बड़े नागरिक समूह के सामने अनगिनत चुनौतियां उठ खड़ी होंगी.
मोटापे से होनेवाली बीमारियों के प्रति आगाह करते हुए ‘पीडिएट्रिक्स अबेस्टी’ के अध्ययन में खुलासा किया गया है कि 1.2 करोड़ लोग ग्लूकोज की कमी, 40 लाख लोग डाटबिटीज (टाइप-2), 2.7 करोड़ लोग हाइपर टेंशन और 3.8 करोड़ लीवर (यकृत) से जुड़ी बीमारियों की चपेट में होंगे. इंटरनेशनल एसोशियन फॉर द स्टडी ऑफ अबेस्टी (आइएएसओ) और एडवांसेस ऑफ रिसर्च इन अबेस्टी (एआरआइओ) की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार भारत में 13 से 17 वर्ष आयु वर्ग के 50 फीसदी बच्चों में मोटापा और डायबिटीज होने की संभावनाओं काफी प्रबल हैं. हालांकि, मोटापा और डायबिटीज दोनों ही बीमारियां पर्यावरण के प्रभावों पर निर्भर हैं, लेकिन टीनएज में ही लाइफस्टाइल में सुधार करके भविष्य में उत्पन्न होनेवाली समस्याओं से बचा जा सकता है.
मोटापे से बीमारियों का मकड़जाल
आमतौर पर मोटापा आलस्य और शिथिल जीवनशैली की देन होता है. भारत में आम नागरिकों की बीएमआइ (बॉडी मास इंडेक्स) बेहद असंतुलित है. मोटापा हार्मोन असंतुलन और टेस्टोस्टेरोन (मेल सेक्स हार्मोन) में गिरावट की मुख्य वजह है. मोटापा बढ़े और स्वास्थ्य सामान्य रहे, यह बिल्कुल असंभव है.
यह हृदय संबंधित बीमारियों, उच्च रक्तचाप, हृदयघात, टाइप-2 डायबिटीज, कैंसर, न जाने कितनी बीमारियों की जड़ है. सांस लेने में दिक्कत, जोड़ों में दर्द जैसी समस्याएं मोटापे के दुष्प्रभाव के शुरुआती लक्षण हैं. हालांकि, कुछ अनुवांशिक या मेडिकल कारणों- मानसिक बीमारियों की वजह से मोटापा बढ़ता है. ऐसे में खान-पान और जीवनशैली में सुधार लाकर इन समस्याओं से बचा जा सकता है.
-प्रस्तुति : कन्हैया झा/ ब्रह्मानंद मिश्र
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