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इमरजेंसी नंबरों पर शरारती फोन कॉल्स की भरमार

वुसअतुल्लाह ख़ान बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए, पाकिस्तान से बाकी दुनिया का तो नहीं मालूम लेकिन शरारती फोन कॉल्स का मसला पाकिस्तान में बहुत गंभीर होता जा रहा है. बोरियत दूर करने या फालतू समय बिताने के लिए लाख़ों पुरुष, महिलाएं और बच्चे गलत नंबर मिलाते हैं या इमरजेंसी नंबरों पर बिना मतलब डायल […]

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बाकी दुनिया का तो नहीं मालूम लेकिन शरारती फोन कॉल्स का मसला पाकिस्तान में बहुत गंभीर होता जा रहा है.

बोरियत दूर करने या फालतू समय बिताने के लिए लाख़ों पुरुष, महिलाएं और बच्चे गलत नंबर मिलाते हैं या इमरजेंसी नंबरों पर बिना मतलब डायल कर अपना और दूसरों का वक्त ज़ाया करते हैं.

और उन्हें एहसास भी नहीं होता कि उनकी ये शोखी और शरारत उन लोगों को कितनी महंगी पड़ सकती है जो किसी एंबुलेंस को बुलाना चाह रहे हों, फायरब्रिगेड तक पहुंचना चाह रहे हों, डकैती की इत्तला पुलिस को देना चाह रहे हों या फिर किसी लावारिस थैले या पोटली के बारे में सुरक्षा एजेंसियों को तुरंत इत्तला करना चाह रहे हों.

कराची पुलिस ने 2000 में 15 के नाम से एक इमरजेंसी हेल्पलाइन स्थापित की.

इस हेल्पलाइन की खूबी ये थी कि भले मोबाइल सिम ना भी हो तब भी आप इमरजेंसी में हेल्पलाइन से संपर्क कर सकते हैं.

पिछले वर्ष 15 पर 40 लाख़ कॉल्स आईं. इनमें से 35 लाख़ कॉल्स खामखा या शरारत में की गई थी.

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पंजाब में रेस्क्यू 1122 पर अगर आप फोन करें तो एंबुलेंस या फायरब्रिगेड वाले तुरंत मदद को पहुंचते हैं.

मगर पब्लिक उनके साथ ये सलूक करती है कि एक ज़िला रहीम यार खान में सिर्फ एक महीने में रेस्क्यू 1122 पे जो 72 हज़ार छह सौ 16 कॉल्स आईं उनमें से नब्बे प्रतिशत घरों पर फारिक बैठे बच्चों, महिलाओं, बूढ़ों या नौजवानों की थीं.

और ये लोग जान नहीं छोड़ते बल्कि महिला फोन ऑपरेटर्स को छिछोरे लतीफे सुनाते हैं.

पुरुष ऑपरेटरों को गालियां देते हैं, गाने गाते हैं और इमरजेंसी लाइन को अक्सर व्यस्त रखते हैं.

और तो छोड़िए आतंकवाद से निपटने के लिए नेशनल काउंटर टेररिज़म अथॉरिटी (नेक्टा) ने दो वर्ष पहले 1717 के नाम से एक हेल्पलाइन इसलिए कायम की कि अगर कहीं कोई आतंकवादी घटना घटे या आप किसी व्यक्ति को अजीब-ओ-गरीब हरकतें करते देखें तो तुरंत इत्तला दे दें.

लेकिन पिछले महीने यानी जुलाई के पहले बीस दिन में नेक्टा की हेल्पलाइन पर जो आठ हज़ार तीन सौ पांच कॉल्स आईं उनमें से सिर्फ़ 41 गंभीर कॉल्स थीं.

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बाकी कुछ इस तरह की थीं कि मेरे दिल में विस्फोट हो गया है मैं क्या करूं. आत्मघाती जैकेट बनाने की रेसेपी क्या है भइया?

क्या सब आतंकवादी नरक में जाएंगे या कोई जन्नत में भी गिरेगा, इत्यादि, इत्यादि.

नेक्टा की हेल्पलाइन पे मज़ाकिया या नॉन सीरियस कॉल्स करने वालों में एक साहब वो भी हैं जिन्होंने चौबीस सौ ग्यारह कॉल्स कीं और सब की सब फिज़ूल.

ये हरकतें उस देश के लोग कर रहे हैं जो आतंकवाद से जूझने वाले चोटी के तीन देशों में शुमार होता है.

आपके यहां भारत में तो सब ठीक है ना. दिल्ली हो, कि कोलकाता, कि मुंबई, कि चेन्नई, वहां तो इमरजेंसी नंबरों के साथ ऐसा मज़ाक नहीं होता होगा ना.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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