पंद्रह अगस्त को लालकिले से जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाथरस ज़िले के नगला फ़तेला गांव में बिजली पहुंचाने का यह कहकर ज़िक्र किया कि वहां 70 साल से बिजली नहीं पहुंची थी, तो गांव वाले ये सुनकर दंग रह गए.
उन्हें ये विश्वास ही नहीं हुआ कि प्रधानमंत्री ऐसा कह सकते हैं. सच्चाई ये है कि इस गांव में 70 साल से बिजली नहीं थी, ये भी सही नहीं है और अब बिजली पहुंचा दी गई है, ये भी सही नहीं है.
गांव की एक महिला श्रीमती देवी कहती हैं, "हमारे गांव में बिजली पहले भी नहीं थी और अब भी नहीं है. हां, ये ज़रूर है कि पिछले साल खंभे लगाए गए और कहीं कहीं तार भी बिछाए गए, लेकिन बिजली आज तक नहीं आई है."
वहीं गांव के एक बुज़ुर्ग कमल सिंह कहते हैं कि खेती-बाड़ी के लिए गांव के बाहर बिजली काफी पहले से है लेकिन घरों तक बिजली अभी नहीं पहुंच पाई है.
गांव वालों के मुताबिक सिंचाई के लिए गई बिजली की लाइन से गांव वाले ‘कटिया’ डालकर बिजली का इस्तेमाल करते रहे हैं. यह लाइन यहां क़रीब बीस साल से है.
दरअसल, हाथरस ज़िले में ही एक दूसरा गांव भी है जिसका नाम नगला गढ़ीसिंघा है और प्रधानमंत्री को इसी गांव का नाम लेना था.
बिजली विभाग के कर्मचारी गांव वालों को ये बात बता भी गए थे और सीधा प्रसारण देखने के लिए टीवी का भी इंतज़ाम कर गए थे. लेकिन टीवी पर गांव का नाम न आने पर गांव के लोगों में काफी मायूसी थी.
लेकिन गुस्से में नगला गढ़ीसिंघा गांव के लोग भी थे क्योंकि उनके यहां महज़ एक दिन पहले बिजली आई है जबकि इन लोगों का आरोप है कि बिजली के बिल उन्हें तीन साल पहले के भेजे जा रहे हैं.
गांव के निवासी नत्थीलाल कहते हैं कि खंभे और तार तो यहां तीन साल से बिछे हैं लेकिन कनेक्शन आनन-फानन में दिया गया. तीन साल पहले ही गांव वालों से 1500-1500 रुपये लिए गए थे और रसीद सिर्फ़ 850 रुपये की दी गई थी.
वहीं बिजली विभाग के अधिकारी इस मुद्दे पर बात करने को तैयार नहीं हैं कि पीएमओ के पास गांव का ग़लत नाम कैसे वहां तक पहुंच गया. केंद्रीय ऊर्जा मंत्री ने ट्विटर पर जानकारी दी थी कि गांव का नाम राज्य सरकार के सूत्रों के ज़रिए उन तक पहुंचा है.
बहरहाल, ग़लती किसकी है, ये अलग मुद्दा है लेकिन नगला फ़तेला गांव के लोगों में ये उम्मीद बढ़ गई है कि ग़लती से ही सही, प्रधानमंत्री के नाम लेने के बाद हो सकता है उनके गांव की तक़दीर भी चमके.
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