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उम्मीदों के आड़े नहीं आयेगी पैसों की कमी

दान की परंपरा को नयी शक्ल देता क्राउडफंडिंग भारत में क्राउडफंडिंग का चलन तेजी से बढ़ा है. इंटरनेट आधारित प्लेटफॉर्म्स और सोशल मीडिया के जरिये लोगों से पूंजी जुटाने का यह तरीका इन दिनों चल पड़ा है. इसकी मदद से कहीं सामूहिक प्रयास से नहर बनायी जा रही है, तो कहीं कोल्ड स्टोरेज यूनिट लगाया […]

दान की परंपरा को नयी शक्ल देता क्राउडफंडिंग
भारत में क्राउडफंडिंग का चलन तेजी से बढ़ा है. इंटरनेट आधारित प्लेटफॉर्म्स और सोशल मीडिया के जरिये लोगों से पूंजी जुटाने का यह तरीका इन दिनों चल पड़ा है. इसकी मदद से कहीं सामूहिक प्रयास से नहर बनायी जा रही है, तो कहीं कोल्ड स्टोरेज यूनिट लगाया जा रहा है. यही नहीं, क्राउडफंडिंग के और भी कई आयाम हैं. आइए जानें तफसील से-
महाराष्ट्र के बाकी जिलों की तरह उस्मानाबाद में भी इस साल भयंकर सूखा पड़ा. इस जिले के सारे कुएं, तालाब सूख गये. खेती की बात कौन करे, पीने को पानी मुश्किल से मयस्सर था. इसी जिले का एक गांव है होर्ती. इस गांव के लोगों ने आनेवाले मॉनसून में बारिश का पानी संरक्षित कर आगामी वर्षों में सूखे से निबटने का इंतजाम करने की ठानी. इसके लिए गांववालों ने पास में ही स्थित एक पुरानी नहर का जीर्णोद्धार करने फैसला किया. मकसद था मॉनसून से पहले इस नहर को ज्यादा चौड़ी और गहरी करके पानी को इकठ्ठा करने की क्षमता को बढ़ाना. इस प्रोजेक्ट की कुल लागत छह लाख रुपये आंकी गयी, जिसमें से तीन लाख रुपये गांववालों ने इकट्ठे किये और बाकी रकम ऑनलाइन क्राउडफंडिंग के कैंपेन के जरिये जुटायी गयी.
क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म के सदस्य रंगनाथ कोटा के मुताबिक, जब हमने गांववालों से संपर्क किया, तो लोग इस बात को लेकर हैरान थे कि उनको और उनकी मुसीबतों को जाने बगैर कोई कैसे उनकी मदद करने के लिए आगे आ सकता है. मई की भीषण गरमी में सात सौ से ज्यादा किसानोंवाले इस गांव का हर व्यक्ति नहर की खुदाई में लग गया. गांववालों का इरादा इस नहर को दोबारा जीवित करके अपनी किस्मत को बदलने का था. होर्ती गांव के लोगों ने यह काम आपसी सहयोग से कर दिखाया. जब पैसों की कमी आड़े आयी, तो एक स्थानीय स्वयंसेवी संस्था ने क्राउडफंडिंग वेबसाइट ‘फ्यूल अ ड्रीम’ का नाम सुझाया.
गांव के किसानों ने अब तक क्राउडफंडिंग का नाम भी नहीं सुना था. उन्हें जब यह बताया गया कि इस वेबसाइट की मदद से देश-दुनिया के लोग उनके काम के बारे में जानेंगे, तो उन्हें यह विश्वास नहीं हो रहा था कि कोई अजनबी उनके गांव में नहर बनाने में मदद क्यों करेगा?
लेकिन, जानकार लोगों की मदद से जब गांववालों ने ‘फ्यूल अ ड्रीम’ के पास प्रस्ताव भेज कर नहर बनाने के लिए क्राउडफंडिंग का सहयोग मांगा और यह बताया कि यह नहर उनके गांव के किसानों के लिए किस तरह जीवनरेखा साबित होगी, तो कुछ ही हफ्तों में लगभग एक सौ लोगों की मदद से इस काम के लिए तीन लाख रुपये जुटा लिये गये. आठ किलोमीटर लंबी और 10 मीटर चौड़ी यह नहर अब तैयार हो चुकी है और बरसात का अच्छा-खासा पानी भी इसमें जमा हो रहा है. अब किसान इस बात को लेकर निश्चिंत हैं कि इस नहर के किनारों पर पड़नेवाले उनके खेतों में लगनेवाली सोयाबीन, गन्ने और दलहनों की फसल को पानी की कमी से जूझना नहीं होगा.
होर्ती गांव के रहनेवाले 69 वर्षीय मनोहर कुलकर्णी सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी हैं. वह कहते हैं कि पिछले दो साल से कई किसानों के खेत बेकार ही पड़े हुए थे, क्योंकि हमारे पास सिंचाई के लिए पर्याप्त जल की सुविधा नहीं थी. इसलिए मैंने गांववालों को इस मुश्किल समय में पैसे जुटाने और खुदाई करने के लिए प्रोत्साहित किया. कुलकर्णी कहते हैं कि सरकार के जरिये इस काम को पूरा होने में कई महीने लग जाते और पैसे भी ज्यादा लगते. लेकिन, जब हमने क्राउडफंडिंग के बारे में सुना तो पहली बार हमें विश्वास ही नहीं हुआ कि हमारे गांव में नहर बनाने के लिए ऐसे अजनबी लोग अपना सहयोग देंगे, जिन्होंने इस जगह का नाम भी पहले कभी नहीं सुन रखा था.
बिहार के जमुई जिले के केड़िया गांव की मुश्किलें भी देश के दूसरे किसानों से बहुत अलग नहीं है. देश में लगभग 40 प्रतिशत कृषि उत्पादन भंडार की उचित व्यवस्था के अभाव में खराब हो जाता है. अधिकांश किसान जो कमजोर पृष्ठभूमि से आते हैं, वे सब्सिडी के बावजूद भंडार की लागत को नहीं वहन कर पाते. इस समस्या से निबटने के लिए केड़िया के किसानों ने आपसी सहयोग से पैसे जुटाये. उनकी इस कोशिश को ग्रीनपीस संस्था का साथ मिला, जिसने ऑनलाइन अभियान चलाकर क्राउडफंडिंग के जरिये गांव में सौर ऊर्जा से चलनेवाला कोल्ड स्टोरेज लगाने में मदद की. इस कोल्ड स्टोर के लगने से केड़िया के किसान अपनी पैदावार का भंडारण कर सकते हैं और उनके पास इन उत्पादों को बाजार में अपनी शर्तों पर बेचने का मौका मिलेगा, जिससे उनकी आर्थिक सुरक्षा बढ़ेगी. साथ ही, किसान अपने पारंपरिक बीजों को संरक्षित कर सकेंगे.
ऐसा नहीं है कि क्राउडफंडिंग का माध्यम इंटरनेट ही बने. दरअसल यह एक तरह का चंदा ही है, जिसे लोग किसी कार्य या परियोजना में अपनी भागीदारी स्वरूप लगाते हैं. इसका एक उदाहरण हरियाणा के सिरसा जिले के एक गांव में देखने को मिला, जहां नौ गांवों के लोगों ने आपसी भागीदारी के जरिये एक करोड़ रुपये इकट्ठा कर एक पुल बना डाला. घग्गर नदी पर बना यह पुल 250 फुट लंबा और 14 फुट चौड़ा है.
यह पुल अकीला और पनिहारी गांवों को जोड़ता है, जिससे सिरसा की दूरी 30 किलोमीटर तक कम हो गयी है. दरअसल, क्राउडफंडिंग किसी खास परियोजना, व्यावसायिक उद्यम या सामाजिक हित के लिए वेब-आधारित प्लेटफॉर्म या सोशल नेटवर्किंग साइट के जरिये विभिन्न निवेशकों से छोटी-छोटी रकम की उगाही की कोशिश का नाम है. कुल मिलाकर कहें तो कल का चंदा, आज क्राउडफंडिंग का रूप लेकर उम्मीदों को उड़ान दे रहा है.

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