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कश्मीर में कैसे सामान्य होंगे हालात

बशीर मंज़र श्रीनगर के वरिष्ठ पत्रकार कश्मीर के हालात को सामान्य बनाने के लिए सुरक्षा बलों को पैलेट गन का इस्तेमाल रोक देना चाहिए. गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी कश्मीर के दौरे के समय ऐसी उम्मीद जताई थी. सीआरपीएफ और पुलिस जैसे सुरक्षा बल भीड़ को नियंत्रित करने में फेल हो गए हैं. सुरक्षा बलों […]

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कश्मीर के हालात को सामान्य बनाने के लिए सुरक्षा बलों को पैलेट गन का इस्तेमाल रोक देना चाहिए. गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी कश्मीर के दौरे के समय ऐसी उम्मीद जताई थी.

सीआरपीएफ और पुलिस जैसे सुरक्षा बल भीड़ को नियंत्रित करने में फेल हो गए हैं. सुरक्षा बलों ने 2008 और 2010 के आंदोलन से कोई सबक नहीं लिया है.

सुरक्षा बलों ने जितनी गोलियां चलाई हैं, वो सब शरीर के ऊपरी हिस्से में लगी हैं, ऐसा क्यों?

अगर सरकार अभी पैलेट गन का इस्तेमाल रोक दे और अफस्पा पर बहस शुरू करे कि उसे राज्य में कहां-कहां से हटाया जा सकता है, तो यह विश्वास बहाली का उपाय हो सकता है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि कश्मीर शांति चाहता है. और हम जम्मू-कश्मीर का विकास चाहते हैं और विकास के ज़रिए सभी समस्याओं का समाधान तलाश रहे हैं.

आज कश्मीर के जो हालात हैं, उसे देखते हुए प्रधानमंत्री को बहुत पहले ही यह कदम उठाने चाहिए थे. उन्हें राज्य के हालात को बेहतर बनाने के लिए ज़रूरी क़दम उठाने चाहिए थे.

पिछले 32 दिन से कश्मीर में हालात बहुत ख़राब हैं, क़रीब 60 लोग मारे गए हैं, हजारों जख्मी हैं और पैलेट गन का इस्तेमाल बेतहाशा हो रहा है.

लेकिन अब जब प्रधानमंत्री का बयान आ गया है तो होना यह चाहिए था कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार ऐसे क़दम उठाएं जिससे राज्य में हालात सामान्य हो सकें.

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कश्मीर की जो ज़मीनी सच्चाई है, उसमें लोगों को बहुत उम्मीद नहीं है. अतीत के उनके अनुभव भी बहुत कड़वे हैं. 2010 के आंदोलन में क़रीब 120 लोग मारे गए थे. इसमें ज्यादातर नौजवान थे.

इस आंदोलन के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने तीन वार्ताकारों की एक टीम बनाकर कश्मीर भेजा था. टीम में कश्मीर में आम लोगों और विभिन्न पक्षों से बात कर अपनी रिपोर्ट गृह मंत्रालय को सौंप दी. लेकिन अबतक उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है.

इसे देखते हुए कोई कश्मीरी कैसे इस बात की उम्मीद कर सकता है कि सरकार इस बार कोई क़दम उठाएगी.

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प्रधानमंत्री के बयान के बाद मुझे व्यक्तिगत तौर पर लग रहा है कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर गंभीर हो रही है. उसे लग रहा है कि यह क़ानून व्यवस्था से कही अधिक बड़ा मसला है.

कश्मीर के अलगाववादियों का एजेंडा बिल्कुल साफ है. वो किसी भी हालात में कश्मीर को भारत के साथ नहीं रखना चाहते हैं. वो चाहते हैं कि कश्मीर में संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के मुताबिक़ जनमत संग्रह हो और लोगों को आत्मनिर्णय का अधिकार मिले. लेकिन वो भारत-पाकिस्तान के साथ त्रिस्तरीय वार्ता के लिए भी तैयार हैं.

(बीबीसी संवाददाता निखिल रंजन से हुई बातचीत पर आधारित)

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