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घटते ब्लड शूगर की पहचान करेंगे कुत्ते
अध्ययन : यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज के वैज्ञानिकों का दावा इनसान का सबसे वफादार साथी माना जानेवाला कुत्ता अब डायबिटीज की भी पहचान कर सकता है़ जी हां, यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज के वैज्ञानिकों के एक अध्ययन के अनुसार, प्रशिक्षित कुत्तों की मदद से टाइप-1 डायबिटीज के मरीजों के खून में मौजूद ब्लड शुगर की कमी को […]
अध्ययन : यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज के वैज्ञानिकों का दावा
इनसान का सबसे वफादार साथी माना जानेवाला कुत्ता अब डायबिटीज की भी पहचान कर सकता है़ जी हां, यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज के वैज्ञानिकों के एक अध्ययन के अनुसार, प्रशिक्षित कुत्तों की मदद से टाइप-1 डायबिटीज के मरीजों के खून में मौजूद ब्लड शुगर की कमी को पहचाना जा सकता है.
कुत्ता यह सब सिर्फ सूंघ कर बता सकता है. गौरतलब है कि टाइप-1 डायबिटीज के मरीजों के खून में मौजूद ब्लड शुगर की कमी को चिकित्सा विज्ञान की भाषा में हाइपोग्लायकीमिया कहते हैं और इस अवस्था में मरीज अचानक कंपकपी, थकान और भटकाव महसूस करने लगता है. अगर मरीज को सही समय पर शुगर बूस्ट न मिले, तो उसे दौरा पड़ने और बेहोशी की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है बहरहाल, कैंब्रिज के वैज्ञानिकों के इस नये अध्ययन के मुताबिक, टाइप-1 डायबिटीज के मरीजों के खून में शुगर के स्तर में जब कमी आने लगती है तो इस स्थिति में उनकी सांसों से आइसोप्रीन नामक केमिकल की गंध आती है़
यह खास गंध टाइप-1 डायबिटीज के मरीजों में ब्लड शुगर के गिरते स्तर की चेतावनी हो सकता है. यह अध्ययन करनेवाले यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज के वैज्ञानिक मार्क इवान्स की मानें, तो आइसोप्रीन इनसान की सांसों में पाया जानेवाला सबसे सामान्य प्राकृतिक रसायन है.
इस अध्ययन में मार्क इवान्स की टीम ने औसतन 40 वर्ष की आठ ऐसी महिलाओं को शामिल किया, जो टाइप-1 डायबिटीज से पीड़ित थीं. अध्ययन में यह पाया गया कि नियंत्रित परिस्थितियों में प्रतिभागी मरीजों के ब्लड ग्लूकोज लेवल में धीरे-धीरे कमी आयी़ इसके बाद अध्ययनकर्ताओं ने बढ़ते-घटते ब्लड ग्लूकोज लेवल्स के साथ प्रतिभागी महिलाओं की सांसों के साथ निकलनेवाले विभिन्न केमिकल्स की पहचान और उनकी सही मात्रा जानने के लिए मास स्पेक्ट्रोमेट्री का सहारा लिया़ इसके नतीजों से पता चला कि हाइपोग्लायकीमिया के मामलों में मरीजों की सांस में आइसोप्रीन की मात्रा अप्रत्याशित रूप से बढ़ गयी थी़
इस बारे में इवान्स कहते हैं, हमें लगता है कि यह आइसोप्रीन शरीर में कॉलेस्ट्रॉल बनने का एक बाइ-प्रोडक्ट है, लेकिन अब तक यह साफ नहीं हो पाया है कि मरीजों के खून में घटती शुगर की मात्रा के साथ उनकी सांसों में इस केमिकल का स्तर बढ़ क्यों जाता है.
बहरहाल, इस अध्ययन के अगले चरण में हाइपोग्लायकीमिक मरीजों की पहचान के लिए कुत्तों की मदद ली गयी़
चूंकि कुत्ते सबसे ज्यादा पालतू जानवर होते हैं और घर-घर में पाये जानेवाले इन जानवरों की सूंघने की क्षमता जबरदस्त होती है, ऐसे में वैज्ञानिकों की यह सोच थी कि इनकी मदद से मरीज के खून में घटते ग्लूकोज की मात्रा खतरनाक रूप से कम होने का समय रहते आसानी से पता चल सके. डायबिटीज केयर जर्नल में छपी इस अध्ययन की रिपोर्ट के मुताबिक, आइसोप्रीन की गंध से हाइपोग्लायकीमिया की पहचान डायबिटीज के साथ जी रहे लोगों को समय रहते सचेत कर उनकी जान बचाने का एक बड़ा माध्यम बनेगी़
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