दक्षा वैदकर
तीन वृक्ष सपनों पर बात कर रहे थे. पहला वृक्ष, ‘मैं खजाना रखने वाला खूबसूरत बक्सा बनना चाहता हूं.’ दूसरा वृक्ष, ‘मैं तो विराट जलयान बनना चाहता हूं.’ तीसरा वृक्ष, ‘मैं सबसे ऊंचा वृक्ष ही बनना चाहता हूं, जिसकी शाखाएं स्वर्ग तक पहुंचें.’ एक दिन उस जंगल में कुछ लकड़हारे आये. उन्होंने तीनों वृक्षों को काट दिया. लकड़हारों से पहले वृक्ष को एक बढ़ई ने खरीदा और उससे पशुओं को चारा खिलानेवाला कठौता बनाया. वृक्ष उदास हो गया.
दूसरे वृक्ष को काट कर उन्होंने मछली पकड़नेवाली छोटी नौका बना दी. उसका सपना भी टूट गया. तीसरे वृक्ष को टुकड़ों में काट कर रख दिया गया. एक दिन उस पशुशाला में एक आदमी पत्नी के साथ आया. स्त्री ने वहां बच्चे को जन्म दिया. वे बच्चे को कठौते में सुलाने लगे. पहले वृक्ष ने स्वयं को धन्य माना कि अब वह संसार की सबसे मूल्यवान निधि अर्थात शिशु को आसरा दे रहा था. सालों बाद कुछ युवक दूसरे वृक्ष से बनायी गयी नौका में मछली पकड़ने गये. उसी समय बड़े जोरों का तूफान उठा. जब एक युवक ने उफनते समुद्र और हवाओं से कहा- ‘शांत हो जाओ’ तो तूफान थम गया. दूसरे वृक्ष को लगा कि उसने दुनिया के ऐश्वर्यशाली सम्राट को सागर पार कराया है.
तीसरे वृक्ष के पास कुछ लोग आये. उन्होंने उसके दो टुकड़ों को जोड़ कर एक घायल आदमी के ऊपर लाद दिया. बाद में आदमी के हाथों-पैरों में कीलें ठोंककर उसे पहाड़ी की चोटी पर खड़ा कर दिया. बाद में वृक्ष को बोध हुआ कि उस पहाड़ी पर वह स्वर्ग और ईश्वर के सबसे समीप पहुंच गया था क्योंकि ईसा मसीह को उस पर सूली पर चढ़ाया गया था.
दोस्तों, कहानी सीख देती है कि सब कुछ अच्छा करने के बाद भी जब हमारे काम बिगड़ते जा रहे हों तब हमें यह समझना चाहिए कि शायद ईश्वर ने हमारे लिए कुछ बेहतर सोचा है.
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