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‘कश्मीर मुद्दे को अनदेखा करने से यह हाल’

भारत प्रशासित कश्मीर में हिजबुल के चरमपंथी बुरहान वानी की मौत के बाद प्रदर्शन जारी है, जिसमें अब तक 23 लोगों की मौत हो चुकी है. कहा जा रहा है कि कश्मीर में कई साल के बाद ऐसे प्रदर्शन हो रहे हैं. इसके पीछे की वजह जानने के लिए बीबीसी ने बात की वरिष्ठ पत्रकार […]

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भारत प्रशासित कश्मीर में हिजबुल के चरमपंथी बुरहान वानी की मौत के बाद प्रदर्शन जारी है, जिसमें अब तक 23 लोगों की मौत हो चुकी है. कहा जा रहा है कि कश्मीर में कई साल के बाद ऐसे प्रदर्शन हो रहे हैं. इसके पीछे की वजह जानने के लिए बीबीसी ने बात की वरिष्ठ पत्रकार बशीर मंज़र से.

जानिए क्या कहते हैं बशीर मंज़र…

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हिज़बुल मुज़ाहिद्दीन के चरमपंथी बुरहान वानी की मौत के बाद जो कश्मीर में हालात बन रहे हैं, उससे लगता है कि लोगों के अंदर बहुत ज़्यादा गुस्सा था. ख़ासकर यहां के युवा काफ़ी गुस्से में हैं.

उसकी एक वजह ये हो सकती है कि कश्मीर मुद्दे को लेकर लंबे समय से भारत सरकार या राज्य सरकार की तरफ से कोई भी पहल नहीं हुई है.

पहले कभी कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत होती रहती थी. कभी भारत सरकार यहाँ के हुर्रियत और बाक़ी अलगाववादियों से बात करती थी, तो लगता था कि कोई न कोई कहीं न कहीं कश्मीर मुद्दे को लेकर दिलचस्पी ले रहा है और काम करना चाहता है.

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लेकिन पिछले कई साल से लगातार ऐसा लग रहा है भारत सरकार जान बूझकर कश्मीर मुद्दे को अनदेखा करती जा रही है, इससे युवाओं में बहुत ज्यादा गुस्सा है और इस बार के आंदोलन में वही गुस्सा दिख रहा है.

कश्मीर में हम युवा चरमपंथ की बात लंबे समय से कर रहे हैं जिसका एक चेहरा बुरहान बना हुआ था. यहां के युवा व्यवस्था से बहुत नाराज़ हैं और उन्हें लगता है कि उन्हें किनारे किया गया है.

कश्मीर में आज तक बहुत सारे चरमपंथी मारे गए हैं, लेकिन बुरहान को लेकर बड़ी प्रतिक्रिया हुई है, क्योंकि वो चरमपंथ में एक यूथ आइकॉन की तरह उभरा था.

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कश्मीर के युवाओं को लग रहा था कि बुरहान युवाओं का गुस्सा लेकर भारत सरकार से लड़ रहा है. लेकिन सरकार इस बात को समझने में ग़लती कर गई, वो यहाँ के युवाओं के गुस्से को समझने में नाकाम रही.

उम्मीद यही करें कि और लोग न मरे. अगर ऐसा होता है तो ये स्थिति थोड़े दिनों में शांत हो सकती है, लेकिन अगर किसी और की मौत हुई तो फिर यह मुश्किल होगा.

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1996 के बाद यहां पहली बार ऐसा हुआ कि किसी चरमपंथी की मौत के बाद इतनी बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर बाहर आए हैं.

1990 की शुरुआत में ऐसे प्रदर्शन होते थे. यहाँ 2008 या 2010 में भी प्रदर्शन हुए थे, लेकिन वह दूसरे तरीके का था.

मुझे तो वो दिन याद आ रहे हैं जब मुफ़्ती मुहम्मद सईद की बेटी को अगवा किया गया था और फिर चरमपंथियों को रिहा किया गया था, तब इतनी बड़ी संख्या में लोग बाहर आए थे.

(बीबीसी संवाददाता निखिल रंजन के साथ बातचीत पर आधारित)

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