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जड़ से उखाड़नी होंगी ये तीन समस्याएंं

पत्नी पर शक था, सिर पर दे मारी कुल्हाड़ी. गरीबी से थे परेशान, बच्चों को दे दिया जहर और खुद लगा ली फांसी. सात साल की बच्ची के साथ किया रेप. इस तरह की घटनाएं रोजाना अखबार में पढ़ने को मिल रही हैं. ये खबरें अब इतनी ज्यादा बढ़ गयी हैं कि लोगों को दुनिया […]

पत्नी पर शक था, सिर पर दे मारी कुल्हाड़ी. गरीबी से थे परेशान, बच्चों को दे दिया जहर और खुद लगा ली फांसी. सात साल की बच्ची के साथ किया रेप. इस तरह की घटनाएं रोजाना अखबार में पढ़ने को मिल रही हैं. ये खबरें अब इतनी ज्यादा बढ़ गयी हैं कि लोगों को दुनिया अब सुरक्षित नहीं लगती. लोग दूसरों पर भरोसा करने से डरने लगे हैं, सड़क हो या दफ्तर, हर जगह वे सचेत रहते हैं कि कहीं किसी को अनजाने में गुस्सा न दिला दें. अखबार में ऐसी घटनाओं को पढ़ कर लोग केवल यही सोचते हैं कि कोई कैसे इतना डिप्रेस्ड हो जाता है कि आत्महत्या जैसा कदम उठा लेता है? किसी को इतना गुस्सा क्यों आता है कि वह बिना आगे का सोचे किसी की हत्या कर बैठता है? ऐसे पुरुषों के दिमाग में क्या भरा होता है, जो रेप जैसा घिनौना काम कर बैठते हैं. आज हम आपको इन्हीं बातों के पीछे छुपी वजह बताना चाह रहे हैं.

आत्महत्या

आत्महत्या के कई कारण हैं. जो व्यक्ति पहले से ही किसी मानसिक बीमारी जैसे अवसाद, सीजोफ्रेनिया, साइकोसिस या लंबे समय से मानसिक तनाव में जी रहे हो, ऐसे 35 प्रतिशत व्यक्तियों में आत्महत्या करने की आशंका बनी रहती है. दूसरा प्रमुख कारण शराब का सेवन या किसी नशे की लत से ग्रसित 15 से 20 प्रतिशत व्यक्तियों में आत्महत्या करने की आशंका रहती है. अन्य प्रमुख कारणों में लोगों के जीवन में अचानक होने वाले सामाजिक, आर्थिक बदलाव, व्यापार में होने वाली हानि, सामाजिक बदनामी या असहनीय पीड़ा हो, तो 12 से 15 प्रतिशत व्यक्ति अपनी जीवनलीला समाप्त कर लेते हैं.

मस्तिष्क में होता है रासायनिक बदलाव

यूं तो आत्महत्या से पूर्व मस्तिष्क में होने वाली रासायनिक प्रक्रिया का अध्ययन संभव नहीं है, लेकिन क्राउले और बोरली नामक न्यूरो साइंटिस्ट ने मृत्यु के बाद दिमाग में होने वाली रासायनिक प्रक्रिया का अध्ययन गहराई से करने पर यह पाया कि जिन व्यक्तियों ने किसी भी कारण से आत्महत्या की हो, उनके मस्तिष्क में 5H1AA और 5H2AA नामक न्यूरोट्रांसमीटर की मात्रा सर्वाधिक पायी गयी. जबकि सामान्य व्यक्ति के मस्तिष्क में इस न्यूरोट्रांसमीटर की मात्रा नगण्य होती है. आगे अध्ययन में पता चला कि 5H1AA और 5H2AA न्यूरोट्रांसमीटर व्यक्ति के निर्णय लेने व चेतनावस्था की सोच को समाप्त कर देते हैं. पूर्णतया नकारात्मक सोच पैदा कर व्यक्ति को आत्महत्या करने पर विवश कर देते हैं. शोध में यह भी पाया गया कि जो व्यक्ति आत्महत्या के प्रयास से बच कर जिंदा रहे, उनमें उपरोक्त न्यूरोट्रांसमीटर की मात्रा कम होती गयी और बीडीएनएफ की मात्रा बढ़ने से नकारात्मक सोच समाप्त हो कर व्यक्ति वापस सामान्य रूप से जीवन व्यतीत करने लगे.

सकारात्मक सोच

आत्महत्या के मामले में आशंकित व्यक्ति से लगातार सकारात्मक सोच के साथ संवाद करना चाहिए. इससे इनके विचारों में परिवर्तन ला कर इनको आत्महत्या जैसे घिनोने कृत्य से दूर रखा जा सकता है.

आंकड़ों की जुबानी

दुनियाभर के आंकड़ों पर नजर डालें, तो एक लाख में से 12 व्यक्ति प्रतिघंटा दुनिया में कहीं भी आत्महत्या कर रहे होते हैं. भारत में 2009 से लगातार इन आंकड़ों में बढ़ोतरी हो रही है. भारत में आत्महत्या मृत्यु का पांचवा प्रमुख कारण बन चुका है. एशिया व भारत में स्त्रियों में इनकी संख्या पुरुषों की तुलना में बहुत ज्यादा है. इवका अनुपात 10:6 है. युवाओं में सर्वाधिक आत्महत्या का कारण उनके सिर में लगने वाली चोट है यानी सिर की चोट आगे चल कर आत्महत्या करने का कारण बन जाती है. 30 प्रतिशत युवाओं की मौत का कारण आत्महत्या है.

बचायी जा सकती है जान

मनोचिकित्सक बिंदा सिंह कहती हैं, वैसे तो सामान्य व्यक्तियों में आत्महत्या का पूर्वानुमान लगाना बहुत मुश्किल है, लेकिन शोध के आधार पर कुछ व्यक्तियों में आत्महत्या का पूर्वानुमान लगा कर उन्हें बचाया जा सकता है. जो व्यक्ति लंबे समय से मानसिक बीमारियां, नशे की लत या अचानक होने वाली असहनीय घटना से पीड़ित हैं, तथा उनके व्यवहार में आप अचानक परिवर्तन पाएं, जैसे बार-बार कीटनाशक दवाइयों की पूछताछ, दुकान पर जा कर रस्सियों के बारे में जानकारी प्राप्त करना, दिनभर परिवार के व्यक्तियों के साथ संवाद बंद कर देना, अपने आपको एकांत में रखना, किसी भी बहाने से खाना नहीं खाना, निराशाजनक बातों में रुचि रखने वाले व्यक्तियों में पूर्वानुमान किया जा सकता है. ऐसे व्यक्ति किसी भी समय आत्महत्या कर अपनी जीवन लीला को समाप्त कर सकते हैं. इन लक्षणों वाले व्यक्तियों पर कड़ी नजर रख इनको आत्महत्या करने से बचाया जा सकता है.

गुस्सा

गुस्सा इंसानी स्वभाव का हिस्सा है, लेकिन जब यह हद से गुजर जाता है, तो छोटी-सी बात को जिंदगी हिला देने वाले अंजाम की कगार पर लाकर खड़ा कर देता है. गुस्से को हम दो तरह से समझ सकते हैं: एक पैसिव एंगर व दूसरा एग्रेसिव एंगर. पैसिव ज्यादा नुकसानदायक नहीं, लेकिन एग्रेसिव है.

एग्रेसिव ऐंगर के लक्षण

दूसरों को धमकाना, छींटाकशी करना, मुक्का दिखाना, ऐसे कपड़ों और सिंबल का यूज करना जिनसे गुस्से का इजहार होता है, तेज आवाज में कार का हॉर्न बजाना

दूसरों पर फिजिकल अटैक करना, गालियां देना, अश्लील जोक सुनाना, दूसरों की भावनाओं की परवाह न करना, बिना किसी गलती के दूसरों को सजा देना.

सामान तोड़ना, जानवरों को नुकसान पहुंचाना, दो लोगों के बीच के रिश्ते खराब कर देना, गलत तरीके से ड्राइव करना, चीखना-चिल्लाना, दूसरों की कमजोरी के साथ खेलना, अपनी गलती का दोषारोपण दूसरों पर करना

जल्दी-जल्दी बोलना, जल्दी-जल्दी चलना, ज्यादा काम करना और दूसरों से ऐसी उम्मीद रखना कि वे भी ऐसा ही करें.

दिखावा करना, हर वक्त लोगों की अटेंशन चाहना, दूसरों की जरूरतों को नजरंदाज कर देना, लाइन जंप करना.

पुरानी बुरी यादों को हर वक्त याद करते रहना, दूसरों को माफ न कर पाना.

नुकसान पहुंचाता है गुस्सा

गुस्सा यदि अचानक और तेज आता है तो शरीर पर इसका बुरा असर पड़ता है. बॉडी में एड्रिनलिन और नोराड्रिनलिन हॉर्मोंस का लेवल बढ़ जाता है. हाई ब्लड प्रेशर, सीने में दर्द, तेज सिर दर्द, माइग्रेन, एसिडिटी जैसी कई शारीरिक बीमारियां हो सकती हैं. जो लोग जल्दी-जल्दी और छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा हो जाते हैं, उन्हें स्ट्रोक, किडनी फेल्योर और मोटापा होने के चांस रहते हैं. ज्यादा पसीना आना, अल्सर और अपच जैसी शिकायतें भी गुस्से की वजह से हो सकती हैं.

ये सब होते हैं शरीर में

जब किसी शख्स को गुस्सा आने वाला होता है, तो उसके हाथ-पैरों में खून का बहाव तेज हो जाता है, दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं, एड्रिनलिन हॉर्मोन तेजी से रिलीज होता है और बॉडी को इस बात के लिए तैयार कर देता है कि वह कोई ताकत से भरा एक्शन ले. इसके बाद गुस्सा शरीर में कुछ और केमिकल रिलीज होते हैं, जो कुछ पलों के लिए बॉडी को एनर्जी से भर देते हैं. दूसरी तरफ नर्वस सिस्टम में कॉर्टिसोल समेत कुछ और केमिकल निकलते हैं. ये केमिकल शरीर और दिमाग को कुछ पलों के लिए नहीं, बल्कि लंबे समय तक प्रभावित करते हैं. ये दिमाग को उत्तेजित अवस्था में रखते हैं, जिससे दिमाग में विचारों का प्रवाह बेचैनी के साथ और बेहद तेज स्पीड से होने लगता है.

कैसे करें गुस्से पर कंट्रोल

गुस्सा यदि हदें पार कर रहा है, तो उसके लिए सायकायट्रिस्ट से मदद लें

आपको समझना होगा कि आपके गुस्से का ट्रिगर कहां है. गुस्से की वजहें क्या हैं. जब आपको इन सवालों का जवाब मिलने लगे तो ऐसी कंडीशन को चैनलाइज करने के उपाय करें

गुस्सा चरम पर पहुंचने की स्थिति में है तो अपने ध्यान को हटाने की तकनीक अपनाएं. ऐसी चीजों के बारे में सोचें जो आपको अच्छी लगती हैं.

किसी भी बात पर गुस्सा आने पर रिएक्ट करने से पहले मन में 1 से लेकर 10 तक गिनती गिनें.

गहरी सांसें लें. आंख बंद करके कुछ देर शांत बैठने की कोशिश करें.

हो सके तो रोज सुबह हरे-भरे पार्क में घूमने जाएं.

रेप

रेप को लेकर आम सोच यह रही है कि रेप की वजह अनियंत्रित कामेच्छा है, जो किसी पल विशेष में इंसान के दिमाग पर जबर्दस्त तरीके से हावी हो जाती है. इसी अनियंत्रित कामेच्छा को संतुष्ट करने के लिए वह रेप जैसी सेक्शुअल वॉयलेंस की ओर कदम बढ़ा देता है, लेकिन इस मामले में हुई तमाम रिसर्च इस बात को प्रमाणित करती नजर आती हैं कि एक रेपिस्ट के मस्तिष्क में होने वाली मनोवैज्ञानिक उथल-पुथल में सेक्शुअल डिजायर से ज्यादा ताकतवर किसी महिला पर हावी होने और उसे कष्ट में तपड़ते देखने की चाह होती है और इसी चाहत को पूरा करने के लिए वह इंसान सेक्स को माध्यम बनाता है.

क्या कहता हैं रिसर्च

रेपिस्ट के मस्तिष्क को अच्छी तरह से पढ़ने के लिए बहुत समय पहले कनाडा में एक रिसर्च की गयी, जिसमें कुछ सामान्य पुरुषों को शामिल किया गया. उन्हें सेक्स संबंधी कुछ सीन दिखाए गये और सेक्स पर आधारित बातें सुनायी गयीं. इस दौरान उनके प्राइवेट पार्ट में होने वाले रक्त के प्रवाह को स्टडी किया गया. इस रिसर्च में शामिल साइकॉलजिस्ट ने बताया कि जब इन पुरुषों को ऐसे सेक्शुअल सीन दिखाए गये, जिनमें महिला पुरुष के बीच सहमति से सेक्स हो रहा था, तो उनके प्राइवेट पार्ट में रक्त प्रवाह पूरी तरह से सामान्य था. इसके बाद इन पुरुषों को ऐसे सीन दिखाए गये, जिनमें महिलाओं को सेक्स के लिए बाध्य किया जा रहा था, जिनमें महिलाएं कष्ट और परेशानी से तड़प रही थीं. ऐसे सीन देखकर इन सामान्य पुरुषों के प्राइवेट पार्ट की उत्तेजना में पहले के मुकाबले करीब 50 फीसदी की गिरावट दर्ज की गयी. यही प्रयोग कुछ ऐसे पुरुषों पर भी दोहराया गया, जो रेप के दोषी करार दिए जा चुके थे. इन लोगों में से ज्यादातर में सहमति से होने वाले सेक्स के मुकाबले जबर्दस्ती होने वाले सेक्स सीनों के दौरान ज्यादा उत्तेजना दर्ज की गयी. जैसे-जैसे महिला पर ज्यादा कष्ट ढाया जाता रहा, ऐसे लोगों की उत्तेजना बढ़ती गयी. इस तरह की कई रिसर्च बताती हैं रेप करने की इच्छा के जाग्रत होने के पीछे न तो महिलाओं द्वारा पहने जाने वाली भड़काऊ पोशाक का रोल है, न उसकी भाव भंगिमा का.

ये चीजें बनाती हैं रेपिस्ट

ज्यादातर मामलों में ऐसे लोगों के आसपास के लोग और दोस्त भी ऐसे ही होंगे. ये लोग उन्हें ऐसे काम करने के लिए उकसाते हैं और यह भरोसा दिलाते हैं कि तुम पकड़े नहीं जाओगे. ऐसे लोग आमतौर पर अकेले नहीं होते. उनका पूरा ग्रुप होता है और उस ग्रुप में वे अकसर ऐसी बातों को डिस्कस करते हैं. यही वजह है कि गैंग रेप की घटनाएं होती हैं.

ऐसे लोगों के उम्र के पड़ाव को देखें, तो पता चलता है कि उनमें महिलाओं के प्रति नजरिया सम्मानपूर्ण नहीं था. उनके मन में हमेशा यह बात हावी रही कि महिलाएं पुरुषों से नीचे दर्जे की हैं.

नशीले पदार्थों और शराब के जरूरत से ज्यादा सेवन की भी रेपिस्ट तैयार करने में बड़ी भूमिका है. रेप की घटनाओं को अंजाम देने से पहले ऐसे लोग ज्यादातर मामलों में नशे में पाये जाते हैं. नशा ही उनके भीतर यह आत्मविश्वास भरता है कि उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा.

जरूरत से ज्यादा पॉरनोग्राफी देखना भी किसी रेपिस्ट के मस्तिष्क का एक अहम पहलू है. पाया गया है कि ऐसे लोग जरूरत से ज्यादा पॉरनोग्राफी देखते हैं, वैसी कल्पनाएं करते हैं और फिर उन कल्पनाओं को साकार करने की प्रवृत्ति उन्हें उकसाती है.

ऐसे लोगों को अपने शिकार के बारे में बुरा महसूस नहीं होता. उन्हें लगता है कि जिस महिला के साथ वे ऐसी हरकत करने जा रहे हैं, वह कोई इंसान नहीं है, बल्कि कोई सेक्स ऑब्जेक्ट है, जिसे दर्द नहीं होता, जिसका मन नहीं दुखता. महिला को कष्टपूर्ण हालत में देखकर, उसे चीखते-चिल्लाते देखकर उन्हें आनंद मिलता है.

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