10.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

पेसा व अन्य कानूनों से गांवों को संघर्ष के लिए मिला संबल

कानून बनने से लोगों को लड़ने का स्थान मिला है. पर, प्रशासन आज भी असहयोग कर रहा है. जनता में जागरूकता कम है. कुछ लोगों में जागरूकता है, पर संगठन नहीं है. अगर वे संगठित हो जायें, तो फिर किसी की नहीं चलेगी. अपने फायदे के लिए समाज को तोड़ा भी जा रहा है. कानूनी […]

कानून बनने से लोगों को लड़ने का स्थान मिला है. पर, प्रशासन आज भी असहयोग कर रहा है. जनता में जागरूकता कम है. कुछ लोगों में जागरूकता है, पर संगठन नहीं है. अगर वे संगठित हो जायें, तो फिर किसी की नहीं चलेगी. अपने फायदे के लिए समाज को तोड़ा भी जा रहा है. कानूनी पेंच में फंसा कर गांव वालों को जेल में भी डाल दिया जाता है. इसके बावजूद इससे मदद मिली है.

मौजूदा व्यवस्था में गांव व आम आदमी कहां खड़ा है? बापू के सपने किस हद तक पूरे हो रहे हैं?
मौजूदा सिस्टम ही खराब है. व्यक्ति दोषी नहीं है. आज सभी चीजों पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कब्जा है. बीज उनका, दवा उनकी, स्वास्थ्य सेवाएं उनकी और हम बस उपभोक्ता. हम जब गांवों में लोगों को प्रशिक्षण देते हैं, तो उन्हें इस बारे में बताते हैं. हमारा प्रशिक्षण सिस्टम पर फोकस होता है. हमारे देश से अंगरेज चले गये, पर कानून आज भी उन्हीं का चल रहा है. गोरे की जगह काले अंगरेज आज सत्ता में बैठे हैं. मैं जब लोगों को प्रशिक्षण देता हूं तो मैकाले के 1835 के एक भाषण का जिक्र करता हूं, जिसमें उसने कहा : मैं भारत के कोने-कोने में गया. यहां कोई भिखारी-चोर नहीं दिखा. हर जगह योग्य व उच्च मूल्य वाले व्यक्ति दिखे..हमें इनकी रीढ़ की हड्डी तोड़नी होगी, जो इनकी आध्यात्मिकता व शिक्षा है. अगर भारतीय सोचने लगें कि हर विदेशी चीज उनके देश से ज्यादा महत्वपूर्ण है तो वे सच्चे गुलाम बन जायेंगे. बच्चों-बड़ों को हम शिक्षा देते हैं कि पहले खुद को पहचानो कि मैं कौन हूं. इस सवाल को ढूंढो. तभी गांव बदलेगा.

हम कैसे गांव को गांधी जी के सपनों के अनुरूप आत्मनिर्भर बनायें?
गांधी जी की सोच थी कि देश के सात लाख गांव का संघ देश को चलायेगा. कैसे गांव मजबूत होगा, आध्यात्मिकता व मानव मूल्य से देश चलेगा. जाति, धर्म, पार्टी से हट कर हम सब एक हैं. एक ही मां-बाप की संतान हैं. हमें पूंजीवादी व स्वार्थी व्यवस्था आपस में लड़ा रही है. गांधी जी व हमलोग सोचते हैं कि गांव में ही सारा खजाना है. जल, जंगल, जमीन इस धरती के संसाधन हैं, हम इसके ट्रस्टी हैं. हमें इसका उपभोग करना है और फिर अपने बच्चों को देकर जाना है.

यूरोप में परिवार नहीं है, समाज नहीं है. हमारे यहां है. गांधी जी ने सोचा था कि किसान के हाथ में सब कुछ रहे. लेकिन कॉरपोरेट ने किसानी को खत्म कर दिया, ताकि हम उसके गुलाम बन जायें. बच्चों को इसे बताना होगा. युवा शक्ति, बाल शक्ति देश की रीढ़ है. हम गांधी के सपनों का गांव बनाने के लिए चाहते हैं कि गांव में महीने में एक बार ग्राम संसद बैठे. इसमें महिला-पुरुष शामिल हों. युवा संसद बैठे, इसमें युवा लड़के -लड़कियां शामिल हों. बाल संसद बैठे, जिसमें बच्चे शामिल हों. हम कैसे इसमें सहभागी हों, ताकि रामराज बना सकें.

आपके संगठन भारत जन आंदोलन की इस संबंध में क्या कार्ययोजना है. कैसे करेंगे यह सब?
हम गांव में समिति बनायेंगे. जैसा की पंचायती राज में अवधारणा है. इसमें बुद्धिजीवियों की समिति, विकास संबंधी समिति भी होगी. यह मंत्रिमंडल की तरह होगी. हमारे गांव में हमारा राज कैसे हो, इसके बारे में बतायेंगे. प्रत्येक गांव से एक महिला व एक पुरुष का चयन पंचायत में प्रतिनिधित्व के लिए, प्रत्येक पंचायत से एक महिला व एक पुरुष का चयन प्रखंड में प्रतिनिधित्व के लिए और प्रत्येक प्रखंड से एक महिला व एक पुरुष का चयन हम जिले में प्रतिनिधित्व के लिए करेंगे. जनता का, जनता के लिए, जनता के द्वारा वाली व्यवस्था लागू करने करने की कोशिश करेंगे. अभी जो व्यवस्था है, वह पूंजीपति का, पूंजीपति के लिए, पूंजीपति के द्वारा है. हम यह घोषणा करायेंगे कि गांव गणराज्य के फैसले ग्रामसभा की अनुमति से ही हों और इस घोषणा से डीसी, राष्ट्रपति आदि को अवगत करायेंगे. उन्हें प्रस्ताव की कॉपी भेजेंगे. हमें सोचना होगा कि हम कृषि, पशुपालन कैसे बढ़ायें. अगर गांव में इतना दूध हो कि हर बच्च आधा किलो दूध पिये तो फिर आंगनबाड़ी का क्या काम है? मक्का-मड़वा की खेती हो और उसका दर्रा तैयार कर किसान आय अजिर्त करें. वे सिर्फ अनाज ही नहीं फल व फूल की भी खेती करें.

आपका संगठन अभी कितना सक्रिय हैं गांव को बदलने को लेकर?
हर गांव में हमारे पांच-दस लोग हैं. लेकिन कुछ शिथिलता भी आयी है. इसे सक्रिय करना होगा.

जनजातीय क्षेत्र पर कैसा संकट देखते हैं?
जनजातीय इलाके पर खतरा मंडरा रहा है. झारखंड-छत्तीसगढ़ ऐसे राज्य हैं. बीडी शर्मा हमेशा बोलते हैं कि गला तक पानी भर गया है, फिर भी कुछ नहीं कर रहे हो. वे बार-बार बोल कर लोगों को सक्रिय कर रहे हैं. समानता, सामूहिकता, सहभागिता पहले हमारे गांवों में थी. इससे गांव एकजुट रहता था. लोग आज काम करते हैं, लेकिन मेहनत नहीं करते. इधर-उधर से पैसे कमा रहे हैं. ऐसे लोगों में खोखलापन आ गया है, जिससे डर भी उत्पन्न हो गया.

पेसा का क्या लाभ हुआ है?
इस का काफी हुआ है. पेसा कानून आने के बाद जनजातीय इलाके के लोगों को एक कानूनी संबल मिला है. इस कानून के बाद अगर कोई पेड़ा काटता है, तो उसे गांव के लोग रोक देते हैं. जंगल में काफी सुधार आया है. कई गांव में लोगों ने जंगल बचाने के लिए पहरा करना शुरू किया. बिजूपाड़ा के पास एक पार्क बनना था, जिसका गांव के लोगों ने 2009-10 में विरोध किया. इस संबंध में ग्रामसभा में प्रस्ताव पारित कर वन विभाग को दिया. जिसके बाद वन विभाग को कहना पड़ा कि अगर ग्रामसभा नहीं चाहती है तो वहां पार्क नहीं बनाया जाना चाहिए. स्थानीय लोगों का कहना था कि पार्क बनने से उनकी अधिकार खत्म हो जायेगा और बच्चे बिगड़ जायेंगे. इसलिए मानना पड़ेगा कि पेसा कानून का लाभ हुआ है.

गांव को केंद्र में रख कर कई कानून बनाये गये. मनरेगा, वनाधिकार कानून, भूमि अधिग्रहण कानून आदि-आदि. इससे गांवों को कितना लाभ हुआ है?
कानून बनने से लोगों को लड़ने का स्थान मिला है. पर, प्रशासन आज भी असहयोग कर रहा है. जनता में जागरूकता कम है. कुछ लोगों में जागरूकता है, पर संगठन नहीं है. अगर वे संगठित हो जायें, तो फिर किसी की नहीं चलेगी. अपने फायदे के लिए समाज को तोड़ा भी जा रहा है, कानूनी पेच में फंसा कर गांव वालों को जेल में भी डाल दिया जाता है. इसके बावजूद इनसे मदद मिली है.

पंचायत कानून के बाद ग्रामसभा कमजोर हुई या मजबूत? इस कानून का क्या लाभ हुआ है?
आजादी के बाद जो पंचायत व्यवस्था थी उसमें धनी व जमींदारों का प्रतिनिधित्व था. अब चीजें बदल गयी हैं. पेसा के बाद सभी लोगों को पंचायत में प्रतिनिधित्व मिला है. लेकिन मानना पड़ेगा कि अब भी सिस्टम हावी है. लोग हावी नहीं हैं. इसलिए जागरूकता लाना होगा. सिस्टम के हावी होने से ग्रामसभा भी कमजोर हुई है. चुनावी राजनीति से गांव बंट गया है. चुने हुए प्रतिनिधि भी अब नेता बन गये हैं. जबकि वे धांगर (नौकर) हैं. सिर्फ योजनाओं के लिए ग्रामसभा हो रही है. पंचायत चुनाव से पहले अपेक्षाकृत ग्रामसभा अधिक मजबूत थी.

जोनस लकड़ा

संयोजक

भारत जन आंदोलन, झारखंड

Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel