नौ जून, 1900 काे रांची जेल में भगवान बिरसा मुंडा की मृत्यु हुई थी. उन्हाेंने अंगरेजाें के खिलाफ संघर्ष किया था. भगवान बिरसा ने बिरसा धर्म चलाया था. उनके अनुयायी काे बिरसाइत कहा जाता है, जाे बिरसा धर्म काे मानते हैं. काेल्हान-पाेड़ाहाट में आज भी ये लाेग हैं. हमने यह जानने का प्रयास किया कि बिरसाइताें के हालात कैसे हैं, उनकी जीवनशैली कैसी है. इसी क्रम में हमारे प्रतिनिधि राधेश िसंह राज ने उन गांवाें का दाैरा किया, जहां बिरसाइत रहते हैं. पढ़िए यह रिपाेर्ट.
मनोहरपुर का सारूड़ा गांव, जहां रहते हैं बिरसा के अनुयायी
उलगुलान के नेतृत्वकर्ता जननायक बिरसा मुंडा को झारखंड सहित छत्तीसगढ़ के लोग भगवान की तरह पूजते हैं. वहीं दूसरी ओर मनोहरपुर के नवसृजित गुदड़ी प्रखंड के सारूड़ा गांव में हर गुुरुवार को धर्मपिता सुकराम बरजो और धर्ममाता मंगरी बरजो के नेतृत्व में बिरसा मुंडा की भगवान की तरह श्रद्धा व भक्ति के साथ पूजा की जाती है. हर गुरुवार को यहां विभिन्न क्षेत्र से बिरसाइत धर्म माननेवाले पहुंचते हैं.
यहां प्रकृति के अलावा सिर्फ भगवान बिरसा की पूजा होती है. इस दिन बिरसाइत व सिउली धर्म मानेवाले ये लोग किसी तरह का शारीरिक श्रम नहीं करते हैं. गुदड़ी प्रखंड के विभिन्न गांवों में सैकड़ों बिरसाइत परिवार रहते हैं. यहां बिरसाइतों के धर्मगुरु का निवास स्थल है. बिरसाइतों ने बिरसा स्मारक समिति का गठन किया गया है. इसके अध्यक्ष दिनेश बारजो, सचिव रति बारजो हैं. समिति का काम आनेवाली पीढ़ी को अपना संस्कार देना है.
सामान्य आदिवासियों से ऊंचा है बिरसाइतों का जीवन स्तर : सुशील बारला
कांग्रेस नेता सह बिरसा स्मारक समिति के संरक्षक सुशील बारला ने बताया : बिरसाइत धर्म माननेवाले आदिवासियों का जीवन स्तर सामान्य आदिवासियों से ऊंचा है. इसका प्रमुख कारण दूरदृष्टा के साथ समय व पैसों की बरबादी से दूर रहने की संस्कृति है. बिरसाइत नशापान नहीं करते. इस कारण पैसों की बचत के साथ अापराधिक वारदात से बचते हैं. शाकाहारी होने के कारण भोजन में कम खर्च होता है. दैनिक मजदूरी में लक्ष्य निर्धारण कर कार्य करते हैं. साधारण वस्त्र धारण (सफेद कपड़ा) से भी बचत होती है. यही कारण है कि बिरसाइत के बच्चे उच्च शिक्षा ग्रहण करने समेत कौशल प्रशिक्षण ले रहे हैं.
सारंडा में भी बढ़ रहे भगवान बिरसा के अनुयायी
– तसवीर: 4 में कुलाबुरु में स्थापित भगवान बिरसा का शिलापट्ट
सारंडा के कुलाबुरु व आसपास क्षेत्र में भगवान बिरसा के अनुयायियों की संख्या लगातार बढ़ रही है. बीते साल कुलाबुरु में बिरसा मुंडा चौक की स्थापना की गयी. यहां चबूतरा बना, पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर चौक की स्थापना की गयी.
यहां भगवान बिरसा की याद में पुष्प गुच्छ समर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गयी. कुलाबुरु जंकशन के नाम से जाना जानेवाला चौक का नामकरण भगवान बिरसा मुंडा चौक रख दिया गया. विभिन्न गांव के मुंडा भगवान बिरसा व उनकी जीवनी से सीख उनके आदर्शों को मान रहे हैं. दयामनी बहंदा, विक्रम मुंडारी, गंगाराम बहंदा, विष्णु होनहोगा, बलदेव जाते, ओडिया देवगम आदि सारंडा में बिरसाइत का प्रचार-प्रसार व जागरूकता अभियान चला रहे हैं.
इन गांवों में रहते हैं बिरसाइत : गुदड़ी प्रखंड के देवां, लाम्डार, डींडापाई, उरूडींग, कायोम, गीरू, लुम्बई समेत बंदगांव प्रखंड के कई गांव में भी बिरसाइत रहते हैं.
सरकार से उपेक्षित हैं : बिरसाइत प्रतिनिधियों का कहना है कि जिस उद्देश्य से झारखंड का गठन हुआ था, वह सफल होता नहीं दिख रहा है.
हम भगवान बिरसा के बच्चे हैं. सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहे हैं. हमें मूलभूत सुविधाएं स्कूल, अस्पताल, सड़क, बिजली, धर्म कोड, सामुदायिक भवन, बिरसाइत भवन, लाल कार्ड, आवास योजना आदि नहीं मिलती है. ऐसे में राज्य निर्माण से पूर्व और बाद बिरसाइतों की जीवन शैली में विशेष बदलाव नहीं आया है.
सरकार के पास बिरसा को शहीद का दरजा देने संबंधी दस्तावेज नहीं
रांची : झारखंड के स्वतंत्रता सेनानियों को शहीद का दरजा देने संबधी कोई दस्तावेज राज्य सरकार के पास उपलब्ध नहीं है. बिरसा मुंडा, ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव, शेख भिखारी, चांद-भैरव, नीलांबर-पितांबर, टिकैत उमरांव सिंह, तिलका मांझी, सिद्धो-कान्हो आदि को कब शहीद का दरजा दिया गया, इसकी अधिसूचना आदि राज्य सरकार के पास नहीं है. इसका खुलासा सूचना अधिकार अधिनियम के तहत मांगे गये जवाब से हुआ है.
झारखंडी सूचना अधिकार मंच के अध्यक्ष विजय शंकर नायक की ओर से मांगी गयी सूचना के बाद राज्य सरकार के गृह, कारा व आपदा प्रबंधन विभाग के अवर सचिव सह जन सूचना पदाधिकारी (पीआइअो) सुधीर कुमार उपाध्याय ने इसकी जानकारी (पत्रांक 1407/10.3.2016) दी है. उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्रालय से भी झारखंड के शहीदों को दरजा देने संबंधी पूरी सूचना मांगी थी.
पर उन्हें सूचना नहीं दी गयी. इसके बाद उन्होंने केंद्रीय सूचना आयोग में अपील दायर की. अपील की सुनवाई के बाद आयोग ने भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद को 30 दिनों के अंदर सूचना उपलब्ध कराने का आदेश दिया. परिषद ने स्वतंत्रता सेनानियों का इतिहास आवेदक को उपलब्ध करा दिया, जिसे आवेदक ने नहीं मांगा था. सूचना से असंतुष्ट होने के बाद उन्होंने 18 मार्च को केंद्रीय सूचना आयोग में शिकायतवाद दर्ज करायी है.
किस सवाल का क्या जवाब मिला
1. झारखंड के वैसे वीर शहीदों की सूची उपलब्ध करायी जाये, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अंगरेजों के विरुद्ध आंदोलन किया.
जवाब : इसकी सूचना उपलब्ध नहीं है
2. अंगरेजी शासन के खिलाफ लड़नेवाले झारखंड के वीर शहीद बिरसा मुंडा, ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव, शेख भिखारी, चांद-भैरव, नीलांबर-पितांबर, टिकैत उमरांव सिंह, तिलका मांझी, सिद्धो-कान्हो को सरकार ने शहीद का दरजा दिया है, तो कब आैर काैन सी तिथि, वर्ष में इन्हें शहीद की सूची में रखा गया. शहीदों के आश्रितों को क्या-क्या सुविधाएं उपलब्ध करायी गयी हैं.
जवाब : इसकी कोई अधिसूचना इस प्राधिकार के पास उपलब्ध नहीं है. सिद्धो-कान्हो के दो वंशजों को 2014 में नौकरी दी गयी.
3. फांसी टुंगरी, अब पहाड़ी मंदिर में अंगरेजी शासन के खिलाफ लड़नेवाले झारखंड के काैन-काैन वीर सपूतों को फांसी दी गयी.
जवाब : इसकी सूचना उपलब्ध नहीं है.
आरटीआइ से खुलासा
ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव, शेख भिखारी, चांद-भैरव, नीलांबर-पितांबर, टिकैत उमरांव सिंह, तिलका मांझी व सिद्धो-कान्हो के शहीद का दरजा देने संबंधी कागजात भी नहीं है सरकार के पास