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क्या निशाने पर है अफ़ग़ानिस्तान

एम इलियास ख़ान बीबीसी संवाददाता पाकिस्तान ने अफ़ग़ानिस्तान से लगने वाली अपनी सीमा पर कड़े नियंत्रण नियम लागू किए हैं. इसकी वजह से अफ़ग़ान-पाकिस्तान सीमा पर एक अहम नाक़े पर हज़ारों लोग फंसे हुए हैं. एक जून से प्रभावी नियमों के तहत अब अफ़ग़ान नागरिकों को पाकिस्तान में दाखिल होने के लिए वैध पासपोर्ट और […]

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पाकिस्तान ने अफ़ग़ानिस्तान से लगने वाली अपनी सीमा पर कड़े नियंत्रण नियम लागू किए हैं. इसकी वजह से अफ़ग़ान-पाकिस्तान सीमा पर एक अहम नाक़े पर हज़ारों लोग फंसे हुए हैं.

एक जून से प्रभावी नियमों के तहत अब अफ़ग़ान नागरिकों को पाकिस्तान में दाखिल होने के लिए वैध पासपोर्ट और वीज़ा की ज़रूरत होगी.

तोर्ख़म क्रॉसिंग पर फंसे ज़्यादातर लोगों को इस बदलाव के बारे में पता नहीं था.

ख़ैबर दर्रे के पास इस क्रॉसिंग के रास्ते हर रोज़ 10 से 15 हज़ार लोग पाकिस्तान में प्रवेश करते हैं.

पाकिस्तान ने कहा है कि ये नए नियम जल्द ही सात क्रॉसिंग प्वाइंट्स पर भी लागू होंगे जिससे चरमपंथियों की आवाजाही को रोकने में मदद मिलेगी.

हालांकि धन की उपलब्धता पर निर्भर करेगा कि ये बलूचिस्तान प्रांत की सीमा पर भी लागू किया जाएगा या नहीं.

माना जा रहा है कि इन प्रतिबंधों का असर पाकिस्तान में मौजूद 10 लाख शरणार्थियों पर पड़ सकता है.

ये लंबी सीमा दोनों देशों के बीच तनाव का एक मुख्य कारण है.

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नियम लागू होने के बाद तोर्ख़म का दौरा कर चुके कई पाकिस्तानी पत्रकारों का कहना है कि बहुत लोगों को इसकी जानकारी ही नहीं थी.

ज़्यादातर लोगों के परिवार दोनों तरफ़ हैं और वे अक्सर दोनों देशों के बीच यात्रा करते हैं. ये लोग बेहद ग़रीब और अशिक्षित हैं.

ऐसे ही एक व्यक्ति शरीफ़ुल्ला ने पत्रकार इब्राहिम शिनवारी को उन्होंने बताया, "मुझे नहीं पता हम कैसे लौटेंगे. मेरे पास तो पासपोर्ट है लेकिन मेरी पत्नी के पास नहीं है और हमें वीज़ा की भी ज़रूरत होगी. हमें लौटना पड़ेगा, हमारा आधा परिवार पेशावर में है."

अफ़ग़ानिस्तान से आए अब्दुल वाहिद का कहना है कि सीमा के उस पार भी भारी भीड़ है.

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सीमा के उस पार एक महिला और उनकी बेटी रोती दिखीं क्योंकि वो पेशावर के एक अस्पताल में भर्ती अपने बीमार रिश्तेदार से मिल नहीं पा रहे थे.

लेकिन कुछ लोग अपने मृत रिश्तेदारों के ताबूत अफ़ग़ानिस्तान ले जाते दिखे.

फ़िलहाल पाकिस्तानी अधिकारी यात्रा दस्तावेज़ों की जांच कर रहे हैं वहीं अफ़ग़ान सीमा रक्षकों के लिए सबकुछ पहले जैसा ही है.

पाकिस्तान की तरफ़ से मशीनों के ज़रिए यात्रियों और उनके सामानों की जांच भी हो रही है.

पिछले करीब 40 साल से पाकिस्तान में रह रहे अफ़ग़ान शरणार्थी इन नाक़ों के ज़रिए बिना रोक-टोक दोनों देशों के बीच आते-जाते रहे हैं.

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वर्ष 2014 में आर्मी पब्लिक स्कूल और इसी साल जनवरी में चारसद्दा के पास बाचा ख़ान विश्वविद्यालय में हुए हमलों के बाद से ही पाकिस्तान अपनी सीमा पर ज़्यादा नियंत्रण की बात करता रहा है.

पाकिस्तान की दलील है कि बाचा ख़ान विश्वविद्यालय के दो हमलावर तोर्ख़म के रास्ते ही घुसे थे.

पाकिस्तान का आरोप है कि अफ़ग़ानिस्तान जाकर पाकिस्तान पर हमला करने वाले पाकिस्तानी तालिबान सदस्यों पर अफ़ग़ानिस्तान कोई कार्रवाई नहीं कर सका है.

हालांकि कुछ जानकारों कहते हैं कि ये नया नियम राजनीति से प्रेरित है और इसका चरमपंथियों से कोई लेना देना नहीं है.

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एक कारण ये भी माना जा रहा है कि तालिबान के साथ दोबारा शांति वार्ता टूटने के बाद दोनों देशों के बीच बढ़े तनाव के कारण पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान के लिए मुसीबतें खड़ी करना चाहता है.

एक और कारण पाकिस्तान की तरफ़ से सीमा को वैध बनाने की उत्सुकता है, जो अफ़ग़ानिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा के तौर पर स्वीकार करने को तैयार नहीं है.

अफ़ग़ान सूत्रों का कहना है तोर्ख़म में पाकिस्तानी प्रतिबंध ‘एकतरफ़ा’ क़दम है.

वर्ष 2014 तक पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और नैटो देश तोर्ख़म और चमन में समन्वय केंद्र चला रहे थे. नैटो के लौटने के बाद ये केंद्र निष्क्रिय हो गए हैं.

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