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इंजीनियरिंग छोड़ कर बने टैक्सी ड्राइवर

74 साल के विजय ठाकुर भी आम टैक्सीवालों की तरह सवारी को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाते हैं, लेकिन रास्ते में जब भी कोई जरूरतमंद मरीज उन्हें मिलता है, वह उसे बिना किराया लिये जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाने की कोशिश करते हैं. एक फोन कॉल पर वह दिन के किसी भी वक्त लोगों […]

74 साल के विजय ठाकुर भी आम टैक्सीवालों की तरह सवारी को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाते हैं, लेकिन रास्ते में जब भी कोई जरूरतमंद मरीज उन्हें मिलता है, वह उसे बिना किराया लिये जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाने की कोशिश करते हैं. एक फोन कॉल पर वह दिन के किसी भी वक्त लोगों को यह सुविधा मुहैया कराते हैं. खास बात यह है कि इन्होंने सेवा का यह काम, इंजीनियरिंग की अच्छी-खासी नौकरी छोड़ कर चुना है.

विजय ठाकुर मुंबई में रहते हैं और वह 31 सालों से टैक्सी चला रहे हैं. वह मुश्किल समय में मरीजों को अस्पताल पहुंचाते हैं. इस काम के लिए वह सवारी से पैसे नहीं मांगते़ विजय ने अपने करियर की शुरुआत एक मेकैनिकल इंजीनियर के तौर पर की थी, लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था़ बात सन 1984 की है, जब विजय की पत्नी प्रसव पीड़ा से तड़प रही थी़ रात के लगभग दो बज रहे थे और उन्हें अपनी पत्नी को अस्पताल पहुंचाने का कोई साधन नहीं मिल रहा था़ बड़ी मुश्किल से एक टैक्सीवाला तैयार हुआ, तो पैसे को लेकर अड़ गया़ थोड़ी ही देर में सारी कोशिशें बेकार हो गयीं और विजय की पत्नी चल बसीं. यहीं से उनकी जिंदगी बदल गयी और विजय ने 18 साल पुरानी नौकरी को अलविदा कह दिया़ तब से जरूरतमंदों को समय पर हॉस्पिटल पहुंचाना उनकी जिंदगी का मकसद बन गया़ अंधेरी में रहनेवाले विजय ने इस काम के लिए एक टैक्सी ली और अपना मकसद पूरा करने में जुट गये़

आज विजय की उम्र 74 साल है़ डायबिटीज ने उनके शरीर को कमजोर कर डाला है, परिवारवालों को उनका टैक्सी चलना पसंद नहीं है, लेकिन इन सब के बावजूद उनका इरादा कमजोर नहीं होता़ एक फोन कॉल पर दिन-रात की परवाह किये बगैर विजय ठाकुर लोगों को सुविधा मुहैया कराते हैं. विजय के 19 वर्षीय बेटे अमित की मौत 1999 में हो गयी़ बाद में उन्होंने एक बच्ची को गोद लिया, जो उनकी जिंदगी का आधार बनी. वह कहते हैं, कमाई कितनी भी हो कम ही पड़ती है. फिलहाल हर महीने लगभग 15 हजार कमा लेता हूं. इंजीनियर था तो इससे तीन गुना ज्यादा कमाता था़ जीने के लिए पैसा या पैसों के लिए जीना, यह आपको तय करना होगा़ टैक्सी चला कर विजय सामान्य यात्रियों से तो किराया लेते हैं, लेकिन मरीजों के लिए उनकी सेवा मुफ्त रहती है़

विजय ठाकुर ने टैक्सी पर अपना मोबाइल नंबर लगा रखा है और वह सवारियों को अपना कार्ड भी देते हैं, ताकि जरूरत पड़ने पर कोई उन्हें सुबह के तीन बजे भी बुला सके़ वह बताते हैं कि मरीजों की सेवा से उन्हें भीतर से एक खुशी मिलती है, जो पैसों से खरीदी नहीं जा सकती़ एक घटना को याद करते हुए वह कहते हैं, एक बार अंधेरी के पास एक कार दुर्घटनाग्रस्त हुई़ उसमें जख्मी हुई महिला की गोद में छह माह का बच्चा था़ उसे जैसे-तैसे अस्पताल ले गया़ मां बच नहीं सकी़ कुछ दिनों बाद कुछ लोग मेरे पास आये और मुझे शेट्टी नाम के आदमी के पास ले गये़ शेट्टी ने मुझे शुक्रिया कहा और तिजोरी खोल कर कहा कि जितना चाहिए उतना पैसा ले लीजिए़ मैंने एक रुपया भी नहीं लिया़.

कुछ महीने पहले घटी एक अन्य घटना का जिक्र करते हुए विजय कहते हैं कि सुबह के दो बजे, उन्होंने दो लोगों को टैक्सी रोकने की कोशिश करते देखा, तो वे उनके पास गये़ उनकी नजर उन दोनों के सहारे खड़ी उस महिला पर पड़ी, जो 75 प्रतिशत जल चुकी थी. यही वजह थी कि कई टैक्सी ड्राइवर उस महिला को अपनी टैक्सी में बिठाने से कतरा रहे थे. लेकिन विजय ने उस महिला को अपनी कार में बिठाया और टैक्सी में पड़ा एक कंबल भी उसे दिया और उसे खुद को पुरी तरह से ढकने को कहा. इसके बाद वह उन्होंने उस महिला और उन लोगों को पास के अस्पताल पहुंचाया़ यही नहीं, विजय लगातार यह जानने की भी कोशिश करते रहे कि उस महिला की सेहत में कितना सुधार हो रहा है़ विजय बताते हैं कि अब वह महिला उनकी अच्छी दोस्त बन गयी है और आज भी वह उन्हें उस रात के लिए धन्यवाद कहती है.

विजय आगे बताते हैं, 26 जुलाई 2005 को मुंबई में आयी बाढ़ और 26 नवंबर 2008 के मुंबई हमलों के दौरान भी मेरी यही कोशिश रही थी कि मैं उन लोगों तक पहुंच पाऊं, जिन्हें मेरी जरूरत है. अब मैं 74 साल का हूं और 11 भाषाएं बोल लेता हूं. आज तक मैंने 500 से ज्यादा जरूरतमंदों को अस्पताल पहुंचाया है. जब भी कोई मुझे टैक्सी ड्राइवर कहता है, तो मुझे खुद पर गर्व ही होता है. आज के जमाने में जहां अधिकांश लोगों का यही लक्ष्य होता है कि वे पढ़ाई के बाद एक ऐसी नौकरी पकड़ें, जिससे ज्यादा से ज्यादा पैसा कमा कर वे अपने परिवार को बेहतर जिंदगी दे सकें, वहीं देश की एक प्रतिष्ठित कंपनी में मेकैनिकल इंजीनियर की अच्छी नौकरी छोड़, तीन दशकों से टैक्सी चला कर मरीजों को मुफ्त में अस्पताल पहुंचानेवाले विजय ठाकुर के बारे में जान कर उनके सम्मान में हमारे हाथ सहसा-ही उठ जाते हैं.

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