।। दक्षा वैदकर।।
ह म सभी का अधिकांश मानसिक विकास शिक्षा और अनुशासन की वजह से हुआ है. हम में से अधिकांश लोग स्कूल, कॉलेज छोड़ते ही अनुशासन, पढ़ना-लिखना या कहें कि गंभीर अध्ययन छोड़ देते हैं. हम किसी भी चीज का गहराई से अध्ययन करना बंद कर देते हैं. इन सब के बजाय हम टीवी देखने में अपना समय बरबाद करते हैं. एक सव्रेक्षण में बताया गया है कि अधिकांश घरों में एक सप्ताह में 35 से 45 घंटे तक टीवी चलती रहती है. यह अवधि अधिकांश लोगों द्वारा नौकरी में लगाये जानेवाले समय के बराबर है. यह अवधि ज्यादातर बच्चों द्वारा अपने स्कूल-कॉलेज में लगाये जानेवाले समय से कहीं अधिक है. टेलीविजन आज का सबसे शक्तिशाली और प्रभावी माध्यम है. जब हम इसे देखते हैं, तो हम इसके माध्यम से सिखाये जा रहे जीवनमूल्यों के संपर्क में आते हैं. वे मूल्य बहुत सूक्ष्म और अदृश्य तरीकों से हम पर शक्तिशाली प्रभाव डाल सकते हैं.
हालांकि, टीवी देखना इतना बुरा नहीं है, अगर इसे समझदारी से देखा जाये. आप इसके ज्ञानवर्धक, प्रेरक कार्यक्रमों से फायदा भी उठा सकते हैं. ये बातें मुङो तब समझ आयी, जब पिछले दो वर्षो से मेरा टीवी देखना छूट गया. अपने घर में मैं पहले बहुत टीवी देखती थी. देखती क्या, सिर्फ चैनल बदला करती थी. इसी में घंटों निकल जाते और टाइम पास हो जाता था. अब जबकि घर से दूर रह रही हूं, टीवी नहीं होने के कारण वक्त गुजारने के लिए खूब पढ़ती हूं. अब अपनी दिनचर्या का विश्लेषण करने पर मुङो समझ आया कि टीवी ने मेरे साथ क्या किया, मेरी सोच व समय को किस तरह नुकसान पहुंचाया.
इस बारे में मैंने दोस्तों से चरचा की, तो यही बात सामने आयी कि टीवी पर निर्भरता एक प्रकार की बीमारी है. हम सभी को किसी खास कार्यक्रम की लगातार खुराक की आदत लग जाती है. हम ऐसे ज्यादातर कार्यक्रम देखते हैं, जो हमारा केवल समय बरबाद करते हैं. इससे बेहतर है कि हम कोई अच्छा साहित्य पढ़ें. स्कूल की पढ़ने की आदत को कभी न छोड़ें, क्योंकि जो व्यक्ति पढ़ता नहीं है, वह उस व्यक्ति से बेहतर स्थिति में नहीं है, जो पढ़ सकता है.
बात पते की..
आप एक महीने में एक पुस्तक पढ़ने का लक्ष्य बना कर शुरुआत करें, फिर दो सप्ताह में एक पुस्तक, फिर एक सप्ताह में एक पुस्तक पढ़ें.
टीवी से कई गुना बेहतर साथी किताबें होती हैं, अगर आप सही पुस्तक का चुनाव करते हैं. यह आपको हर चीज के बारे में गहराई से जानकारी देगी.