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वासंतिक नवरात्र सातवां दिन : कालरात्रि दुर्गा का ध्यान
करालरूपा कालाब्जसमानाकृति विग्रहा। कालरात्रिःशुभं दद्दाद् देवी चण्डाट्टहासिनी।। जिनका रूप विकराल है, जिनकी आकृति और विग्रह कृष्ण कमल सदृश है तथा जो भयानक अट्टहास करनेवाली हैं, वे कालरात्रि देवी दुर्गा मंगल प्रदान करें त्रिशक्ति के स्वरूप-7 सर्वोपरि, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी, सर्वाधार, सर्वमय, समस्तगुणाधार, निर्विकार, नित्य, निरंजन, सृष्टिकर्ता, पालनकर्ता, संहारकर्ता, विज्ञानानंदघन, सगुण, निर्गुण, साकार, निराकार परमात्मा एक ही […]
करालरूपा कालाब्जसमानाकृति विग्रहा।
कालरात्रिःशुभं दद्दाद् देवी चण्डाट्टहासिनी।।
जिनका रूप विकराल है, जिनकी आकृति और विग्रह कृष्ण कमल सदृश है तथा जो भयानक अट्टहास करनेवाली हैं, वे कालरात्रि देवी दुर्गा मंगल प्रदान करें
त्रिशक्ति के स्वरूप-7
सर्वोपरि, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी, सर्वाधार, सर्वमय, समस्तगुणाधार, निर्विकार, नित्य, निरंजन, सृष्टिकर्ता, पालनकर्ता, संहारकर्ता, विज्ञानानंदघन, सगुण, निर्गुण, साकार, निराकार परमात्मा एक ही हैं. वास्तव में त्रिशक्ति, वह एक महाशक्ति ही परमात्मा है, जो विभिन्न रूपों में विविध लीलाएं करती हैं.
परमात्मा के पुरूषवाचक सभी स्वरूप इन्हीं अनादि, अविनाशिनी, अनिर्वचनीया, सर्वशक्तिमयी, परमेश्वरी आद्यामहाशक्ति के ही हैं. ये ही महाशक्ति अपनी मायाशक्ति को जब अपने अंदर छुपाये रखती हैं, उससे कोई क्रिया नहीं करतीं, तब निष्क्रिय, शुद्ध ब्रह्म कहलाती हैं. ये ही जब उसे विकासोन्मुख करके एक से अनेक होने का संकल्प करती है, तब स्वयं ही पुरूषरूप से मानो अपनी ही प्रकृतिरूप योनि में संकल्प द्वारा चेतनरूप बीज स्थापन करके सगुण, निराकार परमात्मा बन जाती है. श्रीमद् भगवद्गीता में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं-
मम योनिर्महद् ब्रह्म तस्मिन्गर्भं दधाम्यहम्।
संभवः सर्वभूतानां ततो भवति भारत।।
हे अर्जुन, मेरी महदब्रह्म अर्थात् अष्टधा मूल प्रकृति संपूर्ण भूतों की योनि है और उसमें मैं चेतनरूपी बीज को स्थापित करता हूं, उस जड़-चेतन के संयोग से सभी भूतों की उत्पत्ति होती है. चेतन परमात्मरूपिणी त्रिशक्ति के बिना जड़ प्रकृति से यह सारा कार्य कदापि संपन्न नहीं हो सकता. इस प्रकार त्रिशक्ति के रूप में महाशक्ति विश्वरूप विराट पुरूष बनती हैं और इस सृष्टि के निर्माण में स्थूल निर्माणकर्ता प्रजापति के रूप में आप ही अंशावतार के भाव से ब्रह्मा और पालन-कर्ता के रूप में विष्णु और संहारकर्ता के रूप में रूद्र बन जाती है.
ये ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदि अंशावतार भी किसी कल्प में दुर्गारूप से होते हैं, किसी में महाविष्णुरूप से, किसी में महाशिवरूप से, किसी में श्रीरामरूप से और किसी में श्रीकृष्णरूप से. एक ही शक्ति विभिन्न कल्पों में विभिन्न नाम रूपों से सृष्टि रचना करती है. इस विभिन्नता का कारण और रहस्य भी उन्हीं को ज्ञात है.
अनंत ब्रहाण्डों में त्रिशक्ति स्वरूपा महाशक्ति असंख्य ब्रह्मा, विष्णु, महेश बनी हुई हैं और अपने को ढक कर आप ही जीवसंज्ञा को प्राप्त हैं. ईश्वर, जीव, जगत- तीनों आप ही हैं. भोक्ता, भोग्य और भोग- तीनों आप ही हैं. इन तीनों को अपने से ही निर्माण करनेवाली और तीनों में व्याप्त रहनेवाली भी आप ही हैं.
(क्रमशः) प्रस्तुति : डॉ एन के बेरा
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