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दिव्या एक्का के सपनों की उड़ान

पुष्यमित्रदिव्या एक्का इन दिनों सरस्वती एवियेशन एकेडमी, सुल्तानपुर में कॉमर्शियल पायलट की ट्रेनिंग ले रही हैं. इनकी 70 घंटे की ऑन एयर ट्रेनिंग पूरी हो चुकी है. जुलाई, 2014 तक इनकी ट्रेनिंग पूरी हो जायेगी, इसके साथ ही वे संभवत: झारखंड की पहली महिला कॉमर्शियल पायलट बन जायेंगी. रांची की रहने वाली एक्का का यह […]

पुष्यमित्र
दिव्या एक्का इन दिनों सरस्वती एवियेशन एकेडमी, सुल्तानपुर में कॉमर्शियल पायलट की ट्रेनिंग ले रही हैं. इनकी 70 घंटे की ऑन एयर ट्रेनिंग पूरी हो चुकी है. जुलाई, 2014 तक इनकी ट्रेनिंग पूरी हो जायेगी, इसके साथ ही वे संभवत: झारखंड की पहली महिला कॉमर्शियल पायलट बन जायेंगी. रांची की रहने वाली एक्का का यह सपना झारखंड सरकार के कल्याण विभाग की उस महत्वाकांक्षी योजना की वजह से पूरा हो रहा है, जिसके तहत सरकार ने हर साल 30 आदिवासी युवाओं को पायलट बनाने का लक्ष्य रखा था.

रांची के खादगड़ा बस स्टैंड के पास रहने वाली दिव्या एक्का को आसमान में उड़ने की इच्छा हमेशा से थी. मगर बड़े होने पर उसे पता चला कि कॉमर्शियल पायलट की ट्रेनिंग के लिए बहुत सारे पैसे खर्च होते हैं. ऐसे में उन्होंने धीरे-धीरे अपने सपने से समझौता कर लिया. उनके पिता सरकारी सेवा में थे और उनकी आय इतनी नहीं थी कि वे दिव्या को कॉमर्शियल पायलट बनाने के लिए 20-25 लाख रुपये खर्च कर सकें.

इंजीनियरिंग छोड़कर पायलट
बचपन से ही पढ़ाई-लिखायी में मेधावी रहने वाली दिव्या ने इंटरमीडियेट के बाद इंजीनियरिंग का टेस्ट पास कर लिया और बीआइटी सिंदरी में उसका नामांकन हो गया. मगर जब वह तीसरे सेमेस्टर में पढ़ रही थी, तभी अखबार में झारखंड सरकार के कल्याण विभाग की ओर से सूचना दी गयी कि वह राज्य के आदिवासी युवा-युवतियों को कॉमर्शियल पायलट का प्रशिक्षण देगी. इसके बाद दिव्या ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़कर इस योजना के लिए अप्लाइ कर दिया.

उन दिनों की बात याद करते हुए दिव्या बताती हैं कि उन्हें सूचना प्रभात खबर अखबार से ही मिली थी और इसी के जरिये उन्होंने आवेदन भी किया था. इसके बाद लिखित परीक्षा ली गयी और चयनित छात्रों का साक्षात्कार भी लिया गया, जिसमें उनके समेत 30 युवाओं का चयन हुआ और उनकी ट्रेनिंग शुरू हो गयी.

आसान नहीं रहा ट्रेनिंग का सफर
दिव्या का चयन पायलट ट्रेनिंग के लिए साल 2008 में ही हुआ था, मगर दो बार उन्हें गलत संस्थाओं में भेज दिया गया. बाद में उन संस्थानों की मान्यता रद्द कर दी गयी, जिस वजह से उनकी मेहनत बेकार हो गयी. अब जहां वे ट्रेनिंग कर रही हैं वहां अच्छी व्यवस्थाएं हैं और प्रशिक्षुओं के रहने-खाने का भी इंतजाम है. अब तक वे 70 घंटे की ऑन एयर ट्रेनिंग पूरी कर चुकी हैं, उनके कई साथी 100 घंटे उड़ान का भी अनुभव ले चुके हैं.

30 में से बचे 17 ट्रेनी
दिव्या बताती हैं कि अलग-अलग कारणों से अब उनके बैच में सिर्फ 17 प्रशिक्षु ही बच गये हैं. 9 प्रशिक्षु दिव्या के साथ सरस्वती एवियेशन एकेडमी, सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश में ट्रेनिंग ले रहे हैं. शेष 8 प्रशिक्षु मध्य प्रदेश के सागर में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं.

सागर में प्रशिक्षण हासिल कर रहे चाइबासा के दोपाइ गांव के टिकु तिउ का सपना भी इसी योजना की वजह से पूरा हुआ है. एक प्राइमरी टीचर के पुत्र टिकु ने कभी नहीं सोचा था कि वे एक कॉमर्शियल पायलट बनेंगे. वे जिस इलाके से आते थे और जिस हो समुदाय से संबंधित थे. वे इंजीनियर-डॉक्टर बन जाने को ही बड़ी बात मानते थे. 2008 के बैच में चयनित टिकु भी 50 घंटे से अधिक उड़ान का अनुभव हासिल कर चुके हैं.

जॉब का संकट
दो-दो संस्थानों में धोखा खाने के बाद सागर में प्रशिक्षण लेते हुए वे थोड़ा आश्वस्त महसूस कर रहे हैं. यहीं सारी व्यवस्था ठीक लग रही है और झारखंड सरकार की ओर से भी इनका ठीक-ठाक ख्याल रखा जा रहा है. मगर फिर भी इन्हें अपने भविष्य की चिंता अधिक सता रही है. वे कह रहे हैं कि ट्रेनिंग के बाद जॉब मिलना असली चुनौती होगी, क्योंकि जॉब मार्केट अभी काफी स्लो है.

एयर इंडिया से उम्मीदें
वैसे जॉब के मामले में दिव्या खुद को आश्वस्त महसूस कर रही है. उसका कहना है कि एयर इंडिया में रिजर्वेशन कैटोगरी की सीटें खाली ही रहती हैं इसलिए एयर इंडिया में उन्हें जॉब मिल ही जायेगा. दिव्या और टिकु जैसे प्रशिक्षु पायलटों के लिए कुंदन लाल परेया आइडियल की तरह हैं. कुंदन ने भी इसी तरह झारखंड सरकार की इसी योजना के जरिये पायलट की ट्रेनिंग ली थी और अभी एयर इंडिया में कॉमर्शियल पायलट के तौर पर काम कर रहे हैं.

उड़ान पर ग्रहण, नर्सिग की राह खुली
झारखंड सरकार के कल्याण विभाग ने कुछ साल पहले राज्य के जनजातीय समुदाय के युवाओं को कॉमर्शियल पायलट ट्रेनिंग करवाने की बड़ी महत्वपूर्ण योजना शुरू की थी. मगर यह योजना शुरुआत से ही कई तिकड़मों में उलझती रही. कई दफा गलत एजेंसियों के चक्कर में पड़कर युवाओं की ट्रेनिंग में देर होती रही. अब सरकार धीरे-धीरे इस मसले पर विचार करने लगी है कि इस योजना को बंद ही कर दिया जाये. कल्याण विभाग अब इसके बदले नर्सिग जैसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही है.

2008 के बैच की भी ट्रेनिंग अधूरी
दरअसल आदिवासी युवाओं को पायलट बनाने वाली यह योजना काफी महत्वाकांक्षी थी, मगर पिछले बैच के बच्चे दो बार ऐसी एजेंसियों के चक्कर में पड़ गये जिनकी मान्यता बाद में रद्द हो गयी. ऐसे में 2008 में चयनित बच्चे भी अभी तक पायलट की ट्रेनिंग पूरी नहीं कर पाये हैं. अभी ये बच्चे 50 घंटे का प्रशिक्षण अनुभव ही हासिल कर पाये हैं, जबकि कॉमर्शियल पायलट बनने के लिए कम से कम 200 घंटे प्लेन उड़ाने का अनुभव आवश्यक है.

बहुत कम युवा बन पाये पॉयलट
दरअसल, झारखंड में कोई ऐसी एजेंसी या इंस्टीच्यूट नहीं है जो छात्रों को कॉमर्शियल पायलट की ट्रेनिंग देती हो. ऐसे में विभाग चयनित युवाओं को ुप्रशिक्षण के लिए बाहर दूसरी एजेंसियों के पास भेज देता है. 2008 में चयनित बच्चों को पहले छत्तीसगढ़ के एक इंस्टीच्यूट में भेजा गया, इसके बाद हैदराबाद की एक एजेंसी के पास भेजा गया.

मगर दुर्भाग्यवश दोनों संस्थाओं की मान्यता रद्द हो गयी और युवाओं की ट्रेनिंग पिछड़ती गयी. हर साल 30 युवाओं को पायलट बनाने वाली इस योजना के जरिये अब तक बहुत कम युवा कॉमर्शियल पायलट बन सके हैं.

पायलट के बदले नर्सिग
हालांकि विभाग यह नहीं कहता कि इस योजना की विसंगतियों के कारण इसे बंद किया जा रहा है. आदिवासी कल्याण आयुक्त राजेश कुमार शर्मा कहते हैं कि एक पायलट के प्रशिक्षण पर विभाग का तकरीबन 25 लाख रुपया खर्च होता है.

इसके मुकाबले इतने पैसे में 50 युवतियों को नर्सिग की ट्रेनिंग दी जा सकती है. इसे ध्यान में रखते हुए विभाग आने वाले समय में पायलट प्रशिक्षण की योजना को बंद करने पर विचार कर सकता है. इसके बदले नर्सिग जैसे पाठय़क्रमों को बृहद स्तर पर संचालित करने की योजना बन सकती है.

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