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स्वामी राधानाथ जी ने कहा, भक्ति के रास्ते में ही जीवन

प्रभात खबर के आमंत्रण पर रांची आये स्वामी राधानाथ जी ने मंगलवार की शाम जिमखाना क्लब में प्रवचन दिया.स्वामी राधानाथ जी ने कहा कि भक्ति के रास्ते में ही जीवन है. परम सत्य सभी चीजों का स्त्रोत है. ईश्वर सर्वभूता हैं, वह सर्व-व्याप्त हैं. भगवान व्यक्ति के हृदय में ही स्थित हैं. भौतिक खुशियां, जो […]

प्रभात खबर के आमंत्रण पर रांची आये स्वामी राधानाथ जी ने मंगलवार की शाम जिमखाना क्लब में प्रवचन दिया.स्वामी राधानाथ जी ने कहा कि भक्ति के रास्ते में ही जीवन है. परम सत्य सभी चीजों का स्त्रोत है. ईश्वर सर्वभूता हैं, वह सर्व-व्याप्त हैं. भगवान व्यक्ति के हृदय में ही स्थित हैं. भौतिक खुशियां, जो नदियों की तरह आती हैं, उनका सामना करें, जिम्मेवारी से नहीं भागें. सभी चीज, सभी बड़े धर्म यही बताते हैं कि सच्ची भक्ति से ही परम ज्ञान पाया जा सकता है. उन्होंने श्रोताओं के सवालों के जवाब दिये.

जीवन कहां है, हमने जीते- जी जीवन खो दिया है? ज्ञान कहां है, हमें सच्चा ज्ञान कहां मिलेगा. हम इस अबूझ पहेली से कैसे बाहर निकल सकते हैं?

जवाब : भक्ति के रास्ते में ही जीवन है. इसे हम जहां-तहां खोजते रहते हैं. ऊंकार के पूर्ण में ही भक्ति है. परम सत्य सभी चीजों का स्त्रोत है. परम संसार भ्रम नहीं है. भगवान की बा शक्ति है भक्ति . भ्रांति तो यह है कि हमारे शरीर और ब्रह्मा की भिन्नता को हम नहीं पहचानते हैं. हम यह नहीं देखते हैं. जो माइक है, वह भौतिक है या आध्यात्मिक, इससे हरि कथा कहने पर माइक को आध्यात्मिक बना देता हूं. हम चीजों को नहीं पहचानते. अविद्या, अहंकार को छोड़ें. चेतना से आध्यात्मिक रूप प्राप्त करें. एकत्व को समझे. विज्ञान और तकनीक के कनेक्शन को भगवान कृष्ण से जोड़ें. भगवान की सेवा में तकनीक को लगायें. इससे ही मोक्ष मिलेगा. स्त्रोत से टूटने पर हम भटक जाते हैं. प्रभुपाद जी महाराज ने हमेशा कहा है कि सभी चीजों में शून्य है. एक अनपढ़ और पढ़े-लिखे लोग भी शून्य के पीछे भागते रहते हैं. शून्य कितना है. 10 पैसा में एक शून्य है, जबकि 10 खरब में इससे अधिक शून्य हैं. फर्क यह है कि दस और खरब में कितने शून्य हैं. शून्य का मूल्य भी शून्य है. अगर आप शून्य के आगे एक लगा देंगे, तो उसका महत्व बढ़ जायेगा. एक वही जिज्ञासा है. कृष्ण नियंत्रक हैं. कृष्ण मालिक हैं. हमें एक हो समझना होगा, जो हमारे मूल्य को बढ़ा देती है. पूरी दुनिया सूचना के पीछे है. हमें बुरी आदतों को त्याग कर अच्छी आदतें अपनानी होगी. सत्संग, हरिकथा, हरि- कीर्तन, सेवा से अच्छी आदतें मिलती हैं. गीता के दसवें अध्याय में कहा गया है कि कृष्ण भक्तों के साथ आते हैं. यह शून्य ही भगवान के साथ सानिध्य बढ़ाता है. यह सूचनाएं ही हमें मोक्ष प्रदान करती हैं, बांधती नहीं हैं.

जब आपके पास राम-कृष्ण का ज्ञान नहीं था, तब आप कितना ध्यान करते थे. भौतिक जीवन में जो निराकार है, उस पर कैसे ध्यान करें?

जवाब : एक कहावत है कि आप हर दिन एक कदम कृष्ण की तरफ बढ़ायेंगे, वह उतना ही आपके पास आयेंगे. ईश्वर सर्व भूता हैं, वह सर्व व्याप्त हैं. भगवान व्यक्ति के हृदय में ही स्थित हैं. जब मैं 19 वर्ष का था, तब मुझे मालूम नहीं था कि भगवान क्या हैं? परम साक्षात्कार क्या वस्तु है. मैं अलग-अलग रास्तों पर जाकर, अलग- अलग विधियों से ध्यान लगा कर अंत में वृंदावन आ पहुंचा. हरे कृष्ण. यही सार है, यही ध्यान है.

हम सफलताओं, हार में कैसे उदासीन हो जाते हैं. दूसरों पर काम आश्रित होकर हम कैसे खुश रह सकते हैं?

जवाब : भागवत गीता में इसका उत्तर है. मान-अपमान, हार-जीत, खुशी-गम, योग्य-अयोग्य, जीवन-मरन यह द्वंद्व भौतिक जीवन में लगा हुआ है. हम आनंद की खोज में लगे हैं. इन द्वंद्वों से ऊपर उठ कर हमें कुछ अलग करना होगा. कमल इसका उदाहरण है. कमल के पत्ते पर धूल और पानी नहीं जमता. जब जड़ें आत्मा से जुड़ी रहेंगी, हम कमल की तरह ही रहेंगे. गहरी चीजों के अनुभव से हमारा जीवन काफी ऊपर उठ जाता है. समुद्र बड़ा है, गहरा है. मानसून में नदियों का पानी समुद्र में भारी मात्र में जाता है. समुद्र काफी गहरा होता है. नदी का पानी बड़ी-छोटी नदियों के पानी से नहीं भरता है. मान-अपमान हो रहा है, हम कितने सफल हैं अथवा असफल हैं. यदि हम भगवान कृष्ण के प्रति सच्च सानिध्य रखते हैं, तो हमारी खुशियां समुद्र की तरह हो जाती हैं. भौतिक खुशियां, जो नदियों की तरह आती हैं, उनका सामना करें, जिम्मेवारी से नहीं भागें. दुनिया में साधु- संत हैं, पढ़े -लिखे लोग हैं. भौतिक रूप से आशक्त लोग भी हैं. पर सनातन धर्म सबके लिए है. भक्ति के साथ सनातन धर्म को मानें, चरित्र से जीएं, सेवा की भावना से जुड़ें. सच्चे भाव से जीएं. साधु-संतों का सत्संग करें. हरिनाम से हम धर्म का साक्षात्कार कर सकते हैं.

गॉड की खोज में में सच्चे गुरू कैसे पा सकते हैं? सच्च गुरू कौन हो सकता है?

जवाब : अगर हमें हृदय रोग है और कोई चिकित्सक सफेद कपड़ा पहन कर आपके पास आ जाये, तो वह डॉक्टर नहीं है. आप डॉक्टर के बारे में सभी चीजें पता लगाने लगते हैं कि वह कहां से पढ़ा है, कितना अनुभवी है. गुरु, साधु और शास्त्र के बारे में परंपरा में शास्त्रों में काफी कुछ कहा गया है. परंपरा, बड़े संत, जिन्होंने जीवन के पहलुओं को संरक्षित कर रखा है अथवा वह साधक को परंपरा और नैतिक मूल्यों की शिक्षा ग्रहण कर रहा है, वही सच्च गुरु है. उसके पास सारे सार हैं, तत्व हैं. नम्र, विनम्र होकर ऐसे साधुओं को सुनें, उनकी सेवा करें. तब हम परम सत्य को जान सकते हैं.

धर्म के नाम पर झगड़े होते हैं. इस झगड़े को कैसे बंद किया जा सकता है?

जवाब : एक ही सवाल के कई तरह के जवाब विभिन्न कक्षाओं में दिये जाते हैं. किसी कक्षा में बताया जाता है कि पांच जोड़ पांच दस होता है, तो किसी कक्षा में आठ जोड़ दो दस होता है. सभी बच्चे अपने जवाब को लेकर झगड़ा करते हैं. जीवन का सार सभी को मालूम है कि कैसे भगवान कृष्ण को प्यार करें. भगवान से कैसे प्रेम करें. छह जोड़ छह 10 नहीं हो सकता है. उसी प्रकार नौ जोड़ पांच 10 नहीं हो सकता है. सभी चीज, सभी बड़े धर्म यही बताते हैं कि सच्ची भक्ति से ही परम ज्ञान पाया जा सकता है. मेरे गुरु भी यही कहते थे. वे 70 वर्ष के थे. तब वह कोलकाता से न्यूयार्क गये थे. 30 दिनों के कठिन सफर में वे न्यूयार्क पहुंचे थे. वहां पर वह काफी बीमार भी हो गये थे. अमेरिका में एक पत्रकार ने मेरे गुरु से पूछा कि आप यहां क्यों आये हैं. तब मेरे गुरु ने कहा कि हम सभी शास्वत आत्मा हैं. हमारे मूल में यह है कि हम भगवान को प्रेम करें. सेवा करें, कौन गुरु हैं. सभी बा स्त्रोतों से तारत्म्य नहीं रखते हैं, जिसकी वजह से झगड़ा होता है. धर्म के नाम का झगड़ा कहीं मायने नहीं रखता है. अत्यधिक गरीबी और झूठा अहंकार से समाज को देखने से झगड़े हो रहे हैं. चैतन्य महाप्रभु ने कहा था कि सारे लोगों को आदर भाव से देखें, आदर नहीं लें. तभी आपको एक तारतम्यता दिखेगी. हरे कृष्ण.

सभी जीवों के प्रति प्यार ही है सनातन धर्म

रांचीः यह मेरा सौभाग्य है कि मैं रांची शहर में आपके साथ हूं. श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि दुनिया के हर जीव के सृष्टि कर्ता ईश्वर हैं. इसलिए हर जीव में ईश्वर का अंश है. इसलिए सही रूप से ज्ञानी, बुद्धिमान या ज्ञाता वही है, जो हर जीव या व्यक्ति को समान दृष्टि से देखता है. चैतन्य महाप्रभु जब जंगलों से गुजर रहे थे, तो उन्होंने सभी वन्य प्राणियों को हरे राम.हरे कृष्ण कहने को प्रेरित किया. जंगल का हर एक जीव दूसरे का दुश्मन होता है, पर हरि नाम की पवित्रता से सभी एक दूसरे को गले लगा रहे थे. हम सब को जिज्ञासा होती है कि मैं कौन हूं? भगवान कौन है? हमारा आपसी रिश्ता क्या है? श्री कृष्ण ने भी गीता में यही सवाल किया है. वह हमारे आध्यात्मिक व भौतिक जीवन के स्रोत हैं. कृष्ण कहते हैं कि इस शरीर के परे आत्मा है, जो कभी मरती नहीं है. जब हम अपनी आत्मा को जान लेते हैं, तभी प्रेम भाव समझ पाते हैं.

भगवत पुराण के अनुसार जैसे किसी वृक्ष की जड़ में पानी देने से वह पूरे पौधे में चला जाता है, उसी तरह आत्मा जग जाये, तो हर जीव के प्रति हमारा प्यार भी जग जाता है. यही सनातन धर्म है. सार तत्वों को जानना ही है सनातन धर्म. संत या साधु सार ग्रही होते हैं. यह सार प्रेम है. इस प्रेम में हर जीव भगवान का अंश लगता है. चैतन्य प्रभु कहते हैं कि जागो, अपने अंदर के सार तत्व को पहचानो. यह हो जाये, तो आप चाहे जिस पेशे में हों, सांसारिक हों या साधु, दुनिया में जहां भी रहेंगे, खुश रहेंगे. ब्रह्मा सूत्र बताता है कि दुनिया में हर जीव आनंद की तलाश में है. चींटी व मच्छर भी. यानी जहां जीवन है, वहां आनंद की तलाश है. पर यह आनंद हमारे स्वयं की प्रवृत्ति है. यह बात पूरे ब्रह्मांड में लागू होती है. आज की शाम क्रिसमस की शाम है. यीशु भी भगवान के प्रति प्रेम की बात कहते हैं. बिना किसी अवरोध के भगवान के प्रति प्यार होना चाहिए. जीवन का अर्थ क्या है? हम सब इसके मतलब की तलाश में हैं. मैंने अपनी किताब द जर्नी होम (अनोखा सफर) में यही जानने की कोशिश की है. मैं अमेरिका (शिकागो) में पैदा हुआ तथा वही बढ़ा. जब मैं छोटा था, तो कई विचित्र बातें हुईं. मेरे माता-पिता इस बात को समझ नहीं पाये. गरीबों के प्रति मैं बहुत सहानुभूति रखता था. अमेरिका मुक्त देश है. वैभवशाली व समृद्धशाली लोगों का पावरफुल देश. पर वहां आनंद नहीं था. मैं सोचता था कि जीवन का अर्थ व सही रास्ता क्या है? शुरू में मैं थोड़ा राजनीतिक हुआ, विद्रोही भी. फिर मैंने महसूस किया कि अहंकार की जो भावना अन्य में है, वहीं मेरे अंदर भी है. मैंने सोचा कि मुङो बदलना होगा.

यह बदलाव सिर्फ आध्यात्मिकता से ही संभव था. मैं यूरोप गया, पर मेरे अंदर से आवाज आयी कि मुङो भारत जाना चाहिए. कैसे व किधर, नहीं पता. मेरे पास पैसे भी नहीं थे. मैंने यह सोच कर पूर्व की ओर चलना शुरू किया, कि एक दिन भारत पहुंच जाऊंगा. अंतत: मैं हिमालय पहुंचा. वहां पहले ही दिन एक योगी ने मुङो साधु का वस्त्र पहनने को दिया. वहां मैं गंगा के बीच एक पत्थर पर बैठ कर सूर्योदय से सूर्यास्त तक प्रार्थना करता था. उस दौरान मैंने इतना ज्ञान पाया, जितना अपने 19 साल के जीवन में तमाम पढ़ाई के बाद भी नहीं पा सका था. सप्ताह दर सप्ताह प्रार्थना करते-करते एक दिन शायद गंगा मां की ही आवाज आयी हरे राम..हरे कृष्ण..मुङो इसका अर्थ नहीं मालूम था. यह भी नहीं पता था कि ये राम और कृष्ण कौन हैं. पर मैं गंगा मां की उस आवाज के साथ-साथ बस दोहरा रहा था..हरे राम..हरे कृष्ण …इसके बाद यही मेरा सबसे बड़ा ध्यान बन गया.

वहां से मैं वाराणसी आया. वहां घाट पर जलते शवों को देख कर जीवन के बारे सोचता था. उसी गरमी में मैं प्रयाग चला आया. यह वर्ष 1971 की बात है. त्रिवेणी संगम पर गंगा, यमुना व सरस्वती की धाराएं आपस में मिल रही थी. मुङो अद्भुत अहसास हो रहा था. मैं संगम के बीच चला गया. यही वह जगह है जहां स्नान करने हजारों लोग आते हैं. पर वह तपती दोपहरी थी. वहां दूर-दूर तक कोई नहीं था. मुङो लगा कि शायद मैं भी यहां दोबारा नहीं आ सकूंगा. मैं संगम में नहाने लगा और फिर इसे पार कर दूसरे किनारे चला गया. वहां सन्नाटा था. मैं थक गया था. कुछ कदम मैं बालू पर चला. अचानक लगा कि कोई चीज मुङो धरती की ओर खींच रही है. नीचे और नीचे. मैं घुटने तक अंदर चला गया. तभी मैंने समझा कि मैं दलदल में फंस गया हूं. धीरे-धीरे कमर तक बालू में धंस गया. थका, हारा, बेसहारा..मुङो लगा कि मौत निकट है. तभी वहां एक झाड़ी नजर आयी. पूरी ताकत लगाने के बाद मैंने हाथ से वह झाड़ी पकड़ ली. उसमें पत्ते नहीं थे. बेहद कंटीली झाड़ी. मैं उसके सहारे खुद को बाहर निकालने की कोशिश करने लगा. पर यह क्या. बाहर निकलने के लिए मैं जितना प्रतिरोध कर रहा था, मैं उतना ही अंदर धंसता जा रहा था. मेरे हाथ भी लहूलुहान हो गये थे.

मौत नजदीक देख कर मैं प्रार्थना करने लगा. मन से ध्यान करने लगा हरे राम-हरे कृष्ण..शांत रहने पर मुझे अच्छा लगा. मैं एकदम शांत हो गया. लगा कि अपने को शिथिल कर इस दलदल से निकला जा सकता है. इसी शिथिलता के साथ अपने पैर मोड़ कर मैंने बाहर निकलने की कोशिश की. मैं बाहर निकलने लगा और अंतत: बाहर आ गया. फिर उस दलदल में हल्के पांव रखते हुए मैं नदी की धारा की ओर लौट आया. मैंने सोचा कि नदी के दूसरे छोर पर जाने के लिए मुङो यमुना की तेज धारा के विपरीत तैरना होगा. मैं तैर रहा था पर किनारा नहीं दिख रहा था. गंगा मुङो वापस उसी दलदल की ओर धकेल रही थी. तभी थोड़ी दूर एक नाव दिखायी दी. मैं चिल्ला रहा था पर नाविक सुन नहीं रहा था. अचानक उसने हाथ उठा कर कुछ इशारा किया और मुङो वहां छोड़ चला गया.

अब मेरे पास दो विकल्प थे. गंगा में मरूं या फिर दलदल में. मैंने गंगा में ही मरने का निर्णय लिया. मैं सोचने लगा कि मैंने इसी गंगा से बहुत कुछ सीखा था. इसका ही पानी पिया था. आज वही गंगा मेरी जान ले रही थी. मैं अंदर डूब रहा था. गंगा का पानी मेरे मुंह में जा रहा था. यह ध्यान करते ही मुङो शांति मिली. दिल से फिर वही हृषिकेश वाली गंगा की आवाज आयी..हरे राम..हरे कृष्ण..मुङो खुशी मिलने लगी. मैंने सोचा मैं पहले धारा के विपरीत क्यों जा रहा था, इसके साथ क्यों नहीं. मैं धारा के साथ बह कर दूसरे किनारे पहुंचा. मेरे पासपोर्ट वहीं किनारे पर रखा था. बहुत सारे लोग वहां स्नान कर रहे थे. वहां पहुंच कर देखा मेरा पासपोर्ट सुरक्षित था. मैं बालू पर बैठ गया. उसी दिन मैंने गंगा को मां स्वीकार कर लिया. मां गंगा..गंगा मां. दरअसल गंगा मुङो एक सीख दे रही थी. भगवान की कृपा की सीख.

यहां से मैं अमरनाथ जाने लगा. बीच में तीन दिन के लिए वृंदावन (बरसाना) में रुक गया. यहीं मुझे टायफाइड हो गया. मैं सख्त बीमार था. जमीन पर बेसुध पड़ा हुआ. मुझे मरा समझ कर मेरी छाती में गिद्ध चोंच मार रहे थे. किसी ने मुङो वहां से उठा कर अस्पताल पहुंचाया. ठीक होने के बाद मैं गीता, भगवत पुराण पढ़ने और समझने लगा. मैंने सोच लिया था कि अब वृंदावन कभी नहीं छोड़ूंगा. ठंड की रात थी. मेरे पास कपड़े नहीं थे. मंदिर की घंटी की आवाज सुनकर मैं भोर में वहीं नदी में स्नान करता था. एक रात मुझे सपना आया कि मैं अपने घर अमेरिका में हूं. गरम कपड़ों के साथ वहां आराम की सारी चीजें हैं. पास के कमरे में टीवी चल रहा है. मैंने सोचा कि मैं यहां वापस क्यों आया. मैं रोने लगा. कहा कि मैं वापस वृंदावन जाना चाहता हूं. इसी स्थिति में मैं जग गया. मैं लगातार रो रहा था. कह रहा था कि मुङो वापस वृंदावन जाना है. अचानक मुझेठंड लगने लगी. मुझे एहसास हुआ कि मैं तो वृंदावन में ही हूं. मैंने तो कभी वृंदावन छोड़ा ही नहीं था. मैंने उस धरती को प्रणाम किया.

वर्षो बाद साधु-संतों की संगत, सत्संग, साधना, सेवा व तप से मुङो पता चला कि हमारा भौतिक शरीर चाहे कहीं हो, आत्मा उसी स्थान पर रह सकती है. कृष्ण का मतलब है सार व आकर्षण. ईश्वर या परमात्मा अलग-अलग समय में अलग-अलग अवतार लेते हैं. सनातन धर्म के लिए. आत्मा के साक्षात्कार व इसकी क्षमता जानने के लिए. मुङो हाउस ऑफ लॉर्डस, लंदन बुलाया गया था. वहां प्रवचन के दौरान मैंने एक बहुत साधारण बात कही, जिस पर वहां मौजूद सभी लोगों ने जोरदार तालियां बतायी. आप जानना चाहते है? मैंने कहा कि आप यह सोचे कि आपके पास ऐसी कौन-कौन सी चीज नहीं है, जो पैसे से नहीं खरीदी जा सकती. उन सारी चीजों को हम ईश्वर के नाम से जोड़ सकते हैं. मेरी किताब द जर्नी होम (अनोखा सफर), एक अमेरिकी स्वामी की आत्मकथा अपने अंदर के ईश्वर यानी कृष्ण को खोजने का माध्यम है. यह हो गया, तो हम कहीं भी हों, हमें लगेगा कि हम अपने घर में हैं. बहुत-बहुत धन्यवाद!

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