आज राज्य सभा में ‘जुवेनाइल जस्टिस बिल’ पेश हो रहा है. इससे पहले इसी साल अप्रैल में लोकसभा में ये विधेयक पारित हुआ था. अगर ये विधेयक राज्यसभा में भी पारित हो गया तो राष्ट्रपति की मंज़ूरी के लिए भेजा जाएगा.
इस बिल के लागू होने के बाद 18 साल से कम उम्र के अपराधियों की सज़ा तय करने वाला क़ानून और कड़ा हो जाएगा.
पढ़ें मौजूदा क़ानून और प्रस्तावित विधेयक के प्रमुख बिंदु और उन पर विशेषज्ञ की राय.
पढ़ें – जहां अपराधी बच्चों को दी जाती है उम्रक़ैद
कौन सा बच्चा माना जाएगा ‘वयस्क’?
मौजूदा क़ानून – 18 साल से कम उम्र के अभियुक्त को नाबालिग़ माना जाए
संशोधित क़ानून (प्रस्तावित)- अगर जुर्म ‘जघन्य’ हो, यानि आईपीसी में उसकी सज़ा सात साल से ज़्यादा हो तो, 16 से 18 साल की उम्र के नाबालिग़ को वयस्क माना जाए
विशेषज्ञ – भारत समेत दुनियाभर के क़रीब 190 देशों ने ‘यूएन कन्वेंशन ऑन चाइल्ड राइट्स’ पर हस्ताक्षर किए हैं.
इसमें क़ानूनन किसी बच्चे को ‘वयस्क’ मानने के लिए उम्र सीमा को 18 साल रखने की सलाह दी गई है.
कहां चले मुक़दमा?
मौजूदा क़ानून – 18 साल से कम उम्र के अभियुक्त का मुक़दमा सामान्य अदालत की जगह ‘जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड’ में चलता है.
संशोधित क़ानून (प्रस्तावित) – नाबालिग़ को अदालत में पेश करने के एक महीने के अंदर ‘जुवेनाइल जस्टीस बोर्ड’ ये जांच करे कि उसे ‘बच्चा’ माना जाए या ‘वयस्क’. वयस्क माने जाने पर किशोर को मुक़दमे के दौरान भी सामान्य जेल में रखा जाए.
विशेषज्ञ – फ़ैसले के लिए एक महीने का समय बहुत कम. पुलिस चार्जशीट में या अदालत के फ़ैसले में दोष साबित हुए बग़ैर, किशोर को वयस्कों की जेल में रखना ग़लत होगा.
कितनी कड़ी होगी सज़ा?
मौजूदा क़ानून – दोषी पाए जाने पर नाबालिग़ अभियुक्त को अधिकतम तीन साल के लिए किशोर सुधार घर भेजा जा सकता है.
संशोधित क़ानून (प्रस्तावित) – अगर नाबालिग़ को वयस्क माना जाए तो मुक़दमा ‘बाल अदालत’ में चले और आईपीसी के तहत सज़ा हो. उम्र क़ैद या मौत की सज़ा नहीं दी जा सकती.
विशेषज्ञ – दुनियाभर में किए अध्ययन के मुताबिक़ किशोरों को कड़ी सज़ा देने से उनकी अपराध करने की दर में कोई कमी नहीं आती. बल्कि सुधार गृहों में बेहतर सुविधाओं से लंबे दौर में बदलाव लाया जा सकता है.
कब बदलेगा क़ानून?
नए क़ानून का नाम जुवेनाइल जस्टिस (केयर ऐंड प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन) बिल 2014 होगा.
ये महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा पेश किया गया है.
दिसंबर 2012 के सामूहिक बलात्कार में फ़ैसला आने के बाद से मौजूदा क़ानून में संशोधन की मांग तेज़ हो गई थी.
कैबिनेट ने संशोधनों को साल 2014 में पारित भी किया पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के विरोध के बाद इसे एक संसदीय समिति के पास भेज दिया गया.
समिति ने 16-18 साल की उम्र के नाबालिग़ों पर आईपीसी के तहत मुक़दमा चलाने का विरोध किया. इसके बावजूद कैबिनेट और लोकसभा ने नए बिल को स्वीकृति दे दी है.
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