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मृत्यु के साथ जीना!
हरिवंश हम दोनों एक-दूसरे को अच्छी तरह जानते थे. अक्सर मिलना होता था. दिल्ली में उनके घर पर या दिल्ली के सेमिनारों, गोष्ठियों में. पिछले वर्ष रांची आने और प्रभात खबर व्याख्यानमाला में बोलने के लिए उन्हें न्योता था. यह जानते हुए कि वह अनिल अग्रवाल (जिनके प्रति मेरे मन में बड़ा सम्मान है) असाध्य […]
हरिवंश
हम दोनों एक-दूसरे को अच्छी तरह जानते थे. अक्सर मिलना होता था. दिल्ली में उनके घर पर या दिल्ली के सेमिनारों, गोष्ठियों में. पिछले वर्ष रांची आने और प्रभात खबर व्याख्यानमाला में बोलने के लिए उन्हें न्योता था. यह जानते हुए कि वह अनिल अग्रवाल (जिनके प्रति मेरे मन में बड़ा सम्मान है) असाध्य रोग कैंसर से पीड़ित हैं, मैंने रांची आने के लिए अनुरोध किया. वह तैयार थे, पर अचानक इलाज के लिए उन्हें दिल्ली से बाहर जाना पड़ा, रांची में उनके आइआइटी अध्ययन के दिनों के कई मित्र हैं.
उनमें जीवंतता, ताजगी और आत्मविश्वास धूप की तरह थे. सामने बैठा व्यक्ति अप्रभावित नहीं रह सकता था. उनसे मिलते ही मुझे फिल्म आनंद, मिली और सफर की याद आती थी. जैसी मान्यता है कि फिल्मों या साहित्य या कल्पना में ही आदर्श, बड़े सपने या उदात्त व्यक्तित्व मिलते हैं. व्यावहारिक दुनिया में नहीं. हिंदी की इन फिल्मों के प्रमुख पात्र था या नायक जानते हैं कि उन्हें असाध्य रोग है, उनके जीवन के दिन गिने-चुने हैं, पर कब्र में पांव होते हुए भी वे साहस, आनंद से जीते हैं. मृत्यु के भय से दूर. यथार्थ में ऐसा जीवन, अनिल अग्रवाल का था. मृत्यु के साथ जीते हुए, पर मृत्यु की छाया से मुक्त. हर क्षण नवीन उत्साह, उल्लास और योजनाओं से घिरे. एक दिन सुबह घर नाश्ते पर हम आमंत्रित थे. देखा, पत्नी अस्वस्थ, बच्ची जन्मजात बीमार. पर घर में मदद करने के बाद अनिलजी समय से डॉउन टू अर्थ के कार्यालय में काम करना उनके जीवन में जिद जैसा था. परफेक्शन की कोशिश. सेमिनारों में उनकी बातों में आग होती थी. मुझे अक्सर सेमिनारों में उन्हें सुनते हुए अपने युवा दिनों की बेचैनी, प्रतिबद्धता और समझौताविहीन रुख याद आते थे.
काम में उनकी पटुता और पूर्णता, सीखने योग्य थी. जल संकट पर पिछले वर्ष उनके संस्थान से महत्वपूर्ण रपट आयी. देश के कुछ चुनिंदा शहरों में उसका लोकर्पण हुआ. ताकि सामान्य लोग भी इस संकट को जानलसमझ सकें. उनके द्वारा स्थापित संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट (सीएसइ) की इच्छानुसार रांची में प्रभात खबर ने यह कार्यक्रम आयोजित किया. कुछ वर्षों पहले, पटना में भी पर्यावरण से संबंधित एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट लोकार्पण को पटना प्रभात खबर ने आयोजित किया. पर्यावरण व प्रदूषण के बारे में झारखंड में क्या स्थिति है, इसके लिए उनका कार्यालय प्रभात खबर से संपर्क में रहता था. जल, जंगल और जमीन से जुड़े सवालों पर उन्होंने नयी दृष्टि से काम किया. भारत के 15 फीसदी जंगल नक्सली लोगों के कब्जे में है, यह उनके द्वारा शुरू की गयी गौरवशली पत्रिका डाउन टू अर्थ के 31 दिसंबर की आमुखकथा है. इस विषय पर काम करने के लिए उन्होंने विनायक को झारखंड भेजा था. किस तरह इस विषय पर काम करना है, इस ब्योरे के साथ. एक दिन प्रभात खबर के अपने सहकर्मियों को मैंने वह नोट दिखाया कि किस तरह किसी विषय पर काम करने के पहले आधारभूत तैयारी होनी चाहिए.
झारखंड में पर्यावरण-प्रदूषण के बारे में जनमत बनाने के लिए हमने मिल कर योजनाएं बनायीं. उन्होंने अपने लेखों को हिंदी में भिजवाना शुरू किया. प्रभात खबर में लगातार इन मुद्दों पर उनके लेख छपे. भारत के पर्यावरण के बारे में वैज्ञानिक ढंग से उन्होंने सिटीजंस रिपोर्ट तैयार करवायी. राजीव गांधी ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें महत्वपूर्ण सरकारी बैठकों में इन मुद्दों पर बोलने के लिए बुलाया. उनकी संस्था ने पानी, हवा, जमीन के बुनियादी संकटों-सवालों को उठाया. भारतीय पत्रकारिता में इन सवालों को मुद्दा और इन पर जनमत बनाने का श्रेय उन्हें है. उन्होंने ग्रासरुट स्तर पर उल्लेखनीय काम करनेवालों को राष्ट्रीय मंच तक पहुंचाने की कोशिश की. अण्णा हजारे, राजेंद्र सिंह जैसे लोगों की मदद में उतरे.
कैंसरग्रस्त अनिलजी 55 वर्ष ही जीये. यह अल्प जीवन अपने समय और समाज की दृष्टि से अत्यंत सार्थक, प्रेरक और ऊर्जावान रहा. कम उम्र में ही सुरेंद्र प्रताप सिंह, उदयन शर्मा और अब अनिलजी की मौत, संभावनाओं से भरे भविष्य के सृजन की कड़ी में अपूरणीय क्षति है.
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