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शारदीय नवरात्र : दूसरा दिन : ब्रह्मचारिणी दुर्गा का ध्यान

जो दोनों करकमलों में अक्षमाला और कमण्डलू धारण करती हैं, वे सर्वश्रेष्ठा ब्रह्मचारिणी दुर्गा देवी मुझ पर प्रसन्न हों. सर्व मंगलमयी मां -2 इस सर्व मंगलमयी मां के स्वरूपों का संकेत ऋग्वेद के देवीसूक्त में आम्भृणि ऋषि की कन्या वाक् की वाणी में स्पष्ट है… अहं रूद्रेभिर्वसुभिश्चराम्यहमादित्यैरूत विश्चवदेवैः। अहं मित्रावरूणोभा बिभर्हम्यमिन्द्राग्नी अहमश्चिवनोभा ।। मैं रुद्रों […]

जो दोनों करकमलों में अक्षमाला और कमण्डलू धारण करती हैं, वे सर्वश्रेष्ठा ब्रह्मचारिणी दुर्गा देवी मुझ पर प्रसन्न हों.
सर्व मंगलमयी मां -2
इस सर्व मंगलमयी मां के स्वरूपों का संकेत ऋग्वेद के देवीसूक्त में आम्भृणि ऋषि की कन्या वाक् की वाणी में स्पष्ट है…
अहं रूद्रेभिर्वसुभिश्चराम्यहमादित्यैरूत विश्चवदेवैः।
अहं मित्रावरूणोभा बिभर्हम्यमिन्द्राग्नी अहमश्चिवनोभा ।।
मैं रुद्रों और वसुओं के साथ विचरण करती हूं. आदित्यों और देवों के साथ रहती हूं. मित्र और वरुण को धारण करती हूं. इंद्र, अग्नि और अश्विनीकुमारों का अवलंबन करती हूं. इसी सूक्त में परात्पराशक्ति राज्य की अधीश्वरी, धनदात्री, ज्ञानदात्री, सर्वव्यापी तथा सब प्राणियों में आविष्ट कही गयी है. वाग्देवी मनुष्यों के शरणदाताओं की भी उपदेशिका हैं और जिसे चाहती हैं उसे बली, स्तोता, ऋषि तथा बुद्धिमान बना देती हैं. सारे-संसार में व्याप्त यही पराम्बा इंद्र को शत्रुवध में सहायता करती हैं.
इसी ने आकाश उत्पन्न किया है. यही समस्त संसार में विस्तीर्ण है और ध्युलोक को स्पर्श करती है. सर्व मंगलमयी यह मां प्रवाहमान वायु की तरह भुवन निर्माण करती हुई गतिशील है. इसने पृथ्वी का अतिक्रमण कर लिया है. इसी शक्ति से ज्ञान-बल-क्रियाओं का आविर्भाव होता है. आद्याशक्ति तथा उसके महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती-रूपों, उसके परब्रह्म तथा त्रिदेवों के संबंध का उल्लेख आनंद लहरी में इस प्रकार है…
गिरामाहुर्देवीं द्रुहिणगृहिणीमागमविदो
हरेः पत्नीं पद्मां हरसहचरीमद्रितनयाम् ।
तुरीया कापि त्वं दुरधिगमनिस्सीममहिमे
महामाये विश्वं भ्रमयसि परब्रह्ममहिषी ।।
ये सर्वमंगलमयी मां ही सर्वकारणरूप प्रकृति की आधारभूता होने से महाकरण हैं, ये ही मायाधीश्वरी हैं, ये ही सृजन-पालन-संहारकारिणी आद्या नारायणी शक्ति हैं और ये ही प्रकृति के विस्तार के समय भर्ता, भोक्ता और महेश्वर होती हैं. देवी भागवत में कहा गया है…
सा च ब्रह्मस्वरूपा च नित्या सा च सनातनी।
यथात्मा च तथा शक्तिर्यथासौ दाहिका स्थिता।।
उसी शक्ति को विभिन्न दृष्टियों से विद्वानों ने स्वीकार किया है—अर्थात कोई इसे तप कहते हैं, कोई तम, जड़, ज्ञान, माया, प्रधान, प्रकृति, शक्ति, अजा, विमर्श, अविद्या कहते हैं.
(क्रमशः) प्रस्तुति-डॉ एनके बेरा

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