निर्माता-निर्देशक राकेश रोशन चार साल के लंबे अंतराल के बाद ‘कृष’ का सीक्वल ‘कृष 3’ लेकर आ रहे हैं. वे इस फिल्म को अपने कैरियर की सबसे खास फिल्म करार देते हैं. वे कहते हैं कि मुङो लग रहा है, जैसे यह मेरी पहली फिल्म है. मेरी रातों की नींद उड़ गयी है. पिछले कई महीनों से मैं नींद की गोलियां खा रहा हूं. जब फिल्म रिलीज हो जायेगी, शायद तब मुङो चैन मिलेगा. फिल्म व निजी जिंदगी से जुड़ी बातों पर राकेश रोशन की उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश.
‘कोई मिल गया’ का आइडिया आपके दिमाग में कब और कैसे आया था ?
‘कहो ना प्यार है’ के बाद मैं एक और रोमांटिक फिल्म की कहानी पर काम कर रहा था. उसी दौरान आइफा के अवार्ड फंक्शन में आशुतोष गोवारिकर की ‘लगान’ को देखकर हक्का-बक्का रह गया था. फिल्म देखकर ही लगान की टीम की मेहनत का अंदाजा लगाया जा सकता है. मैंने उसी वक्त तय कर लिया कि मैं अब कुछ अलग और चैलेंजिंग बनाऊंगा. लव स्टोरी की कहानी पर काम करना बंद कर दिया. मुङो एलियंस सब्जेक्ट में चुनौती नजर आयी क्योंकि वह विषय भारतीय सिनेमा के लिए नया था. इस तरह से फिल्म ‘कोई मिल गया’ की कहानी सामने आयी. एक दिन रात रात ग्यारह से सुबह साढ़े तीन बजे तक मैंने ‘लार्ड ऑफ रिंग’ की एक के बाद एक तीनों फिल्में देखी. उसी फिल्म को देखते हुए मुङो सुपरहीरो ‘कृष’ का आइडिया आया. ‘कोई मिल गया’ में जादू अपनी शक्तियां रोहित को दे गया है. मतलब रोहित के बेटे को सुपरहीरो के तौर पर दिखाया जा सकता है. तीसरा पार्ट भी मैं यूं ही नहीं लेकर आ गया हूं. इस सीरीज में सुपरहीरो के साथ सुपरविलेन भी है.
यह आपके होम प्रोडक्शन की फिल्म है. एक्टिंग के अलावा रितिक का जुड़ाव किन चीजों से रहा है.
अभिनय में तो इस फिल्म में उसने नए आयाम लिख दिये हैं. जिस सीन में वह पिता-पुत्र के तौर पर सामने आयेगा. आप मान ही नहीं सकते कि दोनों किरदार रितिक ने किये हैं. मेरा बेटा है, इसलिए ऐसा नहीं कह रहा हूं. उसमें बतौर अभिनेता जबरदस्त ग्रोथ होता जा रहा है. जहां तक इस फिल्म से जुड़ाव की बात है, वह इस फिल्म से पूरी तरह से जुड़ा है. राइटिंग, स्क्रीनप्ले से लेकर हर छोटे-बड़े काम में वह मेरे साथ रहा है. मैं डीआइ की टीम को गाइड करता तो वह वीएफएक्स की टीम को. खास बात यह है कि हमदोनों की सोच एक है. हमें फिल्म में क्या चाहिए. इस पर हमारी राय एक ही होती है.
इन दिनों हॉलीवुड फिल्मों का एक्सपोजर बढ़ गया है. ऐसे में आपके सामने कैसे चुनौतियां पेश आयीं ?
सबसे पहले बात बजट की. उनके सुपरहीरो वाली फिल्म के एक्शन सीन के एक शॉट में जितना पैसा लगता है, वह हमारी फिल्म का पूरा बजट होता है. वैसे हॉलीवुड फिल्में हमसे कई लिहाज में अलग होती हैं. वो डेढ़ घंटे की फिल्म बनाते हैं और हम ढाई घंटे की. उनकी कहानी सिंपल होती है. सुपरहीरो सुपरविलेन को मिला देते हैं और दोनों के बीच क्लैश शुरू कर देते हैं. हमारे लिए कहानी और उससे जुड़ा इमोशन महत्वपूर्ण है. यही वजह है कि हम अपनी फिल्म में हर वर्ग को ध्यान रखते हैं. इस फिल्म में भी मैंने बच्चों का पूरा ध्यान रखते हुए उन्हें अच्छाई की राह पर चलने के लिए प्रेरित किया है. कृष का मतलब अच्छाई होता है. विदेशी फिल्मों में उनके लिए विजुअल ही सबकुछ है. हां, हॉलीवुड के स्तर पर मैंने भी एक्शन सीन फिल्माने की कोशिश की है. भले ही दस एक्शन सीन न हो. दो सीन ही होंगे मगर उसी स्तर के होंगे. खास बात यह है कि इस फिल्म से हॉलीवुड की भागीदारी न के बराबर है. फिल्म के कुछ एक सीन की शूटिंग जॉर्डन और स्वीट्जरलैंड में हुई है. फिल्म का स्टंट डायरेक्टर विदेशी है. वरना यह फिल्म हर लिहाज से भारत में बनी है. जहां तक हॉलीवुड फिल्म की कॉपी करने की बात सामने आ रही है, वो मीडिया कर रही है. फिल्म पूरी तरह ओरिजनल है.
इस फिल्म की मार्केटिंग को लेकर क्या कोई स्पेशल स्ट्रेटजी है?
मार्केटिंग को लेकर मेरी कोई स्पेशल स्ट्रेटजी नहीं है क्योंकि मैं इन सबमे विश्वास नहीं करता हूं. जिस फिल्म को देखना है. वो लोग देखेंगे ही आप चाहे चिल्लायें या न चिल्लायें. जैसे अब तक मैं अपनी फिल्मों की मैं मार्केटिंग करता आया हूं, इस फिल्म का भी वैसे ही करूंगा. सिटी टूर का जो कंपीटिशन चल रहा है, वह समझ नहीं आता है. अगर पिछली फिल्म वाले दस जगह अपनी फिल्म को प्रमोट करने गए थे तो आनेवाली फिल्म के लिए लोग पच्चीस जगह जायेंगे. मैं एक सवाल पूछता हूं कि आप पुणो जाते हैं तो नासिक क्यों नहीं या नासिक जाओगे तो पुणो क्यों नहीं? क्या वहां के दर्शक आपके लिए मायने नहीं रखते हैं? सिर्फ यही नहीं आप जहां जाते हो, वहां आपकी फिल्म को जबरदस्त ओपनिंग मिले यह जरूरी नहीं है. कुल मिलाकर सब फिल्म की कहानी पर निर्भर है.
अगर यह फिल्म 3डी होती तो क्या इसे और फायदा मिल सकता था ?
फिल्म की कहानी में दम होना चाहिए. टू डी और थ्री डी होना ज्यादा मायने नहीं रखता है. इसके साथ ही हमारे पास समय नहीं था. इस फिल्म की शूटिंग जून में ही खत्म हो चुकी है. सिर्फ दो गाने बचे थे. अगस्त से हम ऐसे ही बैठे हैं, क्योंकि फिल्म की वीएफएक्स पर काम चल रहा है. उसमे टाइम जायेगा ही, क्योंकि जो मेरा विजन है उनको समझाना पड़ता है. कभी-कभी एक सीन में कई दिन चले जाते हैं. 2डी को 3डी बनाने में छह-आठ महीने चाहिए. अगर पूरा समय नहीं देते तो न 2डी रह जाती और न 3डी बन पाती.
जब भी बड़ी फिल्में आती हैं, टिकटों के दाम दोगुने हो जाते हैं. यह कितना सही है?
पूरी दुनिया में यही होता है. अब जब बिजनेस दो वीक का हो गया है, तो ऐसे में बड़ी फिल्मों को लागत वसूलने के लिए यह सब करना पड़ता है. मुङो नहीं लगता कि दर्शकों को इससे दिक्कत है. वह अच्छी फिल्म देखना चाहता है, जो उसका पैसा वसूल कर सके. मैं खुद इस फिल्म को फॉरेन लैग्वेंज में भी रिलीज करने की तैयारी में हूं. तमिल-तेलुगू में तो हिंदी के साथ रिलीज कर ही रहा हूं, ताकि इस फिल्म से ज्यादा-से-ज्यादा लोग जुड़ पायें.
यह एक सुपरहीरो की फिल्म है. वीएफएक्स भी है, टेक्नॉलॉजी को किस तरह से आपने समझा?
शूटिंग शुरू करने से पहले एनिमेशन में पूरा शॉट करके जाता था, ताकि यह बात साफ रहे कि करना क्या है? फिर कभी ग्रीन परदे में शूट करता तो यह सोचते हुए कि वीएफएक्स में इस तरह से इस शॉट को दिखाना है. फिर वीएफएक्स टीम के साथ मिलकर फिल्म को अंतिम रूप दिया. कुल मिलाकर यह फिल्म तीन चरणों के मेल से पूरी हुई है. मैं यहां ये भी बताना चाहूंगा कि कृष सीरिज की फिल्म से पहले तक मुङो टेक्नोलॉजी का इतना ज्ञान नहीं था. इस फिल्म की शूटिंग के दौरान मैं सीखता गया और करता गया. बहुत मेहनत और पेशेंस से मैंने यह फिल्म बनायी है.
अक्सर यह बातें सुनने को मिलती हैं, कि परदे पर आप जिस तरह से रितिक को पेश कर पाते हैं कोई दूसरा निर्देशक नहीं कर पाता है ?
ऐसा नहीं है संजय लीला भंसाली ने रितिक को गुजारिश में बहुत अच्छा पेश किया था. वो अलग बात है कि फिल्म नहीं चली थी. फिल्म की सफलता दायरे पर निर्भर करती है. कोई 30 प्रतिशत दर्शकों के लिए फिल्में बनाता है तो कोई पचास. मैं अपने ऑडियंस को छोटे गांव से लेकर अमेरिका में रहने वाला तक मानता हूं. कोई निर्देशक बस अपनी कहानी कहना चाहता है, उसे दर्शकों की पसंद नापसंद मायने नहीं रखती है. मुङो लगता है कि फिल्म निर्देशक की सबसे बड़ी जिम्मेदारी यह होती है कि वह अपने दर्शकों को अपनी फिल्म की कहानी पर विश्वास दिला सके. मुङो याद है जब मैं ‘कोई मिल गया’ में रितिक को बच्चे की तरह दिखाने वाला था, तो सभी लोग कहने लगे कि मैं पागल हो गया हूं. उसका कैरियर बर्बाद करने वाला हूं लेकिन दर्शकों ने इसे खूब पसंद किया.