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यूट्यूब पर बच्चों के वीडियो डालने से पहले वर्तमान ही नहीं भविष्य के बारे में भी सोचें
आज सामान्य गतिविधियों का वीडियो बनाना आसान हो गया है. लोग अपने आसपास की घटनाओं, यहां तक कि अपने परिवार और बच्चों के वीडियो भी यूट्यूब पर शेयर करने लगे हैं. कुछ लोग ऐसा कमाई के उद्देश्य से करते हैं, तो कुछ शौकिया. लेकिन खासकर बच्चों के वीडियो के संदर्भ में, ज्यादातर लोग इससे अनभिज्ञ […]
आज सामान्य गतिविधियों का वीडियो बनाना आसान हो गया है. लोग अपने आसपास की घटनाओं, यहां तक कि अपने परिवार और बच्चों के वीडियो भी यूट्यूब पर शेयर करने लगे हैं.
कुछ लोग ऐसा कमाई के उद्देश्य से करते हैं, तो कुछ शौकिया. लेकिन खासकर बच्चों के वीडियो के संदर्भ में, ज्यादातर लोग इससे अनभिज्ञ होते हैं कि भविष्य में उसका क्या नतीजा हो सकता है. ऑनलाइन शेयर किये गये बच्चों के वीडियो कितने सुरक्षित हैं और उन पर इसका दीर्घकालीन प्रभाव क्या हो सकता है, इसी पर एक नजर आज के नॉलेज में.
नॉलेज डेस्क : वर्ष 2005 में जब यूट्यूब की शुरुआत हुई, इसकी खासियतों ने लोगों को बेहद आकर्षित किया था. यही कारण है कि इससे जुड़नेवालों की संख्या तेजी से बढ़ी. आज भी यह लोगों में उसी प्रकार लोकप्रिय है, जितना कुछ साल पहले था, यानी कई नयी तकनीक आने के बाद भी इसकी लोकप्रियता में कम नहीं हुई है, निरंतर बढ़ ही रही है. आज लोग यूट्यूब पर तरह-तरह के वीडियो देखते हैं और अपना बनाया वीडियो यहां शेयर करते हैं.
ब्लॉगिंग बनाम व्लॉगिंग
दरअसल, यूट्यूब की खासियतों ने लोगों में एक नये तरीके का रोमांच पैदा किया है. इसने ‘ब्लॉगिंग’ की अवधारणा को आगे बढ़ाते हुए ‘व्लॉगिंग’ को लोकप्रिय बनाया. भारत में भले ही व्लॉगिंग आज भी एक नया शब्द या कॉन्सेप्ट लग रहा हो, लेकिन पश्चिम के विकसित देशों में यह कॉन्सेप्ट उसी समय से इस्तेमाल में लाया जा रहा है, जब से यूट्यूब का जन्म हुआ.
ब्लॉगिंग में जिस तरह से मन में आनेवाले विचारों को शब्दों में पिरोया जाता है और ब्लॉग के माध्यम से लोगों के साथ साझा किया जाता है, उसी तरह से व्लॉगिंग में लोग मनपसंद इवेंट्स की वीडियो बनाते हैं और उसे यूट्यूब पर अपलोड करते हैं. यानी अपने पसंदीदा वीडियो को यूट्यूब पर अपलोड करने की प्रक्रिया को व्लॉगिंग कहा जाता है. व्लॉगर्स विविध किस्म के हैं. कुछ देशों में इसकी बारीकी समझनेवाले लोगों ने इसे कमाई का जरिया भी बनाया है.
स्मार्टफोन के आम लोगों की पहुंच में आने के बाद आज फैमिली लाइफ की रोजाना की व्लॉगिंग कोई नयी बात नहीं रह गयी है. पांच बच्चों के पिता जोनाथन भी पिछले लंबे अरसे से व्लॉगिंग कर रहे हैं और यूट्यूब पर उनके 37 लाख से ज्यादा फॉलोअर हैं. जोनाथन अपनी जिंदगी से जुड़ी ज्यादातर चीजों को पिछले आठ सालों से रोजाना रिकॉर्ड कर रहे हैं और उसे यूट्यूब पर अपलोड कर रहे हैं. जोनाथन समेत ऐसे अनेक लोगों द्वारा किये जाने वाले इस कार्य से प्रभावित होकर आज हजारों ब्रिटेन निवासी उनका अनुसरण कर रहे हैं.
जोनाथन और उनकी पत्नी एना सेकोन जॉली अपने बच्चों एमिलिया और एडुआर्डो का वीडियो उसी समय से तैयार कर रहे हैं, जब उनका जन्म हुआ था. आज उनके रोजाना वीडियो के करीब 11 लाख फॉलोअर हैं, जो खाना बनाने से लेकर खाना खाने और स्नान करने से लेकर खरीदारी करने सरीखे पारिवारिक जीवन की अनेक वास्तविकताओं से रूबरू होते हैं. कुछ वफादार प्रशंसक जहां उनके प्रत्येक क्षणों को देखते हैं, वहीं कुछ उत्साही युवा अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त करते हैं.
रोजाना व्लॉगिंग के खतरे
हालांकि, प्रथम द्रष्टया इस पूरे मामले में कोई नुकसान नजर नहीं आ रहा, बल्कि उनके वीडियो पर साइट को विज्ञापन मिलने के कारण इस परिवार को सालाना हजारों पाउंड की आमदनी ही हो रही है. यह आमदनी इतनी है कि इन दोनों ही पति-पत्नी को कहीं फुलटाइम जॉब करने की जरूरत नहीं पड़ रही है.
आखिर कौन माता-पिता अपने युवा हो रहे बच्चों की रोजाना की हरकतों से हासिल होनेवाली आमदनी से वंचित होना चाहेगा? लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है. यदि किसी माता-पिता को अपनी बच्ची के यूट्यूब पर अपलोड किये गये वीडियो के कारण ब्लैकमेल किये जाने की खबर मिले, तो क्या होगा? कुछ माता-पिता को उनके छोटे बच्चों की नग्न तसवीरें दिखा कर ब्लैकमेल किया जा सकता है. आज इन्हीं चीजों को रोजाना किये जानेवाले व्लॉगिंग के खतरों के तौर पर समझा जा रहा है. हालांकि, जोनाथन को अब तक इस संबंध में किसी भी चुनौती का सामना नहीं करना पड़ा है, लेकिन किसी संभावित चुनौती से निबटने के लिए उन्होंने पुलिस से इस संबंध में विचार-विमर्श किया है.
दिशा-निर्देशों की जरूरत
विशेषज्ञों का मानना है कि फिलहाल इस तरह की चुनौतियां भले ही कमतर लग रही हों, लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि आनेवाले समय में ऐसे गंभीर मामले सामने आ सकते हैं. इसके दीर्घकालिक कानूनी, नैतिक और मनोवैज्ञानिक परिणाम भी सामने आ सकते हैं.
यूनाइटेड किंगडम की ओपन यूनिवर्सिटी के चाइल्ड एंड यूथ स्टडीज ग्रुप के सीनियर लैक्चरार और ब्रिटिश साइकोलॉजिकल सोसायटी (बीपीएस) के मीडिया एथिक्स एडवाइजरी ग्रुप के संस्थापक प्रोफेसर जॉन ओट्स का कहना है, ‘माता-पिता को इस बारे में संजीदगी से सोचने की जरूरत है कि दुनिया को दिखाने के लिए अपने बच्चों के जो वीडियो वे मुहैया करा रहे हैं, वह लोगों को अनंतकाल तक उपलब्ध हो सकती है.’
बच्चों के प्रदर्शन को सुरक्षित बनाने संबंधी दिशा-निर्देशों को निर्धारित करने के लिए उन्होंने हाल ही में यूनाइटेड किंगडम की सरकार को सुझाव भी दिया है. उन्होंने कहा है, ‘कुछ बच्चों को महज इसलिए उत्पीड़ित किया जाता है, क्योंकि वे किसी टीवी शो में प्रदर्शित किये गये होते हैं. किसी दो से तीन साल की उम्रवाले बच्चे की वीडियो फुटेज उस वक्त भले ही बहुत अच्छी समझी जाये, लेकिन जब वह 12 या 15 साल का होगा, उस समय व्लोगोस्फीयर में उपलब्ध वह फुटेज परेशानी का सबब बन सकती है.
कई तरह के हैं खतरे
बीपीएस ने इसकी एक सूची भी जारी की है, जिसमें इससे जुड़े संभावित नुकसानों को तत्काल या देरी से और अल्पावधि या दीर्घावधि के हिसाब से परिभाषित किया है. ओट्स का कहना है, ‘इसका पहला संभावित नुकसान सामान्य तौर पर होनेवाली भावनात्मक पीड़ा है. साथ ही, जहां व्यक्ति के आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचती है वहीं एक प्रकार से उसे अपनी स्वायत्तता में भी खलल का अहसास होता है.’ ओट्स का यह भी कहना है कि इसके कई पहलू हैं.
मानसिक रूप से थकान होना भी इससे जुड़ा है. दरअसल, इस समस्या से घिरने की स्थिति में बच्चों में व्यग्रता (एंक्जाइटी) का स्तर बढ़ जाता है, जो उनमें सामान्य चिंता विकार (जनरल एंक्जाइटी डिजॉर्डर) का कारण बन सकता है. दरअसल, सामान्य चिंता विकार एक दीर्घकालीन मनोवैज्ञानिक अवस्था है, जो किसी व्यक्ति के रोजाना तौर पर व्यथित रहने की दशा में होती है. इससे इंसान को हमेशा थकावट या दर्द का एहसास होता है और यह स्वास्थ्य को गंभीरता की ओर ले जा सकती है.
ब्रिटिश सरकार का रुख
हालांकि, ब्रिटेन की सरकार ने यह तय कर रखा है कि चाइल्ड आर्टिस्टों द्वारा रोजाना कितनी देर परफॉर्म किया जा सकता है, लेकिन यूट्यूब पर बच्चों के किसी परफॉर्मेंस के संबंध में कोई दिशानिर्देश नहीं है.
इस संबंध में ब्रिटेन सरकार के शिक्षा विभाग के प्रवक्ता का कहना है कि अपने बच्चों के हितों को देखते हुए यह फैसला माता-पिता को ही लेना चाहिए. चूंकि आजकल यह आमदनी का एक जरिया बन चुका है, इसलिए शायद यह ज्यादा आकर्षक हो गया है. बिना कानूनी सुरक्षा के इस बात की कोई गारंटी नहीं कि वाकई में बच्चों को भी उनका हक मिलता ही हो.
यूट्यूबर का अलग-अलग नजरिया
इस मामले में यूट्यूबर का नजरिया अलग-अलग है. यूट्यूब चैनल कैटी एंड बेबी की मालकिन 23 वर्षीया कैटी मेरी ने वर्ष 2009 से व्लॉगिंग की शुरुआत की थी. उन्होंने अपनी नवजात बच्ची एली के पहले 34 सप्ताह के अनेक वीडियो बनाये और उन वीडियो को 32 लाख से ज्यादा लोग देख चुके हैं, जिनसे उन्हें बड़ी कमाई भी हुई है. कैटी ने अपनी बच्ची के रोजाना की हरकतों के अनेक वीडियो बनाये हैं. उनका कहना है कि वीडियो बनाते समय वह पूरी सावधानी बरतती हैं और यदि कोई फुटेज असंगत प्रतीत होता है, तो उसे निकाल देती हैं.
कैटी अपने बच्चे की भावनाओं का सम्मान करती हैं और वह नहीं चाहतीं कि बड़ी होकर उनकी बच्ची को किसी प्रकार की कठिनाई का सामना करना पड़े. कैटी ने बच्ची को स्नान करते समय जो वीडियो बनाये हैं, उसमें उन्होंने इस बात का ख्याल रखा है कि फुटेज उसके कंधों से ऊपर के हों, ताकि कुछ मायनों में उनके बच्चे की निजता बरकरार रहे.
कैटी चाहती हैं कि बड़ी होकर उनकी बच्ची उनके यूट्यूब चैनल का हिस्सा बने, लेकिन इसके लिए वह उस पर किसी तरह का दबाव नहीं देगी. जहां तक मौजूदा वीडियो से कमाई की बात है, तो इस बारे में एली का कहना है, ‘अपने बच्चे को बेहतर जिंदगी देने के लिए यदि इस तरीके से कुछ रकम हासिल हो रही है, तो मुझे यह खराब नहीं लग रहा.’ इस धनराशि को वह एक अलग बचत खाते में बेटी के लिए जमा कर रही हैं.
कैटी के इस तर्क से जोनाथन भी सहमत हैं. उनका भी यह कहना है कि बच्चों को बेहतर जिंदगी देने के लिए ही वे इन वीडियो से कुछ धनराशि अर्जित कर रहे हैं. इस बारे में ओट्स का कहना है, ‘इसके कुछ फायदे जरूर हैं और बच्चों को माली आमदनी के साथ रोमांचक एहसास का अनुभव होने के साथ एक अलग स्टेटस हासिल होता है, लेकिन दिशानिर्देशों का होना भी जरूरी है.’
हालांकि, यूट्यूब को शुरू हुए अब एक दशक से ज्यादा समय हो चुका है, लेकिन जो लोग इसकी कार्यशैली से पूरी तरह परिचित नहीं हैं, उनमें इन चीजों को लेकर अब भी भय बना रहता है.
यदि इसे कानून से जोड़ने की बात होगी, तब भी यूट्यूब परफॉर्मेंस से जुड़ी इन चीजों को समझने में कानून को समय लगेगा. यूट्यूब खुद भी अपने यूजर्स को रेगुलेट कर सकता है, लेकिन तब तक लोगों को खुद यह जानना-समझना होगा कि बच्चों के इन वीडियोज का दीर्घकालीन परिणाम क्या हो सकता है.(‘द गार्डियन’ में प्रकाशित लेख के आधार पर) (प्रस्तुति : कन्हैया झा)
गूगल ग्लास का मसला
गूगल ग्लास को पहननेवाले अपनी जिंदगी से जुड़ी हर चीज का वीडियो बना सकते हैं. हालांकि, इसका एक नकारात्मक पहलू प्राइवेसी से जुड़ा है. इसे पहनने वाला अपने सामने हर शख्स की फोटो ले सकता और उसका वीडियो बना सकता है. इसी वजह से अमेरिका में इस चश्मे के इस्तेमाल के नियम बनाये गये हैं. रेस्टोरेंट, सिनेमाघरों और सार्वजनिक जगहों पर इसे नहीं पहना जा सकता. ‘डॉयचे वेले’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जर्मनी में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की जानकार और वकील इवोन होफश्टेटर गूगल ग्लास के लिए अच्छा भविष्य नहीं देखती हैं.
जर्मन कानून के बारे में उनका कहना है, ‘यदि कोई भी मेरी मर्जी के बिना मेरा एक शब्द भी रिकॉर्ड करता है, मेरी तसवीर लेता है, बगैर मुझसे पूछे, और अगर कहीं वह उसे इंटरनेट पर डाल देता है, तो उसे धारा 201 और 201-ए के तहत सजा हो सकती है. और इससे कॉपीराइट के कानून का भी उल्लंघन होगा. ऐसे बहुत से कानून हैं, जिनका यह डिवाइस पालन नहीं करती है.’
यूट्यूब का सफर
यूट्यूब एक वीडियो-शेयरिंग वेबसाइट है. यह साइट यूजर्स को वीडियो अपलोड करने, देखने और शेयर करने की सुविधा मुहैया कराता है. इस पर वीडियो क्लिप्स, टीवी क्लिप्स, म्यूजिक वीडियो आदि मौजूद हैं. इसका मुख्यालय अमेरिका के कैलिफोर्निया में है. फरवरी, 2005 में तीन लोगों (चाड हर्ले, स्टीव चेन और जावेद करीम) ने मिल कर इसे शुरू किया.ये सभी ‘पेयपल’ के पूर्व कर्मचारी रह चुके थे.
जावेद का कहना है कि यूट्यूब को शुरू करने की प्रेरणा उन्हें वर्ष 2004 में टेक्सास में आयोजित जेनेट जैक्सन के एक कार्यक्रम का एक टीवी चैनल पर लाइव प्रसारण के बाद उसके विवादों में आने से हुई. दरअसल, इस कार्यक्रम के आखिरी क्षण में परफॉर्मेंस के दौरान ही चंद सेकेंड के लिए जेनेट की टॉप को एकाएक उनके एक सहयोगी कलाकार ने खोल दिया था.
इस मसले पर उस समय काफी विवाद हुआ था. उस समय बहुत से लोगों ने इस वीडियो क्लिप को ऑनलाइन शेयर किया था. उसी वर्ष दक्षिण भारत में आयी विनाशकारी सूनामी ने भी इन्हें एक नयी प्रेरणा दी.
महज डेढ़ साल में यूट्यूब इतना लोकप्रिय हो गया, जिससे गूगल ने इसे नवंबर, 2006 में 1.65 मिलियन डॉलर देकर खरीद लिया.
यूट्यूब का संचालन अब गूगल की सहायक कंपनी के तौर पर किया जाता है. यूट्यूब पर मौजूदा ज्यादातर वीडियोज व्यक्तिगत तौर पर अपलोड किये जाते हैं, लेकिन कई मीडिया घरानों की भी इससे साझेदारी है, जिसके तहत वे अपने वीडियोज को शेयर करते हैं.
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