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पैकेज सही वक्त पर, बदलेगा बिहार
सुशील कुमार मोदी पूर्व उपमुख्यमंत्री, बिहार व भाजपा के वरिष्ठ नेता बिहार के लिए सवा लाख करोड़ के पैकेज को लेकर बिहार की राजनीति गरम है. एनडीए और महागंठबंधन अपने-अपने नजरिये से इसकी व्याख्या कर रहे हैं. ऐन चुनाव के मौसम में हुई यह घोषणा एक तरह से चुनाव का मुद्दा भी बन चुका है. […]
सुशील कुमार मोदी
पूर्व उपमुख्यमंत्री, बिहार व भाजपा के वरिष्ठ नेता
बिहार के लिए सवा लाख करोड़ के पैकेज को लेकर बिहार की राजनीति गरम है. एनडीए और महागंठबंधन अपने-अपने नजरिये से इसकी व्याख्या कर रहे हैं. ऐन चुनाव के मौसम में हुई यह घोषणा एक तरह से चुनाव का मुद्दा भी बन चुका है.
इस पैकेज पर चल रहे बहस-मुबाहिशों पर कल आपने पढ़ा पढ़िए अर्थशास्त्री डॉ शैबाल गुप्ता का नजरिया. इस कड़ी में आज पढ़िए राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री तथा भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी का आलेख.
मुङो हैरानी होती है ,जब सुनता हूं कि बिहार के विशेष पैकेज में नया कुछ भी नहीं है और यह पुरानी योजनाओं की रिपैकेजिंग है. आप इसके बारे में कुछ भी कह लें, पर कम से कम बिहार के लिए, यहां के लोगों के लिए फरेब न गढ़ें. सच को स्वीकार करें और लोगों को बताएं. लोग ही तय करेंगे कि कौन सच कह रहा है और कौन नहीं.
अगर पुरानी योजनाएं थीं, तो वे अब तक पूरी क्यों नहीं हुईं? इसके लिए कौन जिम्मेदार होगा? इसलिए मेरा मानना है कि चीजों को उसके वास्तविक परिप्रेक्ष्य में देखे जाने की जरूरत है. ऐसा माहौल न बनाया जाये, जिससे लगे कि विकास के नाम पर राजनीति की जा रही है.
आपको राजनीति करनी है, तो करिए. हम किसी को ऐसा करने से रोक भी नहीं सकते. पर बिहार के लिए विकास के नाम पर राजनीति न की जाये. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इतिहास में पहली बार सवा लाख करोड़ के बिहार पैकेज की घोषणा की.
मोदी जी के प्रति सम्मान प्रकट करने के बदले क्या-क्या कहा जा रहा है. बिहार की मिट्टी ने हमें कृतज्ञ होना सीखाया है, कृतघ्न बनना नहीं. सवाल तो यह पूछा जाना चाहिए कि 1989 में राजीव गांधी जी ने पांच हजार करोड़ के जिस पैकेज की घोषणा की थी, उसका क्या हुआ. अभी केंद्र में एनडीए की सरकार बने पंद्रह महीने ही हुए और कहा जा रहा है कि देर से पैकेज मिला.
आप देरी किसको कहेंगे? पांच साल के लिए बनने वाली सरकार अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में ताबड़तोड़ फैसले लेने लगे, तो उसे देरी से उठाया गया कदम कहते हैं. अभी राज्य की सरकार ताबड़तोड़ फैसले ले रही है. यह सब काम वह पहले भी कर सकती थी. शिलान्यास के कार्यक्रमों की बाढ़ आयी हुई है. एनडीए की सरकार के पास अभी चार साल का वक्त है. हमने तो अभी शुरुआत की है. आप जानेवाले हैं, तो ताबड़तोड़ फैसले कर रहे हैं.
हमें यह मानने में कोई परेशानी नहीं कि केंद्र की एनडीए सरकार ने बिहार के लिए जो पैकेज दिया है, उससे आने वाले दिनों में राज्य की तसवीर नहीं बदलेगी. तसवीर बदलेगी और जरूर बदलेगी. कृषि क्षेत्र, सड़क, बिजली, पर्यटन, मेगा पुल, हवाई अड्डों का विकास, बरौनी रिफायनरी का विस्तार जैसे अनेक कार्यक्रम हैं, जिससे सार्वजनिक क्षेत्र में भारी निवेश होगा और इससे रोजगार का सृजन भी होगा. पैकेज के प्रति अविश्वास-संदेह व्यक्त करने की कोई वजह नहीं दिख रही है.
दरअसल, मुङो लगता है कि एनडीए का विरोध करनेवाले नेताओं को भरोसा ही नहीं था कि नरेंद्र मोदी की सरकार बिहार के लिए इतने बड़े पैकेज का इंतजाम करने जा रही है. इस घोषणा के चलते ऐसे लोगों की नींद उड़ी हुई है. उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि अब क्या किया जाये. ऐसे लोग ही पैकेज का मजाक उड़ा रहे हैं और तथ्य से परे बातें लोगों को बता रहे हैं. कहा जा रहा है कि विशेष पैकेज नहीं, बल्कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा चाहिए. इस पर आने से पहले पैकेज से जुड़ी कुछ और बातें.
यह किसी भी सामान्य आदमी को समझ आने वाली बात है कि योजना की घोषणा होने के बाद चरणबद्ध तरीके से उसके लिए राशि का आबंटन होता है. एक लाख 65 हजार करोड़ के पैकेज के साथ भी यही व्यवस्था लागू होगी. योजना की राशि चरणबद्ध तरीके से मिलेंगे. कोई बता दे कि कभी भी किसी योजना का पैसा एकमुश्त जारी होता हो. सामान्य कामकाज का भी यह नियम है.
पैकेज में गंगा, कोसी और सोन नदी पर आठ मेगा पुल बनाये जाने का प्रस्ताव है. आप समझ सकते हैं कि ये पुल जब बन जायेंगे, तो बिहार की तसवीर किस गति से बदलेगी. सोन नदी पर दो मेगा पुल बनने वाले हैं.
रोहतास के नौहट्टा से झारखंड के गढ़वा तक इससे जुड़ाव हो सकेगा. तब महज दो घंटे में छत्तीसगढ़ पहुंचना संभव हो सकेगा.
महात्मा गांधी सेतु के समानांतर फोर लेन नये पुल का निर्माण, मोकामा के राजेंद्र सेतु के पास रेल सह सड़क पुल, कटिहार-मनिहारी से झारखंड के साहिबगंज तक सड़क पुल और बक्सर में गंगा नदी पर मौजूदा टू लेन के पुल को फोर लेन में बदलने की योजनाएं पूरी होने पर बहुत बड़ा बदलाव दिखेगा.
पैकेज में कृषि क्षेत्र के विकास पर खास जोर दिया गया है. गुजरात मॉडल को अपनाते हुए कृषिकार्यो के लिए अलग से फीडर का इंतजाम होगा. घरेलू उपयोग और खेतीबाड़ी के अलग-अलग फीडर होंगे.
मौजूदा खेती में डीजल से ही सारा काम होता है. इससे उत्पादन लागत बढ़ जाती है. अगर प्रतिबद्ध तरीके से सिर्फ खेती के लिए बिजली दी जाये, तो हालात बदल जायेंगे. फिलहाल राज्य में कृषि कार्य में सिर्फ तीन फीसदी बिजली का इस्तेमाल हो रहा है.
आप कल्पना करिए कि बिजली का उपयोग बढ़ जाने से किस प्रकार का बदलाव आयेगा. इसीलिए बिजली उपलब्ध कराने के लिए बांका में 4000 मेगावाट उत्पादन का अल्ट्रा मेगा पावर प्लांट और बक्सर में 1300 मेगावाट उत्पादन क्षमता वाली यूनिट लगाने की योजना है. दीनदयाल उपाध्याय ग्राम विद्युत योजना के तहत कृषि कार्यो के लिए अलग से फीडर का इंतजाम होगा. ये सब बातें पैकेज का हिस्सा हैं.
इसी तरह बिहार पैकेज के तहत विभिन्न क्षेत्रों की अनेक योजनाएं लागू होंगी. उच्च शिक्षा में भागलपुर के नजदीक विक्रमशीला विश्वविद्यालय के स्थान पर केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना, बोधगया में आइआइएम, कौशल विकास के तहत एक लाख युवकों को प्रशिक्षण देना, बिहार में मेगा स्किल विश्वविद्यालय की स्थापना, बिजली क्षेत्र में 25 हजार युवाओं को ट्रेनिंग देना, कृषि क्षेत्र में भंडारण क्षमता का विकास, बीज उत्पादन प्रणाली, मछली पालन का विकास, कृषि जल प्रबंधन जैसी योजनाओं में राज्य के चौतरफा विकास के सूत्र छुपे हुए हैं.
ताज्जुब होता है कि बिहार के लोग इसे समझ रहे हैं, पर विकास के नाम पर राजनीति करने वाले इसे नहीं देख पा रहे हैं.
कई लोग बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की बात कर रहे हैं. लेकिन वे यह नहीं बता रहे कि विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त जो सुविधाएं मिलती हैं, उसे केंद्र सरकार ने पूरा कर दिया है. मसलन, पिछड़े जिलों में नये उद्योगों को लगाने पर छूट मिलेगी. केंद्र सरकार ने इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी है.
अगर यह व्यवस्था नहीं हो और आपको विशेष राज्य का दर्जा मिल गया हो, तो इससे तीन-चार हजार करोड़ की ही बचत होती. केंद्र ने जो व्यवस्था की है, उससे कई गुना अधिक लाभ बिहार को होगा. दूसरी बात कहना चाहता हूं कि 14 वें वित्त आयोग ने सामान्य और विशेष राज्य के फर्क को नहीं स्वीकार किया है.
यही नहीं, रघुराम राजन कमेटी ने भी विशेष राज्य की अवधारणा अस्वीकार कर दी है. जहां तक 14 वें वित्त आयोग की बात है, तो उसकी सिफारिशों से बिहार को दो लाख 20 हजार करोड़ ज्यादा मिलेगा. यह 13 वें वित्त आयोग की तुलना में कहीं ज्यादा है. केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी 32 फीसदी से बढ़ाकर 42 फीसदी की गयी है.
इसका मतलब यह हुआ कि राज्य सरकारें अपनी प्राथमिकता के आधार पर उस पैसे को खर्च कर सकेंगी. यह तो अच्छी बात है.
बिहार सहित दूसरे कई राज्य केंद्रीय करों में हिस्सेदारी बढ़ाने की मांग लंबे समय से करते रहे हैं. चूंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, तो उन्हें राज्यों को होने वाली आर्थिक तंगी का अहसास था.
इस लिहाज से उन्होंने बड़ा कदम उठाया.
एक और बात यह कि बिहार को अभी विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिला, तो करोब छह-सात लाख करोड़ के निवेश का प्रस्ताव आया. पर ज्यादातर निवेश के प्रस्ताव वापस हो गये. इसकी वजह जमीन का उपलब्ध नहीं होना था. अब आप ही सोचिए कि जब विशेष दर्जा मिल भी जाये और निवेशकों को जमीन नहीं मिले, तो उसका क्या फायदा.
मेरा तो मानना है कि इस पैकेज पर काम करने वाली सरकार की जरूरत है. आपकी मंशा मायने रखती हैं.आप वास्तव में विकास के हिमायती हैं या विकास का स्वांग भरते हैं. मुङो यकीन है कि काम करने वाली सरकार पैकेज के पैसों से बिहार की सूरत बदल सकती है. यह क्षमता पैकेज में है. यह दीगर सवाल है कि अमल में लाने की क्षमता मौजूदा सरकार में है या नहीं.
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