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एशिया के सबसे ऊंचे ज्वालामुखी पर लहराया तिरंगा
तूलिका हैदराबाद स्थित एयरफोर्स एकेडमी में स्कवैड्रन लीडर हैं. उन्होंने माउंट एवरेस्ट पर फतह 26 मई, 2012 को हासिल की थी. यह उपलब्धि हासिल करनेवाली उत्तर प्रदेश की वह पहली महिला थीं. उन्होंने जब यह उपलब्धि हासिल की उस समय वे एयर फोर्स में नहीं थीं. इस चढ़ाई का खर्च उन्होंने खुद उठाया था, जो […]
तूलिका हैदराबाद स्थित एयरफोर्स एकेडमी में स्कवैड्रन लीडर हैं. उन्होंने माउंट एवरेस्ट पर फतह 26 मई, 2012 को हासिल की थी. यह उपलब्धि हासिल करनेवाली उत्तर प्रदेश की वह पहली महिला थीं. उन्होंने जब यह उपलब्धि हासिल की उस समय वे एयर फोर्स में नहीं थीं. इस चढ़ाई का खर्च उन्होंने खुद उठाया था, जो करीब 20 लाख था. यह चढ़ाई उन्होंने अकेले दो शेरपाओं की मदद से की थी.
इस बार उन्होनें एशिया के सबसे ऊंचे ज्वालामुखी पर जीत हासिल की है. दामावंद ज्वालामुखी, दुनिया का सबसे खतरनाक माना जाने वाला ज्वालामुखी है, जो ईरान और मध्य-पूर्व एशिया के अल्बोर्स माउंटेन रेंज की सबसे बड़ी चोटी और एशिया का सबसे ऊंचा ज्वालामुखी है.
तूलिका ईरान माउंटेनियरिंग फेडरेशन की ओर से 21 से 31 जुलाई के बीच आयोजित इंटरनेशनल क्लाइंबिंग मिशन में भारत की ओर से शामिल हुई थीं. इस चोटी की ऊंचाई 5671 मीटर है और इसे फतह करनेवाली तूलिका पहली भारतीय महिला हैं.
छह अन्य महिला पर्वतारोहियों के साथ चोटी फतह करनेवाली तूलिका को खराब मौसम से लेकर दुर्गम रास्तों का सामना करना पड़ा. बर्फबारी, ग्लेशियर पिघलना और तापमान में अचानक होनेवाला परिवर्तन भी तूलिका का हौसला कम नहीं कर पाया और उन्होंने यह उपलब्धि हासिल की.
ईरान माउंटेनियरिंग फेडरेशन की ओर से किये गये इस आयोजन में ब्राजील, ईरान, ब्रिटेन, हॉलैंड, पोलैंड, जापान और ऑस्ट्रिया समेत 16 देशों के 53 पर्वतारोहियों ने हिस्सा लिया. इसमें तूलिका ने भारत का प्रतिनिधित्व किया. मिशन में तूलिका समेत कुल सात महिला पर्वतारोही थीं.
अभियान की शुरुआत 21 जुलाई को ईरान में पर्वतारोहण में आनेवाली दिक्कतों के संबंध में जानकारी के साथ हुई. यह 3965 मीटर ऊंची तोचल पीक जैसी चोटियों से होते हुए 30 जुलाई को पूरा हुआ. तूलिका के मुताबिक दामावंद की चढ़ाई के दौरान तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से अचानक माइनस पांच में पहुंच जाता है, जो बड़ी मुसीबत थी.
50 किमी की गति से बह रही हवा से भी चुनौती मिल रही थी. तूलिका 27 जुलाई की सुबह सवा 11 बजे दल के साथ दामावंद की चोटी पर पहुंचीं. लगभग 15 मिनट ऊपर रहने के बाद नीचे उतरीं. तूलिका के मुताबिक यात्र में यह मिथक भी टूट गया कि ईरान में महिलाओं की स्थिति खराब है. उनके दल में ईरान की 5 लड़कियां थीं, जिन्होंने काफी साहस दिखाया.
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